वाराणसी। ज्ञान, आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक एकता की प्रतीक नगरी वाराणसी एक बार फिर ऐतिहासिक अवसर की साक्षी बनी, जब काशी तमिल संगमम्–4 का भव्य शुभारंभ पूरे उत्साह और पारंपरिक वैदिक रीति के साथ किया गया। डेलिगेट्स ने इस आयोजन में हिस्सा लिया, जिसका उद्देश्य उत्तर और दक्षिण भारत की सांस्कृतिक विरासत को एक सूत्र में पिरोना है।
शुभारंभ समारोह के बाद तमिल डेलिगेट्स को वाराणसी की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर से परिचित कराने हेतु उन्हें गंगा क्रूज़ यात्रा पर ले जाया गया। सभी अतिथि गंगा के शांत जल पर तैरते हुए काशी के प्राचीन घाटों की भव्यता से अभिभूत दिखे। नाव के डेक पर खड़े होकर डेलिगेट्स ने अस्सी घाट से लेकर पंचगंगा घाट तक के सुंदर दृश्यों को अपने कैमरों में कैद किया। सांध्य वेला में गंगा तट पर जलते दीपों का मनोहारी दृश्य, घाटों पर अविरल चल रही पूजा-पद्धतियां और हवा में बहती सुगंध—इन सबने यात्रियों को एक दिव्य अनुभव प्रदान किया।
क्रूज़ यात्रा के पश्चात सभी ने विश्वप्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट पर होने वाली भव्य गंगा आरती का दर्शन किया। मंत्रोच्चार, घंटों-घड़ियालों की ध्वनि और हाथों में दीप लिए पुरोहितों के सामूहिक नृत्यात्मक हावभाव ने वातावरण को आध्यात्मिक चेतना से भर दिया। तमिल डेलिगेट्स गंगा आरती के दौरान भावविभोर होते हुए दिखाई दिए। कई अतिथियों ने कहा कि वे इस दिव्य क्षण को कभी नहीं भूल पाएंगे।
तमिलनाडु से आए छात्रों ने काशी की संस्कृति और यहां की जनता द्वारा मिले स्नेह की खुलकर प्रशंसा की। एक छात्र ने कहा, काशी में हमें अद्भुत प्रेम मिला है। यहां लोगों की सरलता और आध्यात्मिकता ने हमें बेहद प्रभावित किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को हम धन्यवाद देते हैं कि उनके प्रयासों से हमें ऐसी ऐतिहासिक यात्रा करने का अवसर मिला।
छात्रों ने विशेष रूप से काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर की सराहना करते हुए बताया कि मंदिर परिसर का नया स्वरूप देखकर उन्हें गर्व और आश्चर्य दोनों की अनुभूति हुई।
छात्रों ने यह भी कहा कि अब वे अयोध्या में बने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के दर्शन करने के लिए उत्सुक हैं। उनके अनुसार, उत्तर भारत की इन महत्वपूर्ण तीर्थस्थलों का अनुभव उनकी सांस्कृतिक समझ को और व्यापक बनाएगा।
इसके अलावा प्रतिभागियों ने बताया कि वे कल आयोजित होने वाले अकादमिक कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे। वे इतिहास, कला, भाषा और साहित्य से जुड़े महत्वपूर्ण सत्रों में शामिल होकर बहुत कुछ सीखने की उम्मीद कर रहे हैं। छात्रों का कहना है कि यह संगम न केवल सांस्कृतिक संवाद का माध्यम है, बल्कि शैक्षिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने वाली एक अनूठी पहल भी है।
काशी तमिल संगमम्–4 का आयोजन प्रधानमंत्री की उस अवधारणा को साकार करता है जिसमें भारत के विविध सांस्कृतिक क्षेत्रों को एक-दूसरे के और निकट लाना है। यह कार्यक्रम यह संदेश देता है कि भारत की विभिन्न भाषाओं, संस्कृतियों और समुदायों के बीच भले ही भौगोलिक दूरी हो, लेकिन उनकी भावनाएं और विरासतें एक-दूसरे से गहराई से जुड़ी हुई हैं।