इस मामले में पुलिसकर्मियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनुज यादव, अधिवक्ता नरेश यादव, संदीप यादव और रोहित यादव ने बहस करते हुए पक्ष रखा।
अर्दली बाजार निवासी प्रार्थी शहबाज खान ने बीएनएनएस की धारा 173(4) के तहत अदालत में प्रार्थना पत्र देकर आरोप लगाया था कि 10 मई 2025 की दोपहर लगभग 3:30 बजे उनका घरेलू कर्मचारी शाहिल, जो उनकी बीमार मां के लिए दवा लेने गया था, को तत्कालीन थाना प्रभारी सारनाथ विवेक त्रिपाठी, एसआई प्रदीप कुमार, एस उदय शंकर राव तथा चार अज्ञात पुलिसकर्मियों ने रोककर अगवा कर लिया।
प्रार्थी के अनुसार, शाहिल की आँखों पर काली पट्टी बांधकर अज्ञात स्थान पर ले जाकर लात-घूंसों और डंडे से उसकी पिटाई की गई। उसके गले में रस्सी डालकर मारने का प्रयास भी किया गया। साथ ही कार में रखे ₹25,000 और जरूरी कागजात ले लिए गए।
शाहिल का मोबाइल छीनकर उसे थाने ले जाया गया, जहाँ कार को सीज कर चालान किया गया। देर रात लगभग 11:30 बजे कथित रूप से फर्जी मेडिकल रिपोर्ट बनवाकर उसे छोड़ दिया गया। आरोप है कि पिटाई से शाहिल को गंभीर चोटें और गले पर रस्सी के निशान तक आ गए थे।
जब पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो प्रार्थी अदालत पहुँचा।
दोनों पक्षों की दलीलों, प्रस्तुत दस्तावेजों और परिस्थितियों पर विचार के बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने यह कहते हुए प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया कि आरोपों को स्वीकार करने लायक पर्याप्त आधार नहीं पाया गया।
इस निर्णय के बाद पूर्व थाना प्रभारी सहित संबंधित पुलिसकर्मियों को बड़ी राहत मिली है।