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डेमोग्राफी रिप्रेजेंटेशन डीलिमिटेशन : दी नार्थ साउथ डिवाइड इन इंडिया पुस्तक का हुआ विमोचन



 24/Nov/25

बाबू जगत सिंह शोध समिति संस्थान जगतगंज वाराणसी में प्रधानमंत्री म्यूजियम एवं लाइब्रेरी (PMML), नई दिल्ली के जॉइंट डायरेक्टर डॉ रविकांत मिश्रा जी के पुस्तक "डेमोग्राफी रिप्रेजेंटेशन डीलिमिटेशन : दी नॉर्थ-साउथ डिवाइड इन इण्डिया" (2025) का लोकार्पण एवं विमोचन किया गया।

यह किताब भारत में जनसंख्या की वृद्धि से जुड़े कई अहम विमर्शों से पाठकों को परिचित कराती है।

अपने लेखकीय वक्तव्य में डॉ रविकांत मिश्रा जन सामान्य के बीच अंतर्निहित कराए गए इस मिथक का कि उत्तर भारत भारत के जनसंख्या वृद्धि के लिए जिम्मेदार है कि आलोचना करते हैं। वे भारत में जनसंख्या बढ़ने की तीन मुख्य कारण बताते हैं: पोषण, स्वास्थ्य सेवाएं और सार्वजनिक स्वच्छता।

वे कहते हैं कि यह किताब ऐतिहासिक तथ्यों एवं स्रोतों के माध्यम से यह स्पष्ट करती है कि उत्तर भारत (हिंदी भाषी क्षेत्र) के जनसंख्या विकास से जुड़े ज्यादातर विमर्शों को अनैतिहासिक व अतर्कसंगत हैं। वे मानते हैं कि जनांकिकी एवं प्रतिनिधित्व से जुड़े विषय पर बहस करते हुए हम तथ्यों से ज्यादा भावुकता पर बल देते हैं। आगे वे कहते हैं कि यह सच है कि हाल के पांच-छ: दशकों में भारत के कुल जनसंख्या में उत्तर भारत की हिस्सेदारी में वृद्धि हुआ है परंतु ऐतिहासिक दस्तावेज इस ओर इशारा करते हैं कि 1881 से 1951 के बीच उत्तर भारत की जनसंख्या विकास दर या तो स्थिर रही है या उसमें नकारात्मक विकास हुआ है। लेखक यह भी कहते हैं कि भारतीय संविधान ने हर दशकीय जनगणना के परिसीमन कमीशन के निर्माण व उसके सलाह अनुरूप लोकसभा एवं विधानसभा सीटों के पुनः परिसीमन की व्यवस्था की गई गई थी। लेकिन आपातकाल के दौरान 42वीं संविधान संशोधन (1976) में नये परिसीमन पर 25 वर्षों के लिए रोक लगा दिया गया। जिसे पुनः 2001 में भी 25 वर्षों के लिए आगे बढ़ाया गया। जब जब दशकीय जनगणना के आधार पर परिसीमन की व्यवस्था को पुनः लागू करने की बात की जाती है दक्षिण भारत के राजनेताओं एवं कुछ अकादमिक विद्वानों द्वारा परिवार नियोजन के नाम पर इसका विरोध किया जाता है। यह विरोध भी प्राय: अतार्किक और अनैतिहासिक है। 1976 में जब इस परिसीमन पर रोक लगाया गया तब दक्षिण की भारत के जनसंख्या में हिस्सेदारी अपने उच्चतम स्तर पर थी। अतः लोकसभा सीटों में हिंदी भाषी क्षेत्रों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा। अंत में लेखक कहते परिसीमन का विषय उत्तर बनाम दक्षिण या पूर्व बनाम पश्चिम नहीं है अपितु यह एक राष्ट्रीय मुद्दा है। वे शोधकर्ताओं को कहते हैं कि जनांकिकी का अध्ययन करते समय हमें कम से कम दो से तीन सदी पीछे जाना तभी हम वस्तुनिष्ठ अध्ययन कर पाएंगे।

 

अपने स्वागत वक्तव्य में इतिहास विभाग काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ध्रुव कुमार सिंह कहते हैं कि इस किताब को लेखक के कठिन एवं उत्कृष्ट श्रम का परिणति मनाते हैं। वे मुताबिक यह किताब जनांकिकी से जुड़े कई अहम आयामों से अच्छादित है। जनसंख्या विकास एवं लोकसभा एवं विधानसभा सभा में सीटों के अनुपात इसके दो अत्यंत महत्वपूर्ण आयाम हैं।

विधि संकाय काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अखिलेद्र कुमार पाण्डेय जी इस पुस्तक को एक गंभीर विषय गंभीर विचार मानते हैं। उनके मुताबिक यह पुस्तक जनसंख्या पर भविष्य में होने वाले शोध के लिए एक आधार पुस्तक बनेगा। प्रोफेसर पाण्डेय कहते हैं 2026 में होने वाली आगामी जनगणना के बाद परिसीमन पर भी खूब बहस होगा। इन विमर्शों के समाधान एवं संवाद में इस पुस्तक की भूमिका को निर्णायक बताया। वे जन प्रतिनिधियों के

वृद्धि करते समय लोकतंत्र की क्वालिटी पर जोर देते हैं न कि क्वांटिटी पर।

राजनीति विज्ञान विभाग, काशी हिंदू विश्वविद्यालय

में कार्यरत डा. प्रियंका झा ने इस पुस्तक को लेखक के दो दशकों के गहन शोध एवं अकादमिक अनुशासन की परिणति बताती हैं। उनके मुताबिक यह पुस्तक न केवल भारत के विभिन्न भागों अपितु विश्व के कई भागों की तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत करती है। वे मानती है कि यह पुस्तक न केवल शोधार्थियों, विद्यार्थियों के लिए ही जरूरी है बल्कि यह पुस्तक नीति निर्माताओं के लिए भी एक बहुमूल्य कृति साबित होगी। वे आगे कहती हैं किवे प्रोग्राम में उपस्थित शोधकर्ताओं एवं विद्यार्थियों से भी उनके शोध में इसी अकादमिक अनुशासन एवं गुणवत्ता के अनुपालन की अपील करती हैं।

जगतगंज राजपरिवार के प्रतिनिधि प्रदीप नारायण सिंह ने कार्यक्रम में आए हुए सभी गणमान्य लोगों एवं विद्यार्थियों को धन्यवाद ज्ञापित किया।

इस अवसर पर प्रोफेसर मनोज मिश्रा,डा.( मेजर ) अरविंद कुमार सिंह, विकास यादव के अतिरिक्त भारी संख्या में लोग उपस्थित रहे।

 


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