पत्रकारपुरम में हमला कोरोना वायरस का और वे मार रहे मच्छर
बनारस के पत्रकारपुरम् कालोनी में रहने वाले पत्रकार राकेश चतुर्वेदी आखिरी दम तक खबर के मोर्चे पर डटे रहे. अपनी मौत के बाद भी वे कई सवाल छोड़ गए हैं, जिसका जवाब खोजना होगा. यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी. शुक्रवार की रात जिस कालोनी में वे रहते थे, वहां मच्छर मारने के लिए फागिंग मशीन से धुआं फेंका जा रहा था. यह भी कोराना से जंग का ही एक हिस्सा है. वे बीमारी का इलाज नहीं बल्कि खुद जंग का ऐलान कर दिए हैं तो जंग में तो लोग मारे ही जाएंगे. लगता है कि भविष्य में देश में "कोरोना जंग" होगा. उनका तो यही कहना है.
जिस "दैनिक जागरण" अखबार में वह कार्यरत थे, वहां के प्रबंधन की खामियां और कबीरचौर स्थित शिवप्रसाद गुप्त अस्पताल व बीएचयू के सर सुंदरलाल अस्पताल में व्याप्त अनियमितता व अराजकता को भी उनकी मौत रेखांकित कर रही है. कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों के इलाज में बीएचयू अस्पताल के कोरोना वार्ड में व्याप्त अव्यवस्था कभी अखबार की सुर्खियां नहीं बना. बनारस से प्रकाशित अखबार हमेशा इसे छिपाने की कोशिश करते रहे लेकिन क्या सच को छिपाया जा सकता है ? सच पर जितनी मिट्टी डालकर उसे ढंकने की कोशिश करो वह अंदर से झांकने लगता है.
खबर है कि राकेश की मौत के बाद "दैनिक जागरण" अखबार में पत्रकार व कर्मचारियों की कोरोना जांच कराई गई और 90 में से 40 पाॅजिटिव पाए गए.
जबकि 20 लोग जांच कराने से बचने के लिए भाग गए. अब जागरण अखबार अपने में कोरोना हब बन गया है. जाहिर सी बात है कि जो पत्रकार व कर्मचारी कोरोना की जद में आए हैं, उनके परिवार के सदस्य भी प्रभावित होंगे. खबरों को राजनीतिक रंग देने की कोशिश में "जागरण" सबसे आगे रहा है. वैसे कोरोना से सम्बन्धित खबरों की कवरेज में बनारस से प्रकाशित अखबार फिसड्डी ही रहे हैं. पत्रकार रिपोर्टिंग नहीं कर रहे थे बल्कि प्रशासन की विज्ञप्ति छाप रहे थे.
आसमानी क्रांति के इस दौर में "जन संदेश टाइम्स" में 8 पत्रकारों के कोरोना पाॅजिटिव पाए जाने पर उनका दफ्तर सील कर दिया गया था. कचहरी में दो कोरोना पाॅजिटिव पाए जाने पर कचहरी बंद कर दी गई थी. बिना माॅस्क लगाए सड़क पर आने-जाने पर 500 रुपये जुर्माना वसूला जा रहा है और बाइक या स्कूटी पर पीछे किसी को बैठाने पर पुलिस चालान कर देती है तो फिर "जागरण" के प्रति प्रशासन का क्या रुख है ?
हम मांग करते हैं कि राकेश चतुर्वेदी के परिजनों को दस करोड़ रुपये मुआवजा दिया जाए. क्योंकि अस्पताल में व्याप्त अव्यवस्था व जागरण अखबार के प्रबंधन की लापरवाही व कोरोना संक्रमण के संबंध में शासन-प्रशासन की तरफ से जो गाइड लाइन जारी की गई है, उसकी घोर उपेक्षा हुई है. साथ ही राकेश की मौत की भी जांच कराई जाए.
उनके परिजनों को मुआवजे के रूप में दस करोड़ की धनराशि बनारस के सांसद, आठ विधायक, तीन मंत्री, कई दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री, प्रदेश व केंद्र सरकार तथा जागरण प्रबंधन मिलकर पूरा करें. उनके लिए यह कोई बड़ी धनराशि नहीं है. काशी पत्रकार संघ के अध्यक्ष राजनाथ तिवारी व महामंत्री मनोज श्रीवास्तव ने भी प्रदेश सरकार से 50 लाख रुपये उनके परिजनों को देने की मांग की है. एक भाजपा सांसद डाॅ. महेंद्र नाथ पांडेय भी हैं. उनके चंदौली संसदीय क्षेत्र में बनारस के दो विधानसभा क्षेत्र शिवपुर व अजगरा आता है, वह भी मुआवजा की धनराशि में अपना हिस्सा दें.
यह तो प्रदेश सरकार का हिस्सा हुआ लेकिन जनप्रतिनिधियों व जागरण प्रबंधन की भी जिम्मेदारी बनती है. संघ के पदाधिकारियों ने प्रधानमंत्री, यूपी के मुख्यमंत्री व प्रेस कौंसिल को भेजे पत्र में जागरण प्रबंधन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए जांच की मांग की है. सिर्फ घड़ियाली आंसू बहाने से कुछ नहीं होगा. यह सच है कि पत्रकारों ने अपनी कार्यप्रणाली से खुद ही विश्वसनीयता खो दी है. "विश्वसनीयता" ही वह पूंजी है, जिसके बल पर कोई पत्रकार अपनी पूरी शान के साथ समाज में खड़ा रहता है.
चाटुकारिता छोड़ो
पत्रकारों को रिपोर्टिंग के मामले में अब चाटुकारिता छोड़कर पत्रकारिता करनी होगी. सिर्फ शासन-प्रशासन की विज्ञप्ति ही खबर नहीं होती है. आज का "हिन्दुस्तान" अखबार मेरे सामने है. उसमें पृष्ठ -3 पर शहर की कोरोना से सम्बन्धित खबर है, जो सिर्फ सूचनात्मक है, जिसे विज्ञप्ति के आधार पर बनाया गया है. ग्राउंड रिपोर्टिंग एक भी नहीं है. बनारस के डीएम कौशल राज शर्मा के मुताबिक जनपद में 7 अगस्त तक 77 कोरोना पाॅजिटिव मरीजों की मृत्यु हुई है.
हां, बीएचयू के सुपर स्पेशियालिटी अस्पताल के कोरोना वार्ड में मारपीट, हंगामा व तोड़फोड़ की घटना चिंताजनक है. कहते हैं कि जिला जेल के एक कैदी की पत्नी ने पति के साथ मारपीट का आरोप लगाते हुए हंगामा किया था. शुक्रवार को उसके पति को फिर से जेल भेज दिया गया. उसकी पत्नी ने आरोप लगाया है कि उसके पति ने अस्पताल की दुर्व्यवस्था का मोबाइल से वीडियो बनाया था. जिसे हटाने के लिए पीपीई किट पहने पहुंचे अस्पताल के कर्मचारियों ने उसके साथ मारपीट की. इस घटना से संबंधित और तथ्यों की जानकारी देनी चाहिए, क्योंकि अस्पताल में कोई ऐसे ही मारपीट नहीं करता है. वह भी कोरोना वार्ड में..! उल्लेखनीय है कि बनारस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है, तब चिकित्सा व्यवस्था की यह स्थिति है.
खैर, अब समय आ गया है कि पत्रकार खुद अपने कार्य की समीक्षा करें. आत्मनिरीक्षण जरूरी है. आप किसी राजनीतिक दल से जुड़े हो सकते हैं लेकिन खबर के साथ कोई समझौता नहीं होना चाहिए. खबर प्रशासन व सत्ता के खिलाफ भी हो सकती है. हमें तथ्यों को एकत्रित करके सच को उजागर करना चाहिए. भारतीय पत्रकारिता की एक महान परम्परा है और उसे कायम रखने की जिम्मेदारी हमारे और आपके ऊपर है. आइए पत्रकार राकेश चतुर्वेदी की मौत से उभरे सवालों के सच को जानने व समझने की कोशिश करें.