काशी के विश्व प्रसिद्ध लक्खा मेला में परंपरानुसार काशिराज परिवार ने भागीदारी की। वर्तमान प्रतिनिधि अनंत नारायण सिंह भरत मिलाप में शामिल हुए। यह मेला विश्व में सबसे कम समय का सबसे बड़ा मेला है। परंपराओं की एक समृद्ध और गौरवशाली गाथा समेटे महज 15 मिनट के इस आयोजन में लाखों की भीड़ उमड़ती है और महज चार मिनट के नयनाभिराम दृश्य के लिए अपनी संपूर्ण संवेदना, आस्था उड़ेल कर रख देती है।
आज से 480 वर्ष पूर्व जब गोस्वामी तुलसीदास यहां श्रीरामचरित मानस की रचना कर रहे थे, उसी समय 1543 ईस्वी में उनके शिष्य संत मेधा भगत ने इस मेले का शुभारंभ किया था। मेले के साथ जुड़ी परंपराएं भी आश्चर्य से कम नहीं। यहां प्रभु श्रीराम को लेकर आने वाले पुष्पक विमान का वजन 5000 किलो है, जिसे लगभग 100 यादव बंधु परंपरानुसार अपने कंधों पर उठाकर लगभग चार किमी की दूरी तय करते हैं।
हालांकि प्रभु की पालकी उठाने के लिए 500 यादव बंधुओं का दल तैयार रहता है और अपना कंधा लगाता रहता है। यादव बंधु इस कार्य के लिए नई धोती, नई बनियान व नई पगड़ी धारण करते हैं, आंखों में काजल लगाते हैं और पूरे भक्ति भाव से प्रभु की पालकी उठाते हैं।
अपने पूर्वजों की परंपरा का पालन करते हुए काशीराज परिवार के कुंवर अनंत नारायण सिंह हाथी पर सवार होकर लीला स्थल पहुंचते हैं। हाथी पर से ही प्रभु श्रीराम के साथ सबका अभिवादन करते हुए उनके विमान के पास पहुंच प्रसाद स्वरूप तुलसी दल और पुष्प पंखुड़ियां ग्रहण कर सोने की गिन्नी आयोजकों को प्रदान करते हैं।
परिक्रमा करते हुए निकलते समय सशस्त्र पुलिस बल उन्हें गार्ड आफ आनर प्रदान करता है। विमान के जाते ही श्रीराम व भरत चबूतरे पर बिखरे तुलसी दल व पुष्प पंखुड़ियों को प्रसाद रूप में पा लेने तथा चबूतरों पर मत्था टेकने की होड़ मच जाती है।
एक ओर अस्ताचल में डूब जाने को कुछ ही शेष बचा था सूर्य का अंश, तो दूसरी ओर भ्रातृ प्रेम का अनुपम आदर्श गढ़ रहा था सूर्यवंश। बुधवार की शाम संपूर्ण ब्रह्मांड मानो ब्रह्मांडनायक की अनोखी भावलीला और आदर्श का सर्वोत्कृष्ट स्वरूप देखने को ठहर सा गया था। श्रीराम-भरत मिलाप की विश्वप्रसिद्ध लीला नाटी इमली के मैदान में आयोजित हुई तो शिव की काशी में त्रेता का वह पावन क्षण सजीव हो उठा।
इस लक्खा मेले में चारों भाइयों के भावपूर्ण मिलन को देख लाखों श्रद्धालुओं की पलकों से खुशियों के अनगिन मोती छलक उठे। गले मिल चारों भाइयों संग जनकनंदिनी सीता मैया ने भक्तों को दर्शन दिया। चारों भाइयों के मिलन की दुर्लभ छवि को हमेशा के लिए सहेज लेने को आतुर काशीवासियों की सजल आंखों ने गीले नयन के कोरों से समूचे दृश्य को अपने हृदय में बसाया।