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आज का विषय मूर्ति विसर्जन माँ गंगा की गोद में। जिन आस्था और अपने धार्मिक क्रिया-कलापों के लिए माँ गंगा का भागीरथ के कई युगों के तपों के बाद धरती पर अवतरण हुआ। अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए, उनको तारने के लिए भागीरथ ने तपस्या की। इसी मान्यता में हिन्दू समाज अपने परिवार में किसी के निधन के पश्चात् उनके अस्थि कलश को भी गंगा में प्रवाहित करके उनकी आत्मा को शाति प्रदान करते हैं वहीं दूसरी तरफ एक व्यक्ति गंगा के जल का आचमन करके पूजा के लिए पवित्र हो जाता है। माँ गंगा सदियों से अविरल है, शुद्ध हैं। उन्हें अशुद्ध नहीं किया जा सकता। उसी प्रकार गंगा में मूर्ति विर्सजन उसी कुचक्र के तह मुख्य जनहित याचिका में दूसरे पक्ष को सुने मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी। हम उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से इस मामले में सदैव के लिए हिन्दू जनमानस के आस्था के अनुसार जिसमें प्रदूषण रहित "ईको-फ्रेंडली मूर्तियों का निर्माण बिना "प्लास्टर ऑफ पेरिस" गंगा मिट्टी की मुर्तियों को देश के विभिन्न प्रांतों में जिस प्रकार किया जा रहा है मुर्तियों को क्रेन द्वारा डुबा कर निकाल लिया जाता है जिस
इतनी आस्था से मां की पूजा अर्चना करने के बाद उनकी प्रतिमा मां के रूप में यहां वहां गिरना और फेक कर चले आना इसे ना हम विसर्जन मानते हैं और नाही विसर्जन का रूप समझ सकते हैं। इससे हम बहुत दुखी हैं हिंदू जनमानस मर्माहत है। बहुत दुखी है। इस पर निर्णय लेना अत्यंत आवश्यक है।
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वाराणसी के दुर्गा समितियों का कहना है कि पूजा सिर्फ आडंबर नहीं हमारी आस्था है और मूर्ति विर्सजन प्रवहमान जल में मूर्ति विर्सजन हमारा संस्कार है, हमारी धार्मिक पहचान है। हिन्दु धर्म पर सदियों से उठाराघात हिन्दू समाज सहता रहा है। ताकत के बल पर कुचले जाना हिन्दू समाज की पहचान बन चुका है। बटना, लहना, टूटना हमारी प्रवृत्ति हो गई है। इसे बदलना होगा, इस पर विचार करना होगा। उदाहरण के तौर पर चाहे अंग्रेजों का शासन रहा हो, चाहे मुगलों का शासन रहा हो या पहुदियों का शासन रहा हो, सबने हिन्दू धर्म की आस्था, उनकी मान्यताओं एवं संस्कारों पर चोट करके उन्हें तोड़ने का काम किया है। युगों से हिन्दू समाज को जोड़ने का प्रयास और तोड़ने का षड़यंत्र किया आता रहा है।
आज का विषय मूर्ति विसर्जन माँ गंगा की गोद में। जिन आस्था और अपने धार्मिक क्रिया-कलापों के लिए माँ गंगा का भागीरथ के कई युगों के तपों के बाद धरती पर अवतरण हुआ। अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए, उनको तारने के लिए भागीरथ ने तपस्या की। इसी मान्यता में हिन्दू समाज अपने परिवार में किसी के निधन के पश्चात् उनके अस्थि कलश को भी गंगा में प्रवाहित करके उनकी आत्मा को शाति प्रदान करते हैं वहीं दूसरी तरफ एक व्यक्ति गंगा के जल का आचमन करके पूजा के लिए पवित्र हो जाता है। माँ गंगा सदियों से अविरल है, शुद्ध हैं। उन्हें अशुद्ध नहीं किया जा सकता। उसी प्रकार गंगा में मूर्ति विर्सजन उसी कुचक्र के तह मुख्य जनहित याचिका में दूसरे पक्ष को सुने मूर्ति विसर्जन पर रोक लगा दी। हम उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी से इस मामले में सदैव के लिए हिन्दू जनमानस के आस्था के अनुसार जिसमें प्रदूषण रहित "ईको-फ्रेंडली मूर्तियों का निर्माण बिना "प्लास्टर ऑफ पेरिस" गंगा मिट्टी की मुर्तियों को देश के विभिन्न प्रांतों में जिस प्रकार किया जा रहा है मुर्तियों को क्रेन द्वारा डुबा कर निकाल लिया जाता है जिस
इतनी आस्था से मां की पूजा अर्चना करने के बाद उनकी प्रतिमा मां के रूप में यहां वहां गिरना और फेक कर चले आना इसे ना हम विसर्जन मानते हैं और नाही विसर्जन का रूप समझ सकते हैं। इससे हम बहुत दुखी हैं हिंदू जनमानस मर्माहत है। बहुत दुखी है। इस पर निर्णय लेना अत्यंत आवश्यक है।