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‘हिंदी भाषा और प्रेमचंद’ विषय पर गहन चर्चा



 27/Sep/25

वाराणसी। मुंशी प्रेमचंद स्मारक एवं शोध संस्थान, लमही के नवगठित कार्यकारी समूह के तत्वावधान में शोधार्थी संवाद का आयोजन किया गया। राजभाषा मास के उपलक्ष्य में हुआ यह आयोजन हिंदी भाषा और प्रेमचंदविषय पर केंद्रित रहा। बीएचयू हिंदी विभाग से शोधार्थी सचिन कुमार गुप्ता, कु. रोशनी, विजय, विकास कुमार ठाकुर, सर्वेश मिश्र और उर्दू विभाग से आफ़रीन बानो ने आयोजन के पहले हिस्से में अपने विचार व्यक्त किए। आयोजन के दूसरे हिस्से में अतिथियों के वक्तव्य हुए। अध्यक्षीय वक्तव्य में शोधार्थियों के वक्तव्यों की सराहना करते हुए प्रो. बलराज पांडेय ने कहा कि प्रेमचंद की रचनाओं में तद्भव के साथ तत्सम शब्दों की बहुलता कम नहीं। उन्होंने गोदान के भाषा संबंधी उद्धरण भी दिए।

मुख्य अतिथि प्रो. बजरंग बिहारी तिवारी ने शोधार्थियों द्वारा रखी की गई जिज्ञासाओं पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि नई पीढ़ी को प्रेमचंद के साहित्य को समझने के लिए हिंदी-उर्दू के साझापन को जानना होगा। विशिष्ट वक्तव्य देते हुए डॉ. क़ासिम अंसारी ने उर्दू और फ़ारसी के अंतर को स्पष्ट करते हुए प्रेमचंद की हिंदी में उर्दू प्रभाव को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि उर्दू और हिंदी में मूल फ़र्क़ लिपि का है। उसका संबंध फ़ारसी के बनिस्बत हिंदी में ज़्यादा है और प्रेमचंद का साहित्य इसका मुकम्मल उदाहरण पेश करता है। प्रतिभागी शोधार्थियों को प्रोत्साहन हेतु अतिथियों द्वारा पुरस्कृत किया गया। स्वागत वक्तव्य देते हुए संस्थान के समन्वयक प्रो. नीरज खरे ने बताया कि संस्थान में विविध कार्यक्रमों की निरंतरता बनी रहेगी। सदस्य डॉ. विवेक सिंह ने केंद्र आगामी गतिविधियों की रूपरेखा प्रस्तुत की। अंत में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. शिल्पा सिंह ने व्यक्त किया।


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