हिंदी दिवस पर यह आयोजन न केवल राव साहब की पत्रकारिता और साहित्य साधना को श्रद्धांजलि बना, बल्कि नई पीढ़ी को यह संदेश भी दे गया कि शब्दों की सच्चाई और गहराई ही पत्रकार को अमर बनाती है।
फ़िल्म और रंगमंच पर उनकी गहरी पकड़ : अनिल रस्तोगी, वरिष्ठ अभिनेता-रंगकर्मी
मुख्य वक्ता एवं वरिष्ठ अभिनेता-रंगकर्मी अनिल रस्तोगी ने कहा कि 1978 से राव साहब को जानने का सौभाग्य मिला। “फ़िल्म और रंगमंच पर उनकी गहरी पकड़ मुझे हमेशा चकित करती थी। बुंदेलखंड और गुजरात के अकाल पर उनके आलेख ऐतिहासिक दस्तावेज़ हैं।”
विक्रम राव ने हिंदी को दिया बहुआयामी स्वरूप : पी.एन. दिवेदी, सूचना आयुक्त
कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्त पी.एन. दिवेदी ने उन्हें पितृ-स्वरूप बताते हुए कहा, “हर पत्रकार एक साहित्यकार होता है। विक्रम राव ने हिंदी को बहुआयामी स्वरूप दिया।” सूचना आयुक्त दिलीप अग्निहोत्री ने कहा कि “विक्रम राव स्वयं में पत्रकारिता के संस्थान थे। उनकी वाक्य-रचना और शब्दों पर पकड़ अद्वितीय थी।”
राव साहब अच्छे लेखकों को फ़ोन कर देते थे बधाई : सुधीर मिश्रा, संपादक
संपादक सुधीर मिश्रा ने याद किया कि राव साहब अच्छे लेखकों को फ़ोन कर न केवल बधाई देते थे, बल्कि रचनात्मक सुझाव भी देते थे। वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह ने कहा, “राव साहब को विषय को अलग दृष्टि से देखने का दुर्लभ वरदान मिला था। डॉ० लोहिया पर उनका शोध अप्रतिम है।”
आईपीएस की नौकरी छोड़ यह साबित किया कि पत्रकार सबसे बड़ा : नवल कांत सिन्हा,
वरिष्ठ पत्रकार नवल कांत सिन्हा ने स्मरण किया कि राव साहब ने आईपीएस की नौकरी छोड़ यह साबित किया कि पत्रकार सबसे बड़ा होता है। उन्होंने कहा कि “सूखी खबर को रोचक बनाना उन्हें बखूबी आता था। वरिष्ठ पत्रकार राजीव श्रीवास्तव ने उनके 62 वर्ष के पत्रकारीय अनुभव को “पत्रकारिता की साधना” कहा और बताया कि वे अंतिम दिन तक लिखते रहे।
राजीव जी ने बताया कि कैसे विक्रम राव जी संवाद-सूत्र से लेकर संपादकों को उनकी लेखनी पर फ़ोन कर शुभाशीष देते थे, जिससे उनका मनोबल बढ़ता था। व्याकरण के प्रति सजग करने का उनका प्रयास अविस्मरणीय - शिवशरण सिंह, वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक परिचर्चा का संचालन वरिष्ठ पत्रकार शिल्पी सेन जी ने किया। उन्होंने राव जी की कई प्रसिद्ध टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए कहा कि नई पीढ़ी को वर्तनी और व्याकरण के प्रति सजग करने का उनका प्रयास अविस्मरणीय है।
कार्यक्रम का समापन वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक शिवशरण सिंह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।मंत्रोचार से कार्यक्रम की शुरुवात हुई जिसमें आदरणीय राम महेश मिश्रा एवं उनके साथी ने योगदान दिया।
कार्यक्रम को सफल बनाने में हिंदी संसथान की संपादक श्रीमती अमिता दुबे, राष्ट्रीय पुस्तक मेले के संयोजक मनोज सिंह चंदेल एवं उषापति त्रिपाठी सहित पत्रकार साथी रजत मिश्रा, नितिन श्रीवास्तव, आदेश शुक्ला, देवराज सिंह, श्रीधर अग्निहोत्री, अशोक मिश्रा, हिमांशु दीक्षित, अंकित श्रीवास्तव, जेपी शुक्ला, दीनदयाल मिश्रा और अतुल शुक्ला का विशेष सहयोग रहा।
">22वें राष्ट्रीय पुस्तक मेले में हिंदी दिवस के अवसर पर “डॉ० के. विक्रम राव: पत्रकार की यात्रा, साहित्यकार/लेखक तक” विषय पर एक परिचर्चा का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की शुरुआत इस विचार से हुई कि हिंदी केवल भाषा नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और आत्मा की पहचान है। स्वर्गीय राव साहब की पत्नी और पूर्व मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ० के. सुधा राव ने उनके साथ बिताए सात दशकों की स्मृतियाँ साझा कीं, जिससे आयोजन का भावपूर्ण आरंभ हुआ।
हिंदी दिवस पर यह आयोजन न केवल राव साहब की पत्रकारिता और साहित्य साधना को श्रद्धांजलि बना, बल्कि नई पीढ़ी को यह संदेश भी दे गया कि शब्दों की सच्चाई और गहराई ही पत्रकार को अमर बनाती है।
फ़िल्म और रंगमंच पर उनकी गहरी पकड़ : अनिल रस्तोगी, वरिष्ठ अभिनेता-रंगकर्मी
मुख्य वक्ता एवं वरिष्ठ अभिनेता-रंगकर्मी अनिल रस्तोगी ने कहा कि 1978 से राव साहब को जानने का सौभाग्य मिला। “फ़िल्म और रंगमंच पर उनकी गहरी पकड़ मुझे हमेशा चकित करती थी। बुंदेलखंड और गुजरात के अकाल पर उनके आलेख ऐतिहासिक दस्तावेज़ हैं।”
विक्रम राव ने हिंदी को दिया बहुआयामी स्वरूप : पी.एन. दिवेदी, सूचना आयुक्त
कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के सूचना आयुक्त पी.एन. दिवेदी ने उन्हें पितृ-स्वरूप बताते हुए कहा, “हर पत्रकार एक साहित्यकार होता है। विक्रम राव ने हिंदी को बहुआयामी स्वरूप दिया।” सूचना आयुक्त दिलीप अग्निहोत्री ने कहा कि “विक्रम राव स्वयं में पत्रकारिता के संस्थान थे। उनकी वाक्य-रचना और शब्दों पर पकड़ अद्वितीय थी।”
राव साहब अच्छे लेखकों को फ़ोन कर देते थे बधाई : सुधीर मिश्रा, संपादक
संपादक सुधीर मिश्रा ने याद किया कि राव साहब अच्छे लेखकों को फ़ोन कर न केवल बधाई देते थे, बल्कि रचनात्मक सुझाव भी देते थे। वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह ने कहा, “राव साहब को विषय को अलग दृष्टि से देखने का दुर्लभ वरदान मिला था। डॉ० लोहिया पर उनका शोध अप्रतिम है।”
आईपीएस की नौकरी छोड़ यह साबित किया कि पत्रकार सबसे बड़ा : नवल कांत सिन्हा,
वरिष्ठ पत्रकार नवल कांत सिन्हा ने स्मरण किया कि राव साहब ने आईपीएस की नौकरी छोड़ यह साबित किया कि पत्रकार सबसे बड़ा होता है। उन्होंने कहा कि “सूखी खबर को रोचक बनाना उन्हें बखूबी आता था। वरिष्ठ पत्रकार राजीव श्रीवास्तव ने उनके 62 वर्ष के पत्रकारीय अनुभव को “पत्रकारिता की साधना” कहा और बताया कि वे अंतिम दिन तक लिखते रहे।
राजीव जी ने बताया कि कैसे विक्रम राव जी संवाद-सूत्र से लेकर संपादकों को उनकी लेखनी पर फ़ोन कर शुभाशीष देते थे, जिससे उनका मनोबल बढ़ता था। व्याकरण के प्रति सजग करने का उनका प्रयास अविस्मरणीय - शिवशरण सिंह, वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक परिचर्चा का संचालन वरिष्ठ पत्रकार शिल्पी सेन जी ने किया। उन्होंने राव जी की कई प्रसिद्ध टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए कहा कि नई पीढ़ी को वर्तनी और व्याकरण के प्रति सजग करने का उनका प्रयास अविस्मरणीय है।
कार्यक्रम का समापन वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादक शिवशरण सिंह के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।मंत्रोचार से कार्यक्रम की शुरुवात हुई जिसमें आदरणीय राम महेश मिश्रा एवं उनके साथी ने योगदान दिया।
कार्यक्रम को सफल बनाने में हिंदी संसथान की संपादक श्रीमती अमिता दुबे, राष्ट्रीय पुस्तक मेले के संयोजक मनोज सिंह चंदेल एवं उषापति त्रिपाठी सहित पत्रकार साथी रजत मिश्रा, नितिन श्रीवास्तव, आदेश शुक्ला, देवराज सिंह, श्रीधर अग्निहोत्री, अशोक मिश्रा, हिमांशु दीक्षित, अंकित श्रीवास्तव, जेपी शुक्ला, दीनदयाल मिश्रा और अतुल शुक्ला का विशेष सहयोग रहा।