वाराणसी, 13 सितम्बर: विश्व आत्महत्या रोकथाम माह के अवसर पर सायकनेक्ट ने अध्ययन-द बुक रीडिंग सोसाइटी, बीएचयू के सहयोग से शनिवार को “फ्रॉम शैडोज़ टू लाइट: चेंजिंग द नैरेटिव टुगेदर” शीर्षक कार्यक्रम का आयोजन किया। यह आयोजन दोपहर 1 बजे से शाम 5 बजे तक अटल इन्क्यूबेशन सेंटर, सीडीसी बिल्डिंग, बीएचयू स्थित सेमिनार हॉल में हुआ। कार्यक्रम का उद्देश्य आत्महत्या से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना, संवाद स्थापित करना और जागरूकता फैलाना था।
कार्यक्रम की शुरुआत सुश्री सोनाली और सुश्री नंदिनी के स्वागत भाषण से हुई। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित श्रीमती पल्लवी गुप्ता- संस्थापक एवं निर्देशक 'आंगन', वरिष्ठ मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ एवं कंसल्टेंट साइकोथेरेपिस्ट- का सम्मान सायकनेक्ट के संस्थापक व सीईओ, एवं कार्यक्रम के निर्देशक शुभम धाकड़ ने किया।
कार्यक्रम की प्रमुख झलकियों में सायकनेक्ट का पहला प्रत्यक्ष मिनी पॉडकास्ट (चैट शो), ओपन माइक सत्र, पोस्टर प्रतियोगिता, वॉल ऑफ होप, बुक स्वैप तथा सिल्विया प्लाथ की पुस्तक ‘द बेल जार’ पर आधारित पुस्तक चर्चा शामिल रही।
मिनी पॉडकास्ट का संचालन सुश्री प्रियंका और प्रांजल ने किया, निर्देशन शुभम धाकड़ द्वारा और शैडो मॉडरेशन राहुल सिंह द्वारा किया गया। चर्चा में आत्मघाती प्रवृत्ति, आवेगशीलता, निराशा, हीनता और बेचैनी जैसी मनोस्थितियों की भूमिका पर विशेष रूप से विचार हुआ। व्यावहारिक सुझाव साझा करते हुए श्रीमती गुप्ता ने कहा- "अगर आपके पास दोस्त या अपने लोग नही है वह आपको शुरु करना चाहिए कि आपके पास पाँच लोग ऐसे हो जिन्हे आप अपना कह सके।" इस सत्र का समापन शुभम धाकड़ द्वारा धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।
इसके बाद ओपन माइक सत्र में प्रतिभागियों ने आत्महत्या रोकथाम और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी अपनी भावनाएँ व रचनात्मक प्रस्तुतियाँ साझा कीं। वहीं पोस्टर प्रतियोगिता में प्रतिभागियों ने “सायलेंस स्पीक्स, कम्पैशन लिसन्स” और “होप वोवन इंटू टुमॉरो” जैसे विषयों पर अपनी रचनात्मकता प्रस्तुत की।
अंत में ‘द बेल जार’ पर आधारित पुस्तक चर्चा में अवसाद, सहायता मांगने के साहस और उससे जुड़े सामाजिक कलंक पर विचार हुआ। एक प्रतिभागी ने कहा- “सहायता माँगना ही अपने आप में बहुत साहस का काम है। यदि कोई ऐसा कर रहा है, तो हमें कम से कम उसका सम्मान करना चाहिए।”