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पं.कमलापति त्रिपाठी 120वीं जयन्ती पर पत्रकार अशोक वानखेड़े को मिला 1 लाख का राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार



 03/Sep/25

पं.कमलापति त्रिपाठी जयन्ती पर आज एक भव्य समागम के बीच एक लाख की धनराशि के साथ कमलापति त्रिपाठी राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार से अलंकृत हुये, समारोह के मुख्य अतिथि तथा सुप्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक एवं स्तम्भकार अशोक वानखेड़े ने कहा कि संविधान एवं लोकतंत्र के बुनियादी मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध पत्रकार होने के नाते पराड़कर जी के महान शिष्य एवं स्वतंत्र पत्रकारिता के हिमायती कमलापति त्रिपाठी के नाम से जुड़ा काशी का यह महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार मेरे लिये भारतरत्न से भी ज्यादा बड़ा सम्मान है। इसके लिये मैं बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी और आयोजक त्रिपाठी फाउन्डेशन का आभारी हूं।

उन्होंने कहा कि त्रिपाठी जी का राजनीति में जाना, पत्रकारिता और साहित्य जगत की क्षति थी, पर वह युग धर्म था। पत्रकारिता के युगधर्म से जुड़ी लेखनी के साथ वह विदेशी सत्ता से लड़े थे और लड़ कर मिली आजादी का संविधान एवं लोकतंत्र गढ़ने वाली संविधान निर्माताओं की मंडली के सदस्य‌ थे। उनकी पत्रकारीय विरासत का तकाजा है कि उस संविधान एवं लोकतंत्र तथा उससे मिले नागरिक अधिकार पर चोट हो, तो सत्ता से उसी तरह सवाल करने की साहसिक पत्रकारिता युगधर्म बन जाती है। उस राह पर चलने में हमें भी भय और बड़े प्रलोभनों से दो चार होना पड़ा है। कभी कभी मन में द्वंद्व आता है कि कब तक लड़ सकते हो, पर कमलापति त्रिपाठी पत्रकारिता पुरस्कार हमें दृढ़ता की प्रेरणा देता रहेगा कि सत्ता दुर्गों से भी बेबाक सवालों का पत्रकारीय धर्म जीवन की आखिरी सांस तक निभाना हमारी जिम्मेदारी है।

वानखेड़े ने कहा कि लोकतंत्र के यज्ञ में आम नागरिक मतदान की आहुति देता है। उसके उस हक की चोरी नहीं हो, इसके लिये भयरहित प्रतिवाद और प्रतिरोध हर नागरिक का धर्म है।

महात्मा गांधी की अहिंसा एवं सत्याग्रह की तथा पराड़कर एवं कमलापति की पत्रकारिता की विरासत निर्भय प्रतिरोध का ही संदेश देती है, जिससे लोकतंत्र को ताकत मिलेगी। इस धर्म से विचलन हमें आने वाली पीढ़ियों के समक्ष अपराधबोध के साथ खड़ा कर देगा। सरकारें आती और जाती रहती हैं, पर लोकतंत्र की, उसके आधार संविधान की एवं उसके बुनियादी मूल्यों की रक्षा हर कीमत चुकाकर भी होनी ही चाहिये।

उन्होंने कहा कि 50 वर्ष या 90 वर्ष पहले का कमलापति त्रिपाठी का साहित्य पढ़िये तो साफ दिखेगा कि वह कैसे दूरदर्शी कल्पनाशील लेखक थे कि जो अंदेशे भविष्य के लिये वह व्यक्त कर रहे थे, वे आज चुनौती की तरह खड़े हैं। उन्हें पढ़ना सही दिशाबोध की प्रेरणा देता है।

समारोह में विशिष्ट अतिथि एवं उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि जनसेवा एवं जनसमर्पण की राजनीति तथा संवैधानिक एवं लोकतंत्रिक आदर्शों हेतु संघर्ष की राजनीति पंडित जी की विरासत है, जो हमें प्रेरणा और दिशा देती है।

विशिष्ट अतिथि एवं चन्दौली के सांसद वीरेन्द्र सिंह ने कहा कि त्रिपाठी जी की कर्मभूमि चन्दौली का संसद में प्रतिनिधित्व मेरे जीवन का गौरव है। चन्दौली के चप्पे-चप्पे पर कमलापति त्रिपाठी के विकास कार्यों के हस्ताक्षर का आभार उनके जन्म के 120 वर्षों बाद भी चन्दौली के प्रत्येक नागरिक के दिल एवं जुबान से व्यक्त होता है।

विशिष्ट अतिथि द्वय पूर्व मंत्री सुरेन्द्र पटेल एवं विधायक आरिफ बेग ने कहा कि पंडित जी मानते थे कि लोकतंत्र कभी बिना धर्मनिरपेक्षता के जिन्दा नहीं रह सकता। आज लोकतंत्र जिन चुनौतियों से घिरा है, उसमें उनके कथन का मर्म बेहद प्रासंगिक है।

समारोह अध्यक्षता जहां विजय शंकर पाण्डेय ने की, वहीं पूर्व विधायक ललितेशपति त्रिपाठी ने स्वागत भाषण किया एवं राजेशपति त्रिपाठी ने पुरस्कार की घोषणा की। विजय कृष्ण अन्नू ने संचालन किया। त्रिपाठी जी पर चर्चा का प्रवर्तन जहां प्रो.सतीश कुमार राय ने किया, वहीं समारोह को सम्बोधित करने वालों में जे.एन. मिश्र- पूर्व आईएएस एवं रेलमंत्री के रूप में त्रिपाठी जी के विशेष सहायक, विजय शंकर चतुर्वेदी, अजय सिंह। अशोक वानखेड़े को एक लाख के पं. कमलापति त्रिपाठी राष्ट्रीय पत्रकारिता पुरस्कार के साथ उनका सम्मान एवं अभिनंदन करने में शामिल थे सर्व अजय राय, राजेशपति, वीरेन्द्र सिंह, सुरेन्द्र पटेल, अंजली त्रिपाठी, सतीश चौबे व बैजनाथ सिंह,भूपेंद्र प्रताप सिंह, प्रजानाथ शर्मा , अनिल वास्तव, भगवती चौधरी कमलाकांत पान्डेय, पुनीत मिश्रा, वैभव त्रिपाठी ,आदि लोग शामिल थे। फाउंडेशन की ओर से सभी विशिष्ट अतिथियों का भी सम्मान किया गया। मंच पर प्रजानाथ शर्मा, पूजा यादव, विजय शंकर मेहता, लक्कड़ यादव आदि सहित कांग्रेस, सपा एवं तृणमूल कांग्रेस के नेता जहां मौजूद रहे, वहीं चन्दौली, सोनभद्र, मिर्जापुर, प्रयागराज, जौनपुर, वाराणसी, गाजीपुर, बलिया आदि से भी कांग्रेस एवं त्रिपाठी जी से जुड़े लोग बड़ी संख्या में जुटे थे।


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