वाराणसी। धान के सीधी बुवाई वाले खेतों में पानी की उपयोगिता बढ़ाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान के वाराणसी स्थित दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क) सेंसर-आधारित सिंचाई प्रबंधन पर फील्ड लेवल पर शोध कर रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के अपने प्रयासों के तहत, वैज्ञानिकगण मिट्टी में नमी की स्थिति, फसल के लिए पानी की जरूरत और सिंचाई के शेड्यूल का गहराई से आकलन कर रहे हैं।
गुरुवार को पनियारा गांव में इस विषय पर विस्तृत फील्ड स्टडी की गई। इस दौरान सस्य,भौगोलिक सूचना प्रणाली, कृषि अर्थशास्त्र और जल विज्ञान के विशेषज्ञों की टीम, जिसमें इरी मुख्यालय के वरिष्ठ जल वैज्ञानिक डॉ. एंटोन उरफेल्स भी शामिल थे, उन्होंने अलग-अलग सिंचाई तरीकों में मिट्टी की नमी की तकनीकी जांच की। वैज्ञानिक दल यह समझने की कोशिश कर रहा है कि मिट्टी में कितनी नमी होने पर डीएसआर वाले खेतों में सिंचाई करना सबसे सटीक और सामयिक होगा।
इस अनुसंधान का मुख्य आधार खेतों में मिट्टी की नमी मापने वाले सेंसर, पानी की गहराई की स्वचालित निगरानी-प्रणाली, और ड्रोन आधारित मैपिंग टूल्स का इस्तेमाल है, ताकि समय और स्थान के अनुसार उच्च गुणवत्ता वाला डेटा इकट्ठा किया जा सके। इन उपकरणों से मिट्टी की नमी में बदलाव, फसल की प्रतिक्रिया और अलग-अलग विकास के अवस्थाओं में पानी की उपयोग-दक्षता का विश्लेषण किया जा रहा है। टीम यह भी देख रही है कि अलग-अलग सिंचाई के अंतराल और समय का फसल की वृद्धि और मिट्टी के स्वास्थ्य पर क्या असर होता है।
आइसार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह ने कहा कि “पानी की कमी वाले इलाकों में धान की खेती को टिकाऊ रूप से बनाए रखने के लिए डेटा आधारित सिंचाई प्रबंधन जरूरी है। उत्तम निगरानी उपकरण और स्थान-विशिष्ट शोध के जरिए इरी ऐसे समाधान विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो पानी की बचत के साथ-साथ उत्पादकता और जलवायु अनुकूलता भी बढ़ाएं।”
इस शोध के जरिये डीएसआर वाले खेतों में पानी की मांग को और अच्छे से समझने में मदद मिलेगी और स्थान-विशिष्ट के अनुसार सिंचाई की उचित सलाह तैयार की जा सकेगी। इस शोध का अंतिम लक्ष्य यह है कि पूरे क्षेत्र में जलवायु-अनुकूल और संसाधन-दक्ष धान उत्पादन प्रणाली को अपनाया जा सके।
डॉ. एंटोन ने कहा कि पानी की कमी वाले इलाकों में सिंचाई प्रबंधन को सुदृढ़ बनाने के लिए मिट्टी में नमी की मात्रा को स्थान और समय के अनुसार बदलाव को विस्तार से समझना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि जब सेंसर से मिले डेटा को भू-स्थानिक विश्लेषण से जोड़ा जाता है, तो क्षेत्र-विशेष के अनुसार सिंचाई प्रोटोकॉल तैयार किए जा सकते हैं, जिससे बड़े स्तर पर सिंचाई की दक्षता और संसाधनों का उपयोग बेहतर हो सकता है।
यह पहल दर्शाती है कि इरी लगातार ऐसी सतत जल प्रबंधन तकनीकों को विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध है, जो किसानों की आजीविका और पर्यावरण संतुलन को सुदृढ़ता दे।