हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाते हैं। इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म भी हुआ था, इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। काशी में आज भी आश्रम, गुरुकुल और मठ में गुरु- शिष्य परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है।
गंगा किनारे मणिकर्णिका घाट पर स्थित सतुआ बाबा आश्रम में महामंडलेश्वर संतोष दास की पूजा के लिए भोर से ही भक्त कतार में लगे रहे। भक्तों ने गुरु को तुलसी माला पहना कर फल और मीठा का भोग लगाने के बाद आरती उतार कर आशीर्वाद लिया। महामंडलेश्वर संतोष दास ने कहा कि गुरु को शिष्य की और शिष्य को गुरु की जीवन के हर पड़ाव में जरूरत पड़ती है। कला हो, संस्कृति हो या कोई भी विषय हो गुरु शिष्य का जीवन एक दूसरे से जुड़ा हुआ है। हर भक्त को जीवन में गुरु के मार्गदर्शन की जरूरत पड़ती है।