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प्रगति का आधार-नवाचार, समावेश और पहचान का एक दशक : गिरिराज सिंह, केंद्रीय वस्त्र मंत्री, भारत सरकार



 01/Jul/25

हम वस्त्रों की बात अक्सर व्यापार की भाषा जैसे निर्यात, घाटा और अधिशेष के रूप में करते हैं। लेकिन यह संकीर्ण दृष्टिकोण उस पैमाने से चूक जाता है जो वास्तव में काम कर रहा है। भारत के वस्त्र क्षेत्र की ताकत केवल उसके विदेशी शिपमेंट में ही नहीं है। यह कहीं ज़्यादा स्थायी चीजों में निहित है। बढ़ती जनसंख्या, एक ऐसा घरेलू ईंजन है जो धीमे होने से इनकार करता है और यह विरासत और नवाचार दोनों के उभरते हुए स्वभाव को दर्शाता है। यह 143 करोड़ भारतीयों द्वारा संचालित है जो अपने पहनावे, अपने घरों और अपनी परंपराओं में आराम, पहचान और आकांक्षा बनाए रखते हैं।

इस क्रांति का प्रसारण नहीं किया गया। इसे बुना गया। जहां दुनिया डिजिटल सफलताओं और बुनियादी ढांचे में तेजी को ट्रैक कर रही थी, वहीं भारत के करघों पर कुछ शांत और गहरा सामने आ रहा था। जिस को कभी विरासत उद्योग के रूप में खारिज कर दिया गया था आज प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में उसे लचीलेपन, नवाचार और गौरव की शक्ति में बदल दिया गया है। भागलपुर के चमकते रेशम से लेकर पानीपत के पुनर्चक्रित धागों तक, परिवर्तन धीर, स्थिर और स्थायी है।

यह पुनरुत्थान नहीं है। यह पुनर्जागरण है। 2047 तक एक विकसित भारत के निर्माण के लिए नींव को कंक्रीट और इस्पात से आगे ले जाना होगा। उन्हें समुदायों, आजीविका और सांस्कृतिक निरंतरता पर आधारित होना चाहिए। वस्त्र क्षेत्र की तुलना में इस दृष्टिकोण को कहीं और अधिक स्पष्ट रूप से महसूस नहीं किया गया है। 4.6 करोड़ लोगों के साथ दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता होने के नाते, यह एक उद्योग से अधिक है। यह कौशल, पहचान और अवसरों का जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र है। कभी पिछड़ा समझे जाने वाला यह उद्योग धीरे-धीरे आधुनिक आर्थिक इंजन में बदल गया है। अब पारंपरिक बुनाई वैश्विक बाजारों में प्रवेश कर रही है, जबकि तकनीकी वस्त्र एयरोस्पेस और कृषि में अपनी पैठ बना रहे हैं। और जमीनी स्तर पर, प्रत्येक करघा और चरखा गरिमा, नवीनीकरण और शांत शक्ति की गहरी कहानी दर्शाता है।

विकास का एक दशक: आंकड़े जो बताते हैं एक कहानी

जब हमारी सरकार ने 2014 में कार्यभार ग्रहण किया था, तो भारत का वस्त्र क्षेत्र विरासत में निहित एक ऐसे चौराहे पर खड़ा था जो वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता में दिशाहीन था। कभी ठहराव से चिह्नित, वस्त्र क्षेत्र के पैमाने और संरचना को समर्थ के तहत लक्षित कौशल, कपास उत्पादकता मिशन, पीएलआई योजना और पीएम मित्र पार्क के जरिए विश्व स्तरीय बुनियादी ढांचे के मिशन के रूप में नए युग के निवेश के माध्यम से फिर से बुना गया है।

भारत के वस्त्र क्षेत्र में रोजगार 2014 में 3 करोड़ से तेजी से बढ़कर आज 4.6 करोड़ हो गया है, जिससे कुशल और अकुशल श्रम को अवशोषित करने के अवसर और क्षमता दोनों में मजबूत विस्तार हुआ है। घरेलू मांग में वृद्धि और उत्पादन की तेजी से प्रेरित होकर बाजार का आकार 112 बिलियन डॉलर से बढ़कर 176 बिलियन डॉलर हो गया है। परिधान निर्यात लंबे समय से इस क्षेत्र की आधारशिला है, वह 14 बिलियन डॉलर से बढ़कर 18 बिलियन डॉलर हो गया है, जो मूल्यवर्धित उत्पादन में लगातार लाभ को दर्शाता है। काफी समय से लंबित भारत-यूके एफटीए को आखिरकार प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में अंतिम रूप दिया गया है। यह भारत के श्रम-प्रधान वस्त्र क्षेत्र के लिए विनिर्माण और निर्यात के एक वैश्विक केंद्र के रूप में राष्ट्र के उत्थान के लिए द्वार खोलकर निर्णायक बढ़त का वादा करता है।

लेकिन ये मात्र आंकड़े नहीं हैं बल्कि उससे कहीं बढ़कर हैं। वे एक रणनीतिक रीसेट का संकेत देते हैं। अस्थायी उपायों से दीर्घकालिक दृष्टिकोण की ओर बढ़ते हुए, हमारी सरकार ने मानव निर्मित रेशों, नए युग के रेशों और तकनीकी वस्त्रों को अपनाने के लिए उद्योग के दायरे को उसके कॉटन कोर से आगे बढ़ाया है। जिन क्षेत्रों को कभी अनदेखा किया गया था, वे अब वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार हैं। यह विजन अब केवल घरेलू धागों तक सीमित नहीं है। यह भारत के वस्त्रों को लचीलेपन, कौशल और स्थिरता के साथ वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में एकीकृत करने पर आधारित है। यह परिवर्तन संयोग से नहीं हुआ है। यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रित शासन, साहसिक सुधारों और अटूट प्रतिबद्धता का परिणाम है।

कपास के खेतों से कार्बन फाइबर तक विस्तार

भारत की वस्त्र गाथा आज पारंपरिक धागों से कहीं आगे है, जो कपास के खेतों से लेकर कार्बन फाइबर तक, हथकरघा से लेकर उच्च निष्पादन वाले तकनीकी वस्त्रों तक फैली हुई है। जमीनी स्तर पर, सरकार ने प्राकृतिक रेशों को अभूतपूर्व सहायता प्रदान की है। कपास उत्पादकता के लिए नए मिशन के साथ, भारत का लक्ष्य 2030 तक कपास उत्पादन को 5.70 से 7.70 एमएमटी और उत्पादकता को 439 से 612 किलोग्राम/हेक्टेयर तक बढ़ाना है। वर्तमान में, कपास वैश्विक कपास निर्यात बाजार का 3.16 प्रतिशत और कस्तूरी कपास का सिर्फ़ 1 प्रतिशत हिस्सा है। कपास उत्पादकता मिशन के तहत, हमारा लक्ष्य 2030 तक इसे प्रीमियम वैश्विक कपास निर्यात का 10 प्रतिशत बनाना है। पिछले 11 वर्षों में भारतीय कपास निगम द्वारा कपास की खरीद में 338 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि मध्यम और लंबे रेशे वाले कपास के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य दोगुने से अधिक हो गए हैं, जिससे किसानों को सीधा लाभ मिल रहा है। रेशम उत्पादन में 58 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है। यहां तक कि जूट, जो कभी एक घटता हुआ खंड था, उसमें भी नई गति देखी गई है। जूट निर्यात 2014 में 1,470 करोड़ से दोगुना होकर 2024 में ₹3,000 करोड़ से अधिक हो गया है, जो विविधिकृत जूट उत्पादों की मांग में वृद्धि के कारण है, जिनका निर्यात एक दशक में तीन गुना से अधिक हो गया है।

जैसे-जैसे भारत प्राकृतिक रेशों के क्षेत्र में अपनी जड़ें मजबूत करता है, भविष्य के लिए वह निर्णायक हो रहा है। 10,683 करोड़ रुपये के परिव्यय और 3 लाख से अधिक नौकरियों के सृजन के साथ उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना ने भारत को पीपी. किटों के वैश्विक उत्पादक के रूप में स्थापित करने में मदद की है। तकनीकी वस्त्र बाजार, जो कभी निर्यात में लगभग अस्तित्वहीन और मामूली स्तर पर था, 2025 में अनुमानित 26 बिलियन डॉलर तक बढ़ गया है। नगण्य निर्यात से, भारत ने अब आउटबाउंड व्यापार में 3 बिलियन डॉलर दर्ज किया है। एग्रोटेक और मेडिटेक से, भारत इस उच्च-मूल्य, नवाचार-संचालित क्षेत्र में खुद को एक उभरते वैश्विक नेतृत्वकर्ता के रूप में स्थापित करके तकनीकी वस्त्रों के सभी बारह क्षेत्रों में निर्णायक प्रगति कर रहा है।

सात पीएम मित्र पार्क एकीकृत प्लग एंड प्ले, वन स्टॉप सॉल्यूशन टेक्सटाइल हब के रूप में विकसित किए जा रहे हैं, जो फाइबर से लेकर फैशन तक की पूरी मूल्य श्रृंखला को एक साथ लाएंगे। इनसे कुल मिलाकर 70,000 करोड़ रुपये का निवेश आने और 22 लाख से ज़्यादा नौकरियाँ सृजित होने की उम्मीद है, 22,000 करोड़ रुपये का प्रावधान पहले ही किया जा चुका है। पीएम मित्र पार्कों के अलावा, एकीकृत टेक्सटाइल पार्कों की योजना के तहत 50 टेक्सटाइल पार्क विकसित किए गए हैं, जिनमें 15,000 करोड़ रुपये का निवेश आया है और 1.3 लाख नौकरियाँ सृजित हुई हैं।

कपास किसान से लेकर कार्बन फाइबर इनोवेटर तक, मोदी सरकार आत्मविश्वास के साथ इस पटकथा को फिर से लिख रही है। कृषि से लेकर एयरोस्पेस तक, भारत का टैक्सटाइल ट्रांसफॉर्मेशन सही मायनों में विकसित भारत की प्रगति को आपस में जोड़ रहा है।

कृषि से लेकर भविष्य तक, अनुसंधान और विकास भारत की हरित वस्त्र अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है:

अनुसंधान और नवाचार लंबे समय से भारत के वस्त्र क्षेत्र में अज्ञात विषय थे। पिछली सरकारों के तहत, उद्योग पारंपरिक रेशों तक सीमित रहा, जिसमें आधुनिकीकरण या स्थिरता लाने के लिए बहुत कम प्रयास किए गए। मोदी सरकार ने अपनी वस्त्र रणनीति के मूल में अनुसंधान एवं विकास को रखकर और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता के साथ पर्यावरणीय जिम्मेदारी को मिलाने वाले अगली पीढ़ी के रेशों की खोज का समर्थन करके इस जड़ता को बदल दिया है। 2020 से, राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन के तहत ₹ 509 करोड़ की 168 शोध परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जो उपेक्षा से रणनीतिक निवेश की ओर निर्णायक बदलाव का संकेत है।

2030 तक इस क्षेत्र के मूल्य को दोगुना करके 350 बिलियन डॉलर करने के लक्ष्य के साथ, स्थिरता अब एक विचार नहीं है। यह बहुत महत्वपूर्ण समय पर हुआ है। जैसे-जैसे फास्ट फैशन गति पकड़ रहा है, 2030 तक इसके 50-60 बिलियन डॉलर के बाजार में विकसित होने की उम्मीद है। इसके साथ ही तेजी से बदलते रुझानों के कारण टेक्सटाइल अपशिष्ट में भी वृद्धि हो रही है। इसके जवाब में भारत ने एक सर्कुलर और टिकाऊ अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए तेजी से कदम बढ़ाया है। पानीपत अब प्री और पोस्ट-कंज्यूमर टेक्सटाइल रीसाइक्लिंग के लिए दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बनकर उभरा है, जो टिकाऊ विनिर्माण में भारत के नेतृत्व को दर्शाता है। आज, यह दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा पुनर्नवीनीकरण फाइबर उत्पादक है। यह सालाना 40 बिलियन से अधिक प्लास्टिक की बोतलों को परिवर्तित करता है। 90 प्रतिशत से अधिक पीईटी बोतलों को रीसाइकिल किया जाता है, जो वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक में से एक है। सतत प्रथाओं को और मजबूत करने के लिए, जीरो लिक्विड डिस्चार्ज (जेडएलडी) सिस्टम और कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (सीईटीपी) को बढ़ावा देने के लिए एकीकृत प्रसंस्करण विकास योजना के तहत छह परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। यह गति व्यापक जैव अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रही है, जो राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद में 4.25 प्रतिशत का योगदान देती है। इसका मूल्य 165.7 बिलियन डॉलर है और आने वाले वर्षों में इसके लगभग दोगुना होने का अनुमान है। इस कायाकल्प का प्रमुख स्तंभ वैकल्पिक रेशों का उदय है। रैमी, मिल्कवीड, फ्लैक्स, सिसल प्राकृतिक सामग्री हैं जो उच्च प्रदर्शन और जलवायु के अनुकूल दोनों गुणों से भरपूर हैं। मिल्कवीड को कभी कृषि खरपतवार माना जाता था, इसे अब हाइ-एंड उपयोग के लिए इन्सुलेशन-ग्रेड वस्त्र में परिष्कृत किया जा रहा है।

जैव प्रौद्योगिकी को पारंपरिक ज्ञान के साथ जोड़कर और अनुसंधान निवेश को बढ़ाकर, मोदी सरकार भारत के वस्त्र उद्योग के भविष्य को नया आकार दे रही है। यह ग्रामीण आजीविका को मजबूत करेगा, स्थिरता में अग्रणी होगा और आत्मनिर्भर भारत के साथ तालमेल बिठाएगा।

स्थानीय से वैश्विक तक, भारत के हस्तशिल्प का उत्थान

भारत में विरासत अब एक संरक्षित स्मृति नहीं है, यह एक गतिशील आंदोलन है। यह पहचान, सशक्तिकरण और आर्थिक नवीनीकरण का स्रोत बन गया है। यह परिवर्तन हथकरघा क्षेत्र से कहीं अधिक स्पष्ट दिखाई देता है। गणतंत्र दिवस पर, ई-पहचान कार्ड के शुभारंभ ने एक नवीन क्रांति को चिह्नित किया। 35 लाख बुनकरों के लिए डिजिटल रजिस्ट्री के रूप में शुरू हुआ यह अभियान तब से एक गतिशील आंदोलन में बदल गया है, जिसने 35,000 नए बुनकरों को अपने साथ जोड़ा है। यह समावेश से कहीं अधिक है, यह पुनरुद्धार है। करघे घरों में वापस आ रहे हैं और नई पीढ़ी इसे गर्व के साथ अपना रही है। हस्तशिल्प क्षेत्र में, 30 लाख से अधिक कारीगरों को पहचान कार्ड के तहत पंजीकृत किया गया है, जिससे औपचारिक पहचान और सरकारी सहायता तक पहुँच सुनिश्चित हुई है।

2014 से पहले, मुद्रा योजना के माध्यम से सहायता केवल 1.25 लाख बुनकरों तक पहुँचती थी। आज, 3


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