काशी में विशेषज्ञों ने किया श्वांस रोगों के सरल ईलाज पर मंथन
ब्रेथ ईजी चेस्ट फाउंडेशन फॉर ह्यूमैनिटी, ब्रेथ ईजी टी.बी, चेस्ट, एलर्जी केयर अस्पताल (अस्सी, वाराणसी) एवं आई.एम्.ए (वाराणसी चैप्टर) के संयुक्त तत्वाधान से 29 जून 2025 (रविवार) को होटल रेडिसन, वाराणसी में एक चिकित्सीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमे विश्व विख्यात चिकित्सकों ने वर्तमान स्थिति के सबसे गंभीर व महत्वपूर्ण विषय को चुनते हुए गंभीर श्वांस की बीमारी पर परिचर्चा की I इस चिकित्सकीय कार्यक्रम का उदघाटन मुख्य अतिथि डॉ. एस.एन. संखवार (निदेशक - आई.एम.एस., बनारस हिंदू विश्वविद्यालय), गेस्ट ऑफ ऑनर डॉ. सिद्धार्थ राय (चेयरमैन – हेरिटेज इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस), डॉ राजेंद्र प्रसाद (प्रोफेसर व विभागाध्यक्ष – एरा मेडिकल कॉलेज), चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन, पुणे के डायरेक्टर – डॉ संदीप साल्वी, एस.ए.जी अस्पताल, नई दिल्ली में श्वसन चिकित्सा के प्रमुख डॉ जे.के सैनी, पी.एस.आर.आई हॉस्पिटल के चेयरमैन– डॉ जी.सी खिलानी, जी.एस.वी.एम् हॉस्पिटल कानपुर के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. वी.एन त्रिपाठी, ब्रेथ इज़ी हॉस्पिटल, वाराणसी के वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट - डॉ एस के पाठक, सीएमआरआई, कोलकाता के वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट-डॉ राजाधर, फोर्टिस अस्पताल कोलकता में श्वसन चिकित्सा की प्रमुख– डॉ सुष्मिता, सी.एम्.सी वेल्लोर की श्वसन चिकित्सा प्रमुख– डॉ.ऋचा ने संयुक्त रूप ने दीप प्रज्वलित करके किया I तदोपरांत अतिथियों ने ब्रेथ ईजी द्वारा प्रकाशित बी.ई टाइम्स पत्रिका का विमोचन किया I
मुख्य अतिथि डॉ. एस.एन. संखवार (निदेशक - आई.एम.एस., बनारस हिंदू विश्वविद्यालय), ने डॉ. एस.के. पाठक द्वारा आयोजित इस चिकित्सकीय संगोष्ठी की सराहना करते हुए कहा कि – “ऐसे आयोजन न केवल चिकित्सकों को नवीनतम शोध और चिकित्सा प्रथाओं से परिचित कराते हैं, बल्कि चिकित्सक समुदाय के बीच आपसी संवाद और अनुभव-साझाकरण को भी बढ़ावा देते हैं। उन्होंने इस आयोजन को 'ज्ञानवर्धक, उपयोगी एवं प्रेरणादायी' करार दिया और डॉ. पाठक तथा उनकी टीम को इस सफल आयोजन के लिए हार्दिक बधाई दी।"
गेस्ट ऑफ ऑनर डॉ. सिद्धार्थ राय, चेयरमैन – हेरिटेज इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, ने इस चिकित्सकीय संगोष्ठी की उत्कृष्टता की प्रशंसा करते हुए कहा कि -"इस संगोष्ठी ने चिकित्सकों, शोधकर्ताओं और युवा छात्रों के बीच ज्ञान-विनिमय की एक प्रेरणादायी परंपरा को प्रोत्साहित किया है। डॉ. पाठक और उनकी टीम का यह प्रयास चिकित्सा समुदाय के लिए अत्यंत सराहनीय है, जो समाज की बेहतरी में भी योगदान देगा।"
रेस्पिरेटरी कानक्लेव कांफ्रेंस 2025 के ऑर्गनाइजिंग सेक्रेट्ररी व् वरिष्ठ श्वांस एवं टी.बी रोग विशेषज्ञ डॉ. एस.के पाठक ने बताया कि - “ब्रेथ ईजी के प्रयास से भारत में बारहवीं बार इस चिकित्सीय संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा हैं I इस चिकित्सकीय संगोष्ठी का उद्देश्य चिकित्सको को गंभीर श्वांस बीमारी के प्रति नयी पद्दिती की जानकारी के बारे में अवगत कराना हैं, जिससे मरीजों को श्वांस जैसी गंभीर बिमारियों से कम समय तथा कम खर्च में आसानी से ईलाज मिल सके I डॉ पाठक ने गंभीर श्वांस बीमारी के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी और इससे बचने के विषय में भी प्रकाश डाला I ”
चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन, पुणे के डायरेक्टर– डॉ संदीप साल्वी ने बताया– “क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) फेफड़ों की एक दीर्घकालिक बीमारी है। यह मुख्य रूप से धूम्रपान, प्रदूषण और वायुजनित विषाक्त पदार्थों के कारण होता है। बुजुर्गों में यह समस्या अधिक गंभीर हो सकती है, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ फेफड़ों की क्षमता घटती है। इनहेलर और ब्रोंकोडायलेटर्स जैसी दवाएं सांस लेने में राहत पहुंचाती हैं। नियमित फिजियोथेरेपी और योग फेफड़ों को मजबूत करने में मदद कर सकते हैं। प्रदूषण और धूम्रपान से बचाव करना इस बीमारी के नियंत्रण में सहायक हो सकता है। गंभीर मामलों में ऑक्सीजन थेरेपी का उपयोग किया जाता है। सही देखभाल और जीवनशैली में सुधार से COPD मरीजों की जीवन गुणवत्ता बेहतर हो सकती है।“ एस.ए.जी अस्पताल, नई दिल्ली में श्वसन चिकित्सा के प्रमुख डॉ जे.के सैनी ने इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी के बारे में बताया– “इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी एक विशेष चिकित्सा क्षेत्र है, जो फेफड़ों, श्वसन मार्ग और प्लूरा से जुड़ी समस्याओं का कम आक्रामक तरीकों से निदान और उपचार करता है।“ डॉ सैनी ने आगे बताया – “इसमें ब्रोंकोस्कोपी जैसी तकनीक का उपयोग किया जाता है, जिससे डॉक्टर वायुमार्ग को देख सकते हैं और बायोप्सी या अवरोध को हटा सकते हैं। इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी चिकित्सा क्षेत्र में तेजी से विकसित हो रहा है और श्वसन संबंधी रोगों के प्रबंधन में अत्यंत उपयोगी साबित हो रहा है।“
पी.एस.आर.आई हॉस्पिटल के चेयरमैन– डॉ जी.सी खिलनानी ने बताया – “इंटरस्टीशियल लंग डिजीज (ILD) फेफड़ों की एक गंभीर बीमारी है, जिसमें फेफड़ों की इंटरस्टीशियल ऊतक में सूजन और स्कारिंग होती है। यह ऑक्सीजन के प्रवाह को बाधित करता है, जिससे सांस लेने में कठिनाई, सूखी खाँसी और थकान जैसी समस्याएँ होती हैं।“ डॉ खिलानी ने आगे बताया – “प्रदूषण, धूम्रपान, संक्रमण और ऑटोइम्यून रोग ILD के मुख्य कारण हो सकते हैं। इसका निदान एचआरसीटी स्कैन, फेफड़ों की कार्यक्षमता परीक्षण और बायोप्सी के माध्यम से किया जाता है।“
जी.एस.वी.एम् हॉस्पिटल कानपुर के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. वी.एन त्रिपाठी ने बताया – “बाल रोग में अस्थमा की पहचान करने के लिए मरीज को बार-बार खांसी, घरघराहट (wheezing), सांस लेने में तकलीफ, और सीने में जकड़न जैसे लक्षण दिखते हैं, इसके अलावा लक्षणों का रात में बढ़ना।, पारिवारिक इतिहास में अस्थमा या एलर्जी का होने से पुष्टि किया जा सकता हैं कि बच्चे को अस्थमा हैं फिर उसके बाद आधुनिक प्रणाली द्वारा उसका ईलाज किया जाता हैं I”
फोर्टिस अस्पताल कोलकता में श्वसन चिकित्सा की प्रमुख डॉ सुष्मिता ने सी.ओ.पी.डी के ईलाज के बारे में बताया जिसमे उन्होंने बताया– “सीओपीडी का इलाज केवल दवाओं से नहीं, बल्कि समग्र देखभाल और जागरूकता से संभव है। रोग की स्थिरता ही वह अगला कदम है, जो रोगी को स्वतंत्र, सक्रिय और सम्मानजनक जीवन जीने में मदद करता है।“
सी.एम्.सी वेल्लोर की श्वसन चिकित्सा प्रमुख डॉ.ऋचा ने बताया– “पल्मोनरी इमेजिंग आधुनिक फेफड़ों की चिकित्सा का एक अभिन्न हिस्सा है। यह न केवल रोग की पहचान में सहायक है, बल्कि उपचार की योजना और रोग की प्रगति की निगरानी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।“
डॉ. राजेंद्र प्रसाद (प्रो. एवं विभागाध्यक्ष– एरा मेडिकल कॉलेज) ने चेस्ट सम्बंधित कुछ चुनिन्दा केस के बारे में चिकित्सको को जानकारी दी I डॉ प्रसाद ने आगे बताया कि –“इस चिकित्सीय संगोष्ठी का आयोजन, ब्रेथ ईजी के प्रयास से एक सराहनीय कार्य हैं I यह चिकित्सीय संगोष्ठी पूर्वांचल के चिकित्सको को गंभीर श्वांस के बीमारी के प्रति अपडेट करने में सहायक होगी I विगत कुछ वर्षो में ब्रेथ ईजी व डॉ. एस.के पाठक का चिकित्सीय क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान हेतु भारत सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की मुलाकात एक गौरवपूर्ण बात हैं I” इसके अलावा डॉ. राजेंद्र प्रसाद चेस्ट मेडिसिन के कुछ गोल्डन पॉइंट्स को नए चिकित्सको के सामने विश्लेषण किया और बताया सही समय में सही ईलाज से मरीजों का भला हो सकता हैं जिससे मरीज को कोल्लेप्स होने से बचाया जा सकता हैं I ”
कार्यक्रम के अंत में रेस्पिरेटरी कॉन्क्लेव कांफ्रेंस 2025 के ओर्गैनिज़िंग सेक्रेटरी डॉ. एस.के पाठक ने सभी फैकल्टी को स्मृतिचिन्ह एवं अंगवस्त्रम देकर सम्मानित किया और ऑनलाइन के मध्यम से जुड़े हुए सभी मेडिकल एवं नॉन मेडिकल लोगो को जुड़ने के लिए धन्यवाद किया I