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मेरे लिए तो हर दिन कृष्ण से वियोग का दिन है, उस वियोग में ही योग  छीपा है : मोरारी बापू, कथा वाचक



 21/Jun/25

- ईर्ष्या, निन्दा और द्वेष को छोड़ो, यही भजन का राज मार्ग है।

आज के आठवें दिन "मानस सिंदूर" के आरंभ में बापू ने 21 जून "विश्व योग दिवस" ​​पर विश्व को बधाई दीं। बापू ने अपनी शुभकामनाएँ व्यक्त करते हुए कहा कि - "हर घर में एक योगी हो, प्रभु प्रेम का वियोगी हो, दूसरों के लिए सहयोगी हो और घर में कोई रोगी न हो।"

योग आवश्यक है, लेकिन परमात्मा के प्रति प्रेम और परस्पर प्रेम उससे भी अधिक आवश्यक है। यदि प्रेम नहीं है, तो योग-वियोग, ज्ञान-अज्ञान.... कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। हिन्दू सनातन धर्म सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह सबका सम्मान करता है, सबका स्वीकार करता है। यह आकाश के समान विशाल है।  "सिंदूर दर्शन" में आगे बढ़ते हुए पूज्य बापू ने कहा कि वनस्पति में भी सिंदूर का वृक्ष होता है। कथा के दौरान बापू बनारस में जहां निवास करते हैं, उस स्थान पर कल बापू ने सिंदूर का पौधा लगाया। फल में एक प्रकार के आम का नाम "सिंदूरी आम" है। बापू ने सिंदूर के तीन प्रकार बताएं। पहला, आधिभौतिक, दूसरा, आधिदैविक और तीसरा आध्यात्मिक। 

दुल्हन की मांग में सिंदूर भरने की क्रिया आधिभौतिक होती है। सिंदूरी जीवन के कई रंग होते हैं, यह एक रंग का नहीं होता। सुख-दुख, मान-अपमान, शोक-आनंद रूप, इंद्र धनुष की तरह जीवन के सात रंग होते हैं। जब आप गृहस्थी में प्रवेश करते हैं, तो आपको कई रंगों से गुजरना पड़ता है। हममें "रंग साधना"  होनी चाहिए! 

सिंदूर बलिदान -समर्पण का प्रतिक है। जीवन भर किसी का हो जाना ही समर्पण है। शहिद होना भी एक सिंदूर है- शहादत अर्थात् सिंदूर का केसरिया रंग। सिंदूर का एक और प्रकार है- आधि दैविक। शिव और पार्वती के बीच किया गया सिंदूर दान आधि दैविक है। महादेव अमर हैं, जन्म-मृत्यु से परे हैं, इसलिए माता पर्वतजी का सौभाग्य अखंड है। देवताओं की अमरता भी अधि दिव्य सिंदूर है।

तीसरे प्रकार का सिंदूर है- आध्यात्मिक। भगवान राम माता जानकी की मांग में सिंदूर दान करते हैं, वह पुरुष द्वारा प्रकृति को दिया गया आध्यात्मिक सिंदूर है। जब भगवान भक्ति की मांग में सिंदूर देते हैं, जब शक्तिमान शक्ति की मांग में सिंदूर देते हैं,   शांति की मांग में जब आत्मबल-प्राणबल-भजनबल- आध्यात्मिक बलका सिंदूर परम शक्तिमान भरता है, वह आध्यात्मिक सिंदूर है।

मीरां कृष्ण को अपना पति मानती हैं। कृष्ण "पूर्ण काम" हैं, निष्काम हैं। मीरा कहती हैं कि "मोर पंख धारण करने वाले गिरधर गोपाल मेरे पति हैं। मैं ऐसा शृंगार करुंगी, जिससे वे प्रसन्न हो जाएं। यह आध्यात्मिक सिंदूर है।

सिंदूर नारी का शृंगार है, लेकिन पुरुषों को भी इसे सीखना होगा। अगर कोई बुद्ध पुरुष हमें अपनाता है, स्वीकार करता है, तो वह हमारा सिंदूर है! सिंदूर का ऐसा उपहार पाकर हम भी कबीरजी की तरह नित्य नूतनता का अनुभव कर सकते हैं। 

बापू ने आत्म निवेदन करते हुए कहा कि - "मैं नित्य प्रसन्न हूँ, क्योंकि मेरे बुद्ध पुरुष ने मेरी माँग भरी है।" काकभूषण्डिजी ने गरुड़जी के कान में कथा रूपी सिंदूर दान करके उन्हें धन्य कर दिया। शिवजी ने पार्वतीजी को कथा सुनाई और उन्हें शाश्वति प्रदान की।  जब हम बुद्ध पुरुष के शरणागत बन जाते हैं, तब वे हमारी रक्षा करने की जिम्मेदारी स्वीकार कर लेते है। आध्यात्मिक आनंद हमें कृतकृत्य कर देता है। महाभारत में अर्जुन को भगवान कृष्ण ने और हनुमानजी को रामजी ने सुहागी बनाये है! हनुमानजी ने अपने शरीर पर सिंदूर लगाया। अर्जुन ने भले ही सिंदूर न लगाया हो, लेकिन कृष्ण के आदेश पर उन्होंने युद्ध में "केसरिया कर दिया"! 

कजरी वन में अर्जुन और हनुमानजी की मुलाकात की कथा कहकर बापू ने महाभारत युद्ध में अर्जुन की ध्वजा पर श्री हनुमानजी के बैठने के कारण की रोचक कथा सुनाई और दिखाया कि श्री हनुमानजी ने ही रामायण और महाभारत दोनों युद्ध जीता दिये। बापू ने कहा कि भगवान की कथा का श्रवण करने से ग्रंथियां छूट जाती हैं और जो निर्ग्रंथ हो जाता है, उसका मन फिर कृष्णार्पित हो जाता है! ऐसा व्यक्ति संतुष्ट रहता है, नाचता है, गाता है और प्रसन्न रहता है। 

जीवन एक प्रवाह है, एक धारा है, इसलिए बहते रहो! हम अनावश्यक चर्चा करते हैं और मुख्य बात खो जाती है। 

कथा में आओ, फिर कोई मांग मत करो। कथा की व्यवस्था को स्वीकार करो। हम किसी के लिए बोझ मत बनो। कथा एक कल्पतरु है, जिस से जो चाहोगे वो पाओगे। कथा कामधेनु है, जो कभी दूध देना बंद नहीं करेगी! कथा में आओ तो सिर्फ कथा के लिए आओ। कथा को केंद्र में रखो। हमेशा याद रखें कि "हम बापू की व्यासपीठ के फ्लावर्स हैं। कथा रूपी प्रेम यज्ञ के हम समिध हैं।"

 भरतजी भगवान राम से मिलने चित्रकूट जाते हैं, इस संदर्भ में बापू ने कहा कि परमात्मा की प्राप्ति की यात्रा में पांच बाधाएं आती हैं- एक, व्रत में बाधाएं। दूसरी, समाज का विरोध। तीसरी, ऋषि द्वारा परीक्षा। चौथी, देवताओं की ओर से बाधाएं और पांचवीं बाधा है- किसी अपने से ही आपका विरोध करना। 

कथा क्रम में प्रवेश करने से पहले बापू ने राम नाम संकिर्तन के साथ सभी श्रोताओं को रास के रस में लीन कर दिया।

कथा के क्रम में बापू ने काकभुषण्डिजी के न्याय से बालकाण्ड के बाद कथा को आगे बढ़ाते हुए अयोध्या काण्ड, अरण्य काण्ड, सुन्दर काण्ड और लंका काण्ड की कथा को  संक्षिप्त रूप में गाया। इसके साथ ही बापू ने आज के आठवें दिन की कथा में अपने प्रवचन को विराम दिया।

 

रामचरित मानस के सातों काण्डों का विशेष परिचय भी है। बालकाण्ड "प्रथा" का काण्ड है, इसमें अनेक प्रकार की प्रथाएँ देखने को मिलती हैं। अयोध्या काण्ड में "व्यथा" है। व्यथा से परिपूर्ण अयोध्या काण्ड के गान से संसार की व्यथा मीट जाती है! अरण्य काण्ड में "पंथा" की कथा है। इसमें पंथ-मार्ग दिखाया गया है। किष्किन्धा काण्ड "व्यवस्था" का काण्ड है। इसमें माता सीताजी की खोज की व्यवस्था की गई है। सुन्दर काण्ड "अवस्था" का काण्ड है। माता सीताजी अशोक वाटिका में शोकावस्था हैं, त्रिजटा की भी यहाँ एक विशेष अवस्था है। लंका काण्ड "वृथा" काण्ड है। इसमें वृथा तत्वों का नाश किया जाता है। आसुरी सम्पदा वृथा है, लंका काण्ड में दुरित का नाश किया जाता है। तथा उत्तरकाण्ड "निर्ग्रन्था" काण्ड है - जो हमें निर्ग्रन्थ बनाता है - ग्रन्थिमुक्त बनाता है।

-- आध्यात्मिक सिंदूर वह है, जो हमें कृतकृत्य करता है। 

-- भगवान की कथा सुनने से ग्रन्थ नहीं छूटते, ग्रन्थियां छूटती हैं।

-- परिवार में एक व्यक्ति ऐसा होता है जो सबको ढककर, छत्र बनकर सबकी रक्षा करता है।

-- जब साधक भक्ति की खोज में जाता है, तो समाज उसकी प्रतिष्ठा को जलाने का प्रयास करेगा।

-- यदि आप किसी बुद्धपुरुष की शरण में जाते हैं, तो वह आपको किसी भी आपदा से बचाएगा।


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