वाराणसी प्रेस क्लब से काशी पत्रकार संघ मुकदमा हारने के बाद प्रेस क्लब का चुनाव कराने वाले कृष्ण देव, पूर्व अध्यक्ष अत्रि भारद्वाज और चंदन रुपानी को कोतवाली पुलिस ने किया तलब
संघ के निर्वाचित महामंत्री जितेंद्र श्रीवास्तव ने निवर्तमान महामंत्री के दोबारा जीतने का ख्वाब किया चकनाचूर
बनारस में पत्रकारों की सबसे पुरानी संस्था काशी पत्रकार संघ में लगभग एक दशक पूर्व गाण्डीव से नौकरी गंवाने के बाद संघ में किसी न किसी पद पर चुनाव जीतने वाले निवर्तमान अध्यक्ष अत्रि भारद्वाज को हिंदुस्तान के पूर्व पत्रकार रहे अरुण मिश्रा हरा कर उनके जुगाड़िया पत्रकारों को उन्हीं के गढ़ में LIC एजेंट और उसके नटखट सिंडिकेट को किया फेल।
अरुण मिश्रा की जितने को लेकर उनके विरोधी चुनाव से पहले इस बात की चर्चा करते कि इन्हें बाती चोखा वाले का समर्थन प्राप्त है लिहाजा इन्हें हराकर अत्रि भारद्वाज को फिर से एक बार अत्रि भारद्वाज को अध्यक्ष निर्वाचित किया जाएगा।
बता दें कि काशी पत्रकार संघ में आधा दर्जन लोगों ने कब्जा जमा लिया है जिन्हें अपनी ओछी और घटिया सोच के चलते हिंदुस्तान अखबार में डिप्टी न्यूज एडिटर के रूप में वर्षों अपनी सेवा देने वाले अरुण मिश्रा को बाटी चोखा वाले का प्रत्याशी बताकर उनकी छवि को इस प्रकार प्रदर्शित करना चाह रहे थे कि अगर उन्हें जीत दिया गया तो संघ पर बुद्धिजीवी पत्रकारों का नहीं पत्रकार के रूप में एक मजबूत व्यवसाय का कब्जा हो जाएगा।
क्लाउन टाइम्स में जब इस खबर के पीछे का सच जानने के लिए पड़ताल किया तो ज्ञात हुआ कि जिन्हें वह बाटी चोखा के नाम से बदनाम कर रहे हैं, वे इस शहर में वर्षों तक IBN7 टीवी चैनल में एक अच्छे रिपोर्टर के रूप में अपनी अलग पहचान रखने वाले विक्रांत दुबे हैं, जिन्होंने बनारस ही नहीं बल्कि कोलकाता में भी IBN7 जैसे चैनल में रहते हुए अपनी अलग पहचान बनाई थी। विक्रांत जी पत्रकारिता जगत में किसी पहचान के मोहताज नहीं है, फिलहाल उनका तेलिया बाद में बाटी चोखा नाम से रेस्टोरेंट विख्यात है, लेकिन मीडिया जगत में आज भी उनकी पकड़ उतनी ही मजबूत है जो शायद संघ पर वर्षों से कब्जा जमाने वाले एक दर्जन बेरोजगार कथित पत्रकारों, दवा कारोबारी, LIC एजेंट जैसे बहुधंधी लोगों से कहीं ज्यादा बेहतर है। सूत्रों की माने तो विक्रांत दूबे के द्वारा अपनी वजूद को बचाने में जुटा शांतिकालीन समाचार पत्र गाण्डीव के डिजिटल मीडिया को खरीदकर उसे संचालित करने की चर्चा इस बात की गवाही है, कि रोजी-रोटी भले ही कुछ लेकिन विक्रांत दुबे के रगों में आज पत्रकारिता का खून दौड़ रहा है। इसी विक्रांत दुबे के द्वारा इस बार काशी पत्रकार संघ के चुनाव अध्यक्ष पद के प्रत्याशी अरुण मिश्रा का समर्थन करना कुछ बुद्धिजीवी पत्रकार साथियों रास नहीं आ रहा था, लिहाजा अरुण मिश्रा को बाटी चोखा वाले का कैंडिडेट बात कर बदनाम कर रहे थे, लेकिन ऐसी छोटी सोच रखने वालों के सारे समीकरण धरे के धरे रह गए और अरुण मिश्रा को मिले 101 मतों के मुकाबले अत्रि भारद्वाज को केवल 81 मत मिलने के चलते 20 मतों के अंतर से चुनाव हारना पड़ा। इस पद पूर्व अध्यक्ष बी. बी. यादव को 52 व सुरेश चन्द्र मिश्र को 25 मत मिले। यहां गौर करने वाली बात है कि अरुण मिश्रा की जीत में फोटोग्राफर बीवी यादव को मिले 52 मतों का विशेष योगदान है।
संघ में उपाध्यक्ष के तीन पदों पर सुरेन्द्र नारायण तिवारी (119), सुनील शुक्ला (117) व पुरुषोत्तम चतुर्वेदी (112) विजयी घोषित किये गये। इस पद के दो अन्य प्रत्याशियों में दिनेश कुमार सिंह को 103 व राजेश यादव को 76 मत मिले।
संघ में महामंत्री पद पर जितेन्द्र कुमार श्रीवास्तव (121) ने अखिलेश मिश्र (93) को 28 मतों से हराकर उनके दोबारा महामंत्री बनने के ख्वाब को चकनाचूर कर दिया। इस पद के एक अन्य प्रत्याशी रामात्मा श्रीवास्तव को 38 मत मिले।
संघ में मंत्री के दो पदों पर अश्वनी कुमार श्रीवास्तव (93) व आलोक मालवीय (87) विजयी घोषित किये गये। इस पद के अन्य प्रत्याशियों में मोहम्मद अशफाक सिद्दीकी को 78, आलोक कुमार श्रीवास्तव को 71, रवीन्द्र प्रकाश त्रिपाठी को 43 व दिलीप कुमार को 32 मत मिले। कोषाध्यक्ष पद पर जयप्रकाश श्रीवास्तव (135) ने पंकज त्रिपाठी (117) को 18 मतों से हराया। कार्यसमिति के दस पदों के लिए कैलाश यादव (180), विनय कुमार सिंह (170), उमेश गुप्ता (148), सुरेश गांधी (133), विजय शंकर गुप्ता 'बच्चा' (130) छवि किशोर मिश्र (125), राकेश सिंह (123) एमडी जावेद (107), अरुण कुमार सिंह (99) व आनन्द कुमार मौर्य (99) विजेता घोषित किये गये। इस पद के एक अन्य प्रत्याशी राजेश राय को 94 मत मिले। संघ के कुल 286 सदस्यों में से 258 सदस्यों ने मताधिकार का प्रयोग किया।
वहीं दूसरी तरफ वाराणसी प्रेस क्लब से मुकदमा हारने के बाद काशी पत्रकार संघ के निवर्तमान अध्यक्ष अत्रि भारद्वाज और चुनाव अधिकारी कृष्णदेव नारायण राय के द्वारा गैर कानूनी तरीके से वाराणसी प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेश गुप्ता व महामंत्री अशोक मिश्र "क्लाउन" की अनुमति के बिना प्रेस क्लब का चुनाव कराने की घोषणा करके फोटोग्राफर चंदन रुपानी को अध्यक्ष पद पर जीत का ऐलान करने के कुछ ही घंटे बाद कोतवाली पुलिस ने बारी-बारी से इन तीनों लोगों को तलब किया।
इसे संयोग ही कहेंगे कि इस दौरान वाराणसी प्रेस क्लब रजिस्टर संस्था अध्यक्ष और महामंत्री अपनी लीगल टीम के साथ सभी साक्ष्य और प्रमाण लेकर कोतवाली में मौजूद रहे, और सब कुछ अपनी आंखों के सामने देखते रहे।
बताते चलें कि वाराणसी प्रेस क्लब ने काशी पत्रकार संघ के द्वारा गैर कानूनी तरीके से काशी पत्रकार संघ के लेटर पैड पर जब प्रेस क्लब के चुनाव की घोषणा किया था इस दौरान इसकी शिकायत किया गया, जिसका परिणाम रहा कि 2 जून को काशी पत्रकार संघ में जब मतगणना के पत्रकार साथी जीत के जश्न में डूबे थे, इस दौरान निर्वाचन अधिकारी कृष्ण देवनारायण राय, पूर्व अध्यक्ष अस्त्री भारद्वाज और चंदन रुपाणी के चेहरे पर अलग तनाव देखने को मिल रहा था। सबसे ज्यादा तनाव संघ के ने निर्तमान अध्यक्ष अत्रि भारद्वाज का अरुण मिश्रा से चुनाव हारने के बाद दु:ख सहा नहीं जा रहा था और ऊपर से प्रेस क्लब का गैर कानूनी चुनाव करने के ऐलान के चलते कानूनी पचड़े में फंसने का डर उन्हें और सता रहा था।
कुल मिलाकर वाराणसी प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेश गुप्ता व महामंत्री अशोक मिश्र "क्लाउन" ने काशी पत्रकार संघ के निर्वाचित अध्यक्ष अरुण मिश्र और उनकी पूरी टीम को बधाई देने के साथी उनसे यही अपेक्षा है कि आने वाले भविष्य में संघ के उन चंद लोगों से मुक्ति दिलाई जाए, जिन्होंने संघ के संघीय ढांचे को तार-तार करके अपने निजी स्वास्थ्य के लिए श्रमजीवी पत्रकारों और मीडिया हाउस को अपना निशाना बनाया है। जिन में सर्वाधिक भूमिका संघ के पूर्व अध्यक्ष योगेश कुमार गुप्ता और उनके आधा दर्जन साथियों और कबीरचौरा के दवा कारोबारी की है, जो बनारस में पत्रकारों के कभी आदर्श नहीं हो सकते।
अंत में हम यही कहेंगे कि जैसा संगठन आज से डेढ़ दशक पूर्व स्व. मनोहर खाडीलाकर, प्रदीप कुमार, विकास पाठक जैसे पूर्व अध्यक्षों की राही जिन्होंने समाचार पत्र से पत्रकार हेतु के लिए अपनी नौकरी की परवाह किए बिना समाचार पत्र कर्मचारी यूनियन के साथ मिलकर लंबी और निर्णायक लड़ाई लड़ा था, वैसा दौर फिर एक बार आना चाहिए।
काशी में दिन के उजाले में एक बड़े समाचार पत्र के रिपोर्टर की पिटाई के बाद उसे दिन के उजाले में तारे नज़र आने लगे और सब कुछ शांत हो गया
आज से लगभग 10 महीने पूर्व की इसी शहर में एक घटना का जिक्र करना जरूरी है जिसमें एक बड़े समाचार पत्र के पत्रकार जिनके यहाँ संवाद के रूप में ठेके पर नौकरी देकर उनका शोषण किया जा रहा है उसी समाचार पत्र का एक रिपोर्टर जिसने चुनौती पूर्ण खबर करने की सोच के चलते वाराणसी के कैंट स्टेशन पर स्व. कमलापति त्रिपाठी की मूर्ति के पास इलाहाबाद की ओर जाने वाले अवैध टैक्सी स्टैंड पर उनकी जमकर कुटाई होती है और वह इस दर्द को किसी से साझा नहीं कर सका। मैं उस कलमकार के रोजी- रोटी के चलते उसके नाम को उजागर नहीं कर रहा हूं लेकिन इस घटना का चश्मदीद बनारस में एक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पूर्व वीडियो जर्नलिस्ट ने क्लाउन टाइम्स को बताया कि आज से लगभग 10 महीने पहले कैंट स्टेशन पर इलाहाबाद जाने वाले अवैध टैक्सी स्टैंड कि खबर के लिए एक बड़े समाचार पत्र का प्रतिनिधि दिन के उजाले में लगभग 12:00 पहुंचा तो उसे देखते ही अवैध टैक्सी स्टैंड संचालकों ने उसकी ऐसी बुरी तरह पिटाई किए कि उसकी पैंट गीली हो गई, और उसे दिन के उजाले में तारे नजर नजर आने लगे। इतनी बुरी तरह पिटाई के बाद बड़े अखबार के रिपोर्टर ने अपने समाचार पत्र के जिम्मेदार लोगों को जब इस घटना की सूचना दिया तो उसे दो टूक शब्दों में कहा गया, कि इस मामले को तूल देने की जरूरत नहीं है, सोचिए उसे पत्रकार की ना तो कोई मदद हुई और नहीं सच्चाई का खुलासा करने का दंभ भरने वाले समाचार पत्र की खुद हवा निकल गई।
आज चुनाव के दिन इस खबर की चर्चा करने का एकमात्र उद्देश्य है कि जिस शहर में आज से डेढ़ दशक पूर्व बिना किसी लिखित शिकायत के पत्रकारों के हक और हुकूक की लड़ाई के लिए काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्षों ने समाचार पत्र प्रबंधन को इस बात के लिए मजबूत कर दिया कि उन्हें पत्रकारों का हक देना होगा। आज उसी शहर में एक पत्रकार अपने समाचार पत्र के लिए खबर के चलते बुरी तरह पीटा जाता है और वह प्रबंधन के दबाव में अपनी रोजी-रोटी के लिए चुप बैठने में ही अपनी भलाई समझता है।
अंत में हम यही कहेंगे की बनारस के पत्रकार आज पूरे देश में हिंदी पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने अलग तेवर के लिए जाने जाते हैं, आज उसी शहर में काशी पत्रकार संघ जैसे संगठन के कुछ सदस्यों के चलते वाराणसी प्रेस क्लब जैसी प्रतिष्ठित रजिस्टर्ड संस्था से द्वेष रखकर लड़ना बुद्धिजीवी कलमकारों को शोभा नहीं देता है। हमारी तो यही सलाह है बनारस की सभी पत्रकार संगठन एक साथ मिलकर एकजुट होकर पत्रकार हितों की चुनौती का सामना करना चाहिए।