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वाराणसी प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेश गुप्ता के पिता "काशी के साहित्यिक सूरज" राजेंद्र गुप्त का हुआ निधन



 20/May/25

काशी, वह पावन नगरी जहां गंगा की लहरें साहित्य और संस्कृति की कहानियां बुनती हैं, ने हाल ही में अपने एक और रत्न को खो दिया। हास्य-व्यंग्य के पुरोधा, पत्रकारिता के महागुरु और साहित्यकारों के बट वृक्ष मोहनलाल गुप्त उर्फ भइयाजी बनारसी के सुपुत्र, रचनाकार और कवि राजेंद्र गुप्त का 13 मई 2025 को निधन हो गया। यह खबर काशी के साहित्यिक और पत्रकारिता जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है।

राजेंद्र गुप्त के पुत्र, वरिष्ठ पत्रकार और वाराणसी प्रेस क्लब के अध्यक्ष राजेश गुप्त ने बताया कि उनके पिता की त्र्योदशाह (तेरही) का संस्कार 26 मई 2025 को उनके निवास स्थान सी 9/12, हबीबपुरा, चेतगंज, वाराणसी में संपन्न होगा। यह वही पवित्र स्थान है, जहां कभी देश के यशस्वी पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने लेखन की शुरुआत की थी। उस दौर में हबीबपुरा का यह साहित्यिक घराना एक ऐसी मशाल था, जिसने पत्रकारिता और साहित्य की दुनिया को रोशनी दी।

समाचार’ अखबार और भइयाजी बनारसी का युग

हबीबपुरा का वह छोटा-सा घर कभी काशी के साहित्यिक और वैचारिक केंद्र का पर्याय था। यहां से निकलने वाला प्रात:कालीन अखबार ‘समाचार’, जिसकी कीमत मात्र आधा पैसा थी, न केवल समाचारों का वाहक था, बल्कि विचारों और साहित्य का एक जीवंत मंच भी था। इसके संपादक थे मोहनलाल गुप्त, जिन्हें ‘भइयाजी बनारसी’ के नाम से जाना जाता था। भइयाजी का हास्य-व्यंग्य लेखन उस दौर में समाज की नब्ज को टटोलता था और पाठकों के चेहरों पर मुस्कान बिखेरता था। उनकी लेखनी में गहराई थी, सादगी थी, और सबसे बढ़कर एक ऐसी सच्चाई थी जो दिलों को छू लेती थी।

यह वही घर था जहां राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिग्गज नानाजी देशमुख, बाला साहब देवरस, केदारनाथ साहनी और रज्जु भैया जैसे व्यक्तित्वों की अड्डा जमता था। विचारों का मंथन, साहित्यिक चर्चाएं और देश की दशा-दिशा पर विमर्श इस घर की दीवारों में गूंजा करते थे। भइयाजी बनारसी ने कभी प्रसिद्धि या यश की लालसा नहीं की। उनका जीवन सादगी का एक जीवंत उदाहरण था, जो आज के दौर में प्रेरणा बनकर सामने आता है।

राजेंद्र गुप्त: पिता की विरासत के ध्वजवाहक

राजेंद्र गुप्त ने अपने पिता भइयाजी बनारसी की साहित्यिक और पत्रकारिता की विरासत को न केवल संजोया, बल्कि उसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी कविताएं और रचनाएं भावनाओं और विचारों का सुंदर समन्वय थीं। वे एक ऐसे रचनाकार थे, जिन्होंने अपनी लेखनी से समाज को दर्पण दिखाने का काम किया। काशी के साहित्यिक जगत में उनकी उपस्थिति एक शीतल छांव की तरह थी, जो हर किसी को सुकून देती थी।

तेरही संस्कार: श्रद्धांजलि का एक अवसर

वरिष्ठ पत्रकार राजेश गुप्त ने अपने पिता के त्र्योदशाह संस्कार के लिए मित्रों, परिवार और शुभचिंतकों को 26 मई को हबीबपुरा स्थित निवास स्थान पर आमंत्रित किया है। उन्होंने सभी से इस गरिमामय अवसर पर उपस्थित होकर श्रद्धांजलि अर्पित करने और प्रसाद ग्रहण करने की अपील की है। यह न केवल राजेंद्र गुप्त को श्रद्धांजलि देने का अवसर होगा, बल्कि उस साहित्यिक और पत्रकारिता की परंपरा को याद करने का भी मौका होगा, जिसने काशी को गौरवान्वित किया।

काशी की साहित्यिक धरोहर

हबीबपुरा का वह छोटा-सा घर आज भी काशी के साहित्यिक इतिहास का एक स्वर्णिम पृष्ठ है। भइयाजी बनारसी और राजेंद्र गुप्त जैसे साहित्यकारों की बदौलत यह स्थान एक तीर्थ की तरह है, जहां से निकली हर पंक्ति ने समाज को प्रेरित किया। राजेंद्र गुप्त का जाना केवल एक परिवार की हानि नहीं, बल्कि काशी के साहित्यिक और पत्रकारिता जगत के लिए एक युग का अंत है। 

आइए, 26 मई को हबीबपुरा में एकत्र होकर इस महान आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करें और उनकी स्मृतियों को अपने दिलों में संजोएं। उनकी रचनाएं और विचार हमें हमेशा प्रेरित करते रहेंगे।

राजेश गुप्ता, अध्यक्ष, वाराणसी प्रेस क्लब 

C 9/12, हबीबपुरा, चेतगंज, वाराणसी

मो. 9415203748


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