वाराणसी। होली का त्योहार, उत्साह, उमंग, न्याय, सदाचार और जीवतंता का प्रतीक है। यह संदेश देता है कि जीवन के विविध रंग असीम ऊर्जा का संचरण कराते हैं तथा सकारात्मक विचारों का बढ़ावा देते हैं। भारतीय संस्कृति में ऐसे आयोजनों का उद्देश्य प्रेम और सौहार्द का वातावरण तैयार कर समृद्ध विरासत की जड़ों को सहेजना रहा है। ऐसी ही संकल्पना के साथ बुधवार को धीरेन्द्र महिला पी.जी. कालेज में संगीत विभाग की ओर से आयोजित रंगोत्सव कार्यक्रम में शिव, कृष्ण और राम की लोकरंजक छवि प्रस्तुत की गयी, वहीं छात्राओं ने प्राकृतिक रंगों से तैयार बेडशीट, दुपट्टे, कुशन कवर, पर्स, अबीर-गुलाल तथा अन्य उपयोगी वस्तुओं की प्रर्दशनी लगाकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया, साथ ही रासायनिक रंगों के उपयोग से बचने का संदेश भी प्रसारित किया। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। इस कड़ी को आगे बढ़ाते हुए छात्राओं ने एक से बढ़कर एक गीत प्रस्तुत किये जिसमें शिव खेले काशी में होली, रंग डारुंगी नंद के लालन पे, कन्हैया घर चलो गुइयां तथा श्याम जमुना तट पर खेले होली जैसे गायकी के माध्यम से लोगों का भरपूर मनोरंजन कराया। मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार में पंजीयन एवं स्टाम्प शुल्क राज्यमंत्री रवीन्द्र जायसवाल ने अपने सम्बोधन में कहा कि उत्सव समाज को एकजुटता का संदेश देते हैं तथा आपसी मतभेद को दूर कर शांति और सद्भावना बनाये रखने का मजबूत स्तम्भ होते हैं। यदि वैश्विक स्तर पर भारत को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है तो यह उसके गौरवपूर्ण अतीत का ही परिणान है। एकता, अखंडता और समरसता की भावना राष्ट्र की जड़ों में सम्माहित है।
इस अवसर पर काशी की नब्ज से परिचित, साहित्यकार डॉ. मंजरी पाण्डेय ने अपने सुरों के माध्यम से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया, उन्होंने अपनी प्रस्तुति में न केवल काशी बल्कि मथुरा और अवध के सांस्कृतिक रंगों को और भी गहरा कर दिया। उन्होंने लोकगायकी को धर्म की मर्यादा और समाज का वास्तविक प्रतिबिम्ब बताते हुए परस्पर प्रेम और सौहार्द बनाने रखने की अपील की। भारतीय समाज ताने-बाने से परिचित राजभाषा अधिकारी सुशांत कुमार शर्मा में लोकगीतों को भारतीय समाज के रिश्तों की बुनियाद तथा भाव के संचरण का माध्यम बताते हुए कई आकर्षक गीतों द्वारा लोगों को अंत तक जोड़े रखा।
कॉलेज की प्रबंधक अंजू जायसवाल ने होली के पर्व को असत्य पर सत्य की विजय तथा पुराने गीले शिकवे भुलाकर एक दूसरे के रंग में रंग जाने का उत्सव बताया तथा कहा कि जहां कहीं भक्ति, शक्त्ति और न्याय की बात होती है, ऐसे उत्सव आदर्श प्रस्तुत करते हैं, यही कारण है कि आस्था और प्रकृति का यह अनूठा संगम, दुनिया के हर कोने में अलग-अलग रूप में मनाया जाता है परन्तु सभी का संदेश आपसी रिश्तों में मिठास घोलना है। प्राचार्या डॉ. नलिनी मिश्रा ने कार्यक्रम में आये अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए ऐसे उत्सव को खुशहाली का प्रतीक बताया तथा सभी के जीवन को रंगो से सजाने की कामना की। इस अवसर पर संस्था के सभी प्राध्यापक तथा कर्मचारी उपस्थित रहे।