वाराणसी। आइसार्क समन्वय समिति (आईसीसी) की 8वीं बैठक आज अन्तर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान–दक्षिण एशिया क्षेत्रीय केंद्र (आइसार्क), वाराणसी में आयोजित की गई, जिसमें आइसार्क के एक वर्ष के कार्यो की समीक्षा और अगले वर्ष की कार्ययोजना पर गहन चर्चा की गईI बैठक में इरी के रीजनल डायरेक्टर(एशिया) डॉ. जोंगसू शिन, भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के संयुक्त सचिव (आईसी, क्रेडिट, तिलहन और पाम बीज) अजीत कुमार साहू; बांग्लादेश के कृषि मंत्रालय के उप सचिव मोहम्मद जाहिरुल इस्लाम; नेपाल सरकार के कृषि एवं पशुपालन विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव डॉ. राम कृष्ण श्रेष्ठ; भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारत सरकार के उप महानिदेशक (फसल) डॉ. देवेंद्र कुमार यादवा; टी. के. शिबू,, विशेष सचिव,कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार, श्रीराम बायोसीड जेनेटिक्स इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद के अनुसंधान निदेशक डॉ. परेश वर्मा; कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार के बीज गुणवत्ता नियंत्रण उप आयुक्त डॉ. दिलीप श्रीवास्तव; राष्ट्रीय बीज अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र (एनएसआरटीसी) के बीज प्रौद्योगिकीविद् डॉ. एम. पी. यादव; और आइसार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह एवं वैज्ञानिकों की टीम उपस्थित थीI
बैठक को संबोधित करते हुए, संयुक्त सचिव अजीत कुमार साहू जी ने भारत के बीज क्षेत्र को सशक्त बनाने में दक्षिण-दक्षिण सहयोग की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला और राष्ट्रीय बीज नीति में संशोधनों को आकार देने में आइसार्क को भागीदारी के लिए आमंत्रित किया। बैठक का मुख्य ध्यान जैव-पोषण और उच्च मूल्य वाले चावल की किस्मों जैसे 'काला नमक' और 'लो-ग्लाइसेमिक इंडेक्स (जीआई)' चावल पर था, जिनमें खाद्य और पोषण सुरक्षा बढ़ाने की अपार संभावनाएं हैं। श्री साहू ने इन किस्मों के अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए मजबूत नीतिगत समर्थन और उनके प्रचार की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने सरकार के प्रदर्शन कार्यक्रमों के माध्यम से इन चावल की किस्मों के बारे में किसानो के बीच में विस्तार की आवश्यकता पर भी बल दिया और किसानों के बीच उनके प्रभावी स्वीकृति को सुनिश्चित करने में आइसार्क के सक्रिय प्रयासों का आग्रह किया।
बांग्लादेश और नेपाल के प्रतिनिधियों ने जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा और कृषि स्थिरता से उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए नवाचार, अनुसंधान और क्षमता विकास को सशक्त बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने फसल स्थिरता और स्थायित्व को बढ़ाने के लिए जीनोम एडिटिंग, बायोइन्फोर्मेटिक्स, कृषि यंत्रीकरण और एआइ जैसी उन्नत तकनीकों में ज्ञान साझा करने का निवेदन किया। दोनों देशों ने मास्टर और पीएचडी छात्रों को आइसार्क में अनुसंधान के लिए भेजने और दक्षिण-दक्षिण सहयोग को मजबूत करने के लिए क्षेत्रीय कार्यशालाओं का आयोजन का आग्रह किया। आइसार्क के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने दक्षिण एशिया और अफ्रीका में अनुसंधान, क्षमता विकास और केंद्र की प्रगति की प्रमुख उपलब्धियां प्रस्तुत कीं। चावल में मूल्य संवर्धन, स्थायी कृषि, बीज प्रणाली, मशीनीकरण, अवशेष प्रबंधन, डिजिटल नवाचार और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में प्रगति पर भी जानकारी दी गई।
बैठक का समापन आइसार्क के निदेशक डॉ. सुधांशु सिंह द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिसमें दक्षिण एशिया में कृषि नवाचार और प्रभाव को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक प्रयासों को रेखांकित किया गया।