सामाजिक संस्था 'सत्या फाउण्डेशन' द्वारा ध्वनि प्रदूषण को लेकर जागरूकता अभियान के तहत आज सेठ एम.आर. जैपुरिया स्कूल, बनारस पड़ाव परिसर में आयोजित कार्यक्रम में बच्चों ने आतिशबाजी और डी.जे. के पूर्ण बहिष्कार की शपथ ली। वैसे कहने को तो यह कार्यक्रम दीपावली के ठीक पहले पटाखे को ध्यान में रखकर किया गया था लेकिन इस कार्यक्रम में ऐसी-ऐसी बातें बताई गईं जो विद्यार्थियों को जीवन भर काम आयेंगी।
सत्या फाउण्डेशन के सचिव चेतन उपाध्याय ने शुरू में ही विद्यार्थियों से कहा कि हम जोर लगा कर या दबाव बना कर आपसे बात मनवाने के लिए नहीं आये हैं। हम तर्क और विज्ञान के आधार पर बात करेंगे और मानना या न मानना आपके ऊपर निर्भर करता है।
सत्या फाउण्डेशन के सचिव चेतन उपाध्याय ने उदाहरण के साथ संगीत और शोर के बीच का अंतर बताया। फिर कहा कि आज से 500 साल पहले जब लाउडस्पीकर नहीं हुआ करता था, उस समय कबीर दास जी ने अल्लाह का नाम जोर से लेने की आदत पर तंज कसा था कि क्या अल्लाह बहरा है जो उसे खुश करने के लिए इतनी जोर से लोग चिल्लाते हैं। कबीर दास जी की आत्मा जरूर रोती होगी कि 21वीं सदी में ऐसे नेता और जनता हो गई जो लाउडस्पीकर और डीजे में भगवान खोजने लगी.
आगे कहा कि चिकित्सा शास्त्र के मुताबिक़ डीजे या पटाखे से हृदयाघात के साथ ही गर्भपात भी हो सकता है। ऐसा उल्लेख हमारे शास्त्रों में भी मिलता है कि किस प्रकार से जब हनुमान जी संजीवनी बूटी (पहाड़) लेकर उड़ रहे थे और तेज गर्जना से नीचे जमीन पर बस्ती में भीलनी का गर्भपात हो गया था।
चेतन उपाध्याय ने शांत क्षेत्र यानी "साइलेंस जोन" का कानूनी अर्थ बताया और कहा कि जनता के व्यापक हित में इसका व्यापक प्रचार प्रसार होना चाहिए ताकि साल के 365 दिन, लोग इसका फायदा उठा सकें। पर्यावरण संरक्षण अधिनियम- 1986 के मुताबिक, दिन हो या रात: स्कूल-कॉलेज-विश्वविद्यालय, अस्पताल-नर्सिंग होम, मंदिर- मस्जिद-गुरुद्वारा-गिरिजाघर और कोर्ट-कचहरी के 100 मीटर के दायरे में बैंड-बाजा, लाउडस्पीकर, डीजे, आतिशबाजी और यहां तक कि स्कूटी का हॉर्न बजाना भी कानूनन जुर्म है और दोषी को ₹100000 तक जुर्माना या 5 साल तक की जेल या एक साथ दोनों सजा हो सकती है। मगर दु:ख की बात यह है कि इस देश में कुछ लोग साइलेंस जोन में से ही धार्मिक जुलूस और बारात लेकर जाते हैं और जब इसके रिएक्शन में कुछ होता है तो रिएक्शन करने वालों पर ही कार्रवाई हो जाती है मगर साइलेंस जोन में शोर करने वाले उपद्रवी तत्वों पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है। कायदे से सरकार और प्रशासन का यह दायित्व है कि पूरे देश में साइलेंस जोन के चेतावनी बोर्ड सभी अस्पतालों, शिक्षण संस्थानों, कोर्ट और पूजा-उपासना स्थलों के आसपास लगाए जाएं और नियम तोड़ने वालों पर सख्त विधिक कार्रवाई की जाए। इतनी जानकारी मिलने के बाद सभी विद्यार्थियों ने कहा कि हिन्दुस्तान में ऐसी कोई सड़क ही नहीं है जिसके किनारे पूजा स्थल, अस्पताल, शिक्षण संस्थान और कोर्ट न हो, इसलिए बिना किसी झिझक और देरी के सरकारों को रोड डी.जे. पर तो पूर्ण प्रतिबंध लगाने में कोई देरी नहीं करनी चाहिए। इस सभा में इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया गया कि 1986 में बने कानून के मुताबिक 5 साल तक की जेल या ₹1,00,000 तक का जुर्माना या एक साथ दोनों सजा का प्रावधान था और और आज 38 साल बाद भी जुर्माने की राशि वही है जिसे बढ़ाया जाना चाहिए। इसके बाद जब तालियां बजने लगीं तो चेतन उपाध्याय ने कहा कि यह तालियां इतनी जोर से बजाइये कि यह आवाज लखनऊ के 5, कालिदास मार्ग और नई दिल्ली के 7, लोक कल्याण मार्ग तक भी पहुंच जाए और साइलेंस जोन के नियम का पूरे देश में सख्ती से अनुपालन हो।
इसके बाद चेतन उपाध्याय ने कहा कि शुद्ध हवा, शुद्ध जल और संतुलित भोजन के अभाव में हिंदुस्तान की एक बहुत बड़ी आबादी ऐसी है जो बीमार तो है लेकिन दवाइयां के भरोसे घरों में रहती है। क्या हर घर में रहने वाली ऐसी बीमार आबादी को उत्सव के नाम पर तेज लाउडस्पीकर, पटाखा और डीजे अच्छा लगेगा? क्या आबादी के इलाके में रहने वाले ऐसे लोगों को हॉर्न का शोर अच्छा लगेगा? लिहाजा घर से जब भी निकलें, 10 मिनट जल्दी निकल निकलें ताकि रास्ते भर, हॉर्न नहीं बजाना पड़े।
फिर बच्चों को हँसते-हँसाते एक सलाह भी दे डाली कि जिनको डी.जे. और पटाखे की आवाज और रोशनी का बहुत ज्यादा ही शौक है तो इंटरनेट से डाउनलोड कर लीजिये और हेडफोन लगाकर देखते-सुनते रहिये लेकिन हम अपने मनोरंजन के लिए दूसरों को पागल क्यों करते हैं।
बच्चों ने छुड़ा दिया मेरा पटाखा :-
विशिष्ट वक्ता के रूप में बनारस प्लास्टिक सर्जरी हॉस्पिटल के कर्ता धर्ता और प्रसिद्द बर्न, प्लास्टिक और कॉस्मेटिक सर्जन, डा. प्रशांत बरनवाल ने कहा कि दीपावली पर पटाखे नहीं, दिए जलाएं। कहा कि कितनी भी सावधानी से पटाखे को जलाया जाए, अच्छे-अच्छे लोगों से चूक हो ही जाती है और अपने मेडिकल करियर में उन्होंने ऐसे केस भी देखे हैं कि जब पटाखे के कारण हाथ बुरी तरह से जलने से नसें फट गईं और फिर जिंदगी भर के लिए हाथों से काम करना असंभव हो जाता है। डॉ. प्रशांत बरनवाल ने कहा कि आज उनका बेटा इंजीनियर है और बेटी बेंगलूरु में काम करती है और किसी जमाने में बच्चों की खुशी के लिए, रिस्क लेकर भी थोड़े बहुत पटाखे जला लेते थे मगर हमारा पूरा परिवार कई वर्षों से पटाखे नहीं जलाता। इसका कारण यह है कि 'सत्या फाउंडेशन' के चेतन उपाध्याय ने वर्षों पहले बच्चों के स्कूल में आयोजित कार्यक्रम में अपने उद्बोधन से मेरे बच्चों के मन मस्तिष्क पर ऐसा प्रभाव डाला कि बच्चों ने घर आकर कहा कि पापा हमें पटाखे एकदम ही नहीं जलाने हैं। उसके बाद से हमारे परिवार ने पटाखे की तरफ देखा भी नहीं। जब बच्चे पटाखे नहीं जलाएंगे तो हम कैसे जला सकते हैं? लिहाजा उन्होंने बच्चों से अपील की कि वे अपने माता-पिता और अभिभावकों को समझाएं कि पटाखे नहीं खरीदें क्योंकि बच्चों की खुशी के लिए ही कई बार अभिभावक लोग पटाखे खरीदने लगते हैं। अगर आप घर में जाकर अपने माता-पिता को समझाएंगे और जब आप बोलेंगे तो माता पिता आपकी बात जरूर सुनेंगे। फिर से कहा कि दीपावली में दिया जलाएं, पूजा करें और पटाखों का बिल्कुल इस्तेमाल न करें।