वाराणसी 10 अक्टूबर 2024। सुंदरपुर स्थित धीरेन्द्र महिला पी.जी. कालेज में उत्साह, उमंग और उल्लास के विविध रंगों से सराबोर पारंपरिक लोकपर्व को जीवंत बनाये रखने के उद्देश्य से धीरेन्द्र महिला पीजी कॉलेज में मंगलवार को डांडिया महोत्सव 2024 का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय संस्कृति और संस्कारों के प्रति अनुराग की झलक स्पष्ट रूप से सदेखने को मिली। एक से बढ़कर एक बेहतरीन प्रस्तुति ने यह साबित कर दिया कि प्रतिमा को यदि पख मिले तो वे उड़ान भरने का हौसल्ला रखती है। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन तथा आदि शक्ति दुर्गा की आराधना व स्तुति के साथ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता चेयरपरसन श्रीमती अंजू जायसवाल ने किया तथा कहा कि दिविधता में एकता भारतीय संस्कृति की विरासत व गौरव है। यहां का हर पर्व किसी न किसी धार्मिक व सांस्कृतिक मान्यता पर आधारित है। राष्ट्र भले ही क्षेत्रीय सीमाओं में विभाजित है लेकिन सभी के अस्तित्व का केन्द्र अक्षुण्ण राष्ट्र है जो सांस्कृतिक एकीकरण के रूप में दिखायी देता है। ऐसी ही सोच को दर्शाता असुरी शक्ति के विनाश का प्रतीक यह उत्सव गुजरात से निकलकर आज वैश्विक पहचान बना रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी राष्ट्र की ताकत अलगाव नहीं एकजुटता में निहित है. जिससे भारत की साझा संस्कृति को पहचान मिलती है। संस्था के ट्रस्टी आयुष जायसवाल ने यहां की बहुआयामी संस्कृति को एकता के सूत्र में बांधने का माध्यम बताते हुए कहा कि रीति-रिवाज, परम्पराएं, उत्सव, पर्व, भाषा, पहनावा सभी भारतवासियों को आपसी भेदभाव मिटाने का कार्य करता है। खास तो यह कि यहां प्राचीन काल से संस्कृति की जो धारा प्रवाहित हुई वह आज भी चलायमान है, जबकि अन्य देशों की संस्कृतियां समय के साथ अपनी पहचान खोती रही हैं। आने वाली पीढ़ी भारत की सांस्कृतिक विशिष्टता से जुड़ा महसूस करे इसके लिए ऐसे आयोजन संचार सेतु का माध्यम बनकर हर भारतवासी को एकजुट करने में अहम भूमिका निभा रहा है। प्राचार्या डॉ. नलिनी मिश्रा ने कहा कि हमारा संकल्प आधुनिक शिक्षा के साथ साथ छात्राओं में नैतिक मूल्यों का प्रसार करना है जिससे वे जिम्मेदार नागरिक के रूप में अपनी संरकृति की जड़ों को जाने, पहचाने तथा आगे ले जायें। इस अवसर पर ट्रस्टी सदस्य अक्षता जायसवाल, पं. माता प्रसाद मिश्र, पं. रविशंकर मिश्र, उपस्थित रहे। इन्होंने छात्राओं की प्रस्तुति की सराहना की तथा कहा कि वैदिक ग्रंथों में संगीत और नृत्य को दुष्टनाशक और ईश्वर प्राप्ति का साधन माना गया है। यही नहीं शास्त्रीय परम्पराएं इतिहास को संजोने का काम करती हैं तथा उसमें सामयिकता का समावेश कर उसे अद्यतन बनाती हैं। कार्यक्रम में आये अतिथियों का स्वागत प्राचार्या डॉ. नलिनी मिश्रा ने स्मृति चिन्ह व अंगवस्त्रम प्रदान कर किया। संचालन मॉस कम्युनिकेशन की छात्रा स्वाती व भूमिका ने तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. प्रतिक्षा सिंह ने किया। इस अवसर पर कॉलेज प्रबंधन से जुड़े सभी शिक्षक-शिक्षिकाएं, छात्राएं तथा उनके अभिभावकों की उपस्थिति रही।