MENU

बनारस में लड़कियों ने आधी रात को अनूठे अंदाज में निकाला मार्च और बोलीं



 02/Oct/24

बनारस की दख़ल सङ्गठन के नेतृत्व में आहूत सभा और मार्च के माध्यम से महिलाओं और एलजीबीटी समुदाय के लोगों के उपस्थिति, पहचान , सम्मान और हक़ की बात उठाई गई।

आज 21 सितंबर 2024 को दख़ल संगठन द्वारा दुर्गाकुंड से लंका तक मार्च निकाला गया। आधी रात में सड़क पर लड़कियों महिलाओं और एलजीबीटी समुदाय के हुजूम को नारे लगाते गीत गाते कविता पढ़ते देखना अपने आप में एक अनूठा अनुभव था।

दुर्गाकुंड क्षेत्र में जुटने पर दख़ल के ओर से उद्बोधन में कहा गया कि आगामी समय मे शक्ति की देवी माँ दुर्गा का पर्व आने वाला है। माता दुर्गा प्रतीक हैं अंधेरे पर उजाले की जीत का। आज बनारस में अपने कार्यक्रम की शुरुवात इस जगह से करके हम बुराई पर भलाई की जीत के विचार से प्रेरणा लेना चाहते हैं। 

मणिपुर में खुलेआम सड़क पर लड़कियों को निर्वस्त्र करके गैंगरेप किया जा रहा है। बंगाल में डॉक्टर बेटी के साथ बलात्कार और हत्या के जघन्य कांड ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया है। इस घटना ने 2012 के निर्भया रेप केस की याद दिला दी है। हालांकि इसी बीच नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ( NCRB ) के आंकड़े भी सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगे हैं। यह आंकड़े वाकई हैरान करने वाले हैं। खासकर रेप और छेड़छाड़ पर सख्त कानून होने के बावजूद देश में हर साल ऐसे मामले बढ़ते जा रहे हैं।

दुर्गाकुंड से महिलाएं लड़कियां एलजीबीटी समुदाय के लोग बड़ी सँख्या में नारीवादी नारे लगाते हुए लंका रैदास गेट तक गए। मार्च में समता समानता के, हक और हिस्सेदारी के नारे लिखे प्लेकार्ड लिए चल रही थीं। रैदास गेट पर हुई सभा में श्रुति ने बात रखते हुए कहा कि NCRB के डेटा के अनुसार भारत में हर घंटे 3 महिलाओं का रेप होता है। 96 प्रतिशत बलात्कार के मामलों में आरोपी महिला को जानने वाला होता है। इसके अलावा 100 में से सिर्फ 27 आरोपियों को ही सजा मिलती है। 2012 में निर्भया रेप केस से पहले बलात्कार के लगभग 25 हजार मामले हर साल दर्ज किए जाते थे। मगर 2013 के बाद से इन केसों की तादाद बढ़नी शुरू हो गई। हालिया आंकड़ों की बात करें तो 2022 में देशभर में 31,516 बलात्कार के केस दर्ज हुए थे। हालांकि यह वो आंकड़े हैं जो पेपर पर मौजूद हैं। समाज में बदनामी के डर से ज्यादातर रेप केस दर्ज ही नहीं करवाए जाते हैं।

मैत्री ने कहा कि मर्दानगी और पितृसत्ता एक सामाजिक बुराई है। ये बुराई समाज के सभी अंगों में पैठ बनाए हुए है। धर्म और धार्मिक स्थान मंदिर मस्जिद गिरजा सब जगह पुरुष ही पुरुष दिखाई देंगे। और जब वो ही दिखाई देंगे तो नियम भी वही बनाएंगे। उन नियमो को बचाने के तर्क भी खुद गढ़ेंगे। घूंघट और बुर्का में ढंकी गयी महिलाएँ धार्मिक पहचान से भले अलग हों मगर लैंगिक पहचान से सेकेण्ड क्लास सिटीजन बनाई जाएंगी।

एकता ने कहा कि 21वीं शताब्दी के स्वतंत्र भारत में महिलाएं रोज हिंसा, अपमान, बलात्कार गैर बराबरी से से जूझ रही है आइए अपने सम्मान की लड़ाई में एक जुट हों आजादी मिले 77 साल हो चुके हैं। हम महिलाएं आज भी आजाद होने का इंतजार कर रही हैं। ये कैसी आज़ादी है जिसमे हमारा हक़ हमारा हिस्सा नही है घटनाओं को भी समाज अलग -अलग नजरिए से देख और चुन रहा है। बोलने से पहले बड़े वर्ग की घटना छोटे समुदाय वर्ग की घटना हमें हर घटना के लिए तत्पर होने आवाज उठाने की जरूरत है।  बराबरी मिलने तक इस आज़ादी को हम अधूरी समझते हैं। समता, समानता और न्याय के नारे के साथ ' मेरी रातें मेरी सड़के ' कार्यक्रम के लिए हम इकट्ठा हुए हैं। सड़क पर हम लड़कियों का निकलना पितृसत्ताक समाज के अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने के तरीके की परीक्षा लेना है और चुनौती भी देना है। 

दख़ल से जुड़ी लोकगायिका ज्योति ने महिला अधिकार पर चेतना जगाने वाले स्वरचित गीत सुनाया।

कार्यक्रम का सफल संचालन शिवांगी ने किया और धन्यवाद नीति ने दिया।

कार्यक्रम में प्रमुख रूप से डॉ. इंदु पांडेय, एकता, शालिनी, अनुज, श्रुति, कुसुम वर्मा, आर्शिया, ज्योति, शानू, आरोही, राधा, शिवांगी , रौशन, नंदलाल मास्टर, नीतू सिंह , गुरदीप, अबीर, श्रद्धा , रैनी ,सक्षम, मीना,नैतिक,रागिनी,सुनीता,नीरज,अश्विनी, रवि, धन्नजय, शारदलु, शिवानी, सुतपा, रौशन, अर्पित, श्रद्धा राय, विश्वनाथ कुंवर, चिंतामणि सेठ, प्रेम, इत्यादि सैकड़ो लोग शामिल रहे।


इस खबर को शेयर करें

Leave a Comment

6414


सबरंग