वर्ष 1672 में औरंगजेब ने न केवल श्री काशी विश्वनाथ का ज्ञानवापी मंदिर तोड़ा, बल्कि भारत में हजारों मंदिर भी ध्वस्त किए। अनेक संस्कृत विश्वविद्यालयों को भी तोड़ा। हिंदुओं ने हर जगह संघर्ष किया। क्या हम कहने जा रहे थे कि भगवान श्रीराम का जन्म बाबरी मस्जिद में हुआ था? इसलिए उस समय बाबरी ढांचा गिराया गया। इसी तरह आने वाली पीढ़ी को हम बताने जा रहे हैं कि 'भगवान शिव का मूलधाम ज्ञानवापी मस्जिद है'? इसलिए संकल्प करके ज्ञानवापी मंदिर की मुक्ति के लिए हिंदुओं को संगठित होना चाहिए, ऐसा आवाहन पिछले 40 वर्षों से ज्ञानवापी मंदिर की मुक्ति के लिए लड़ाई लड़ रहे उत्तर प्रदेश के डॉ. सोहन लाल आर्य ने किया है। वे फोंडा, गोवा में 'वैश्विक हिंदू राष्ट्र अधिवेशन' में 'श्री काशी विश्वनाथ की मुक्ति कब?' इस विषय पर बोल रहे थे।
इस समय व्यासपिठपर हिंदू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक (डॉ. ) चारुदत्त पिंगळे, सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन तथा हिंदू विधीज्ञ परिषद के संस्थापक सदस्य (पू.) अधिवक्ता सुरेश कुलकर्णी उपस्थित थे ।
डॉ. सोहन लाल आर्य आगे बोले कि मैं 40 वर्षों से ज्ञानवापी मंदिर की मुक्ति के लिए न्यायालयीन लड़ाई लड़ रहा हूं। पाकिस्तान से दो बार मेरा ‘सर कलम’ करने का फतवा जारी हुआ, फिर भी मेरा संघर्ष जारी है। काशी विश्वेश्वर में भगवान शिव के बिना नंदी की आंखों में आंसू हम देख रहे हैं। अपनी समस्याएं हम नंदी के कान में बताते हैं; लेकिन नंदी को भगवान शिव के दर्शन हम कराएंगे या नहीं? यह प्रश्न है !