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सिकरौरा हत्याकांड के 31 साल बाद एमएलसी बृजेश सिंह को न्यायालय ने माना बालिग



 12/Oct/17

वाराणसी से सटे चंदौली जिले के बहुचर्चित सिकरौरा नरसंहार मामले में अपर सत्र न्यायाधीश प्रथम पीके शर्मा की कोर्ट ने बाहुबली से एमएलसी बने बृजेश सिंह को बालिग माना है। बलुआ थाने के सिकरौरा गांव में 9 अप्रैल 1986 की रात 11 बजे ग्राम प्रधान रामचंद्र यादव व उनके परिजनों समेत 7 के नरसंहार मामले में आरोपित बृजेश सिंह को घटना के बाद भागते समय गिरफ्तार कर लिया गया था और इस वारदात में बृजेश गोली लगने से घायल भी हुए थे। इस मामले की वादिनी मृतक की पत्नी हीरावती व उनके पैरोकार सामाजिक कार्यकर्ता राकेश न्यायिक ने हाइकोर्ट के आदेश पर मामले की त्वरित सुनवाई के लिए वाराणसी सत्र अदालत को स्थानांतरित कर,वादिनी का बयान कोर्ट में शुरू ही हुआ था इस बीच बृजेश सिंह ने मुम्बई हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता के माध्यम से कोर्ट में आवेदन देकर दलील दिलवाया कि वे घटना के समय नाबालिग थे और उसकी उम्र हाईस्कूल प्रमाणपत्र में 1 जुलाई 1968 है। इस पर वादिनी के विधिक पैरोकार श्री न्यायिक ने आपत्ति दी और विभिन्न प्रान्तों के आर्म लाइसेंस, डीएल, इनकमटैक्स रिटर्न, पासपोर्ट और कम्पनी रजिस्टार के यहाँ दिए गए कागजातों में जन्मतिथि 9 नवंबर 1964 का कागजात दाखिल किया है। अदालत ने इस मामले में लंबे साक्ष्यों के बाद आरोपित की जन्मतिथि 1964 सही पाया। जबकि हाईस्कूल के कागजात में बृजेश सिंह पुत्र रविन्द्र प्रताप सिंह है। जबकि बृजेश सिंह पुत्र रविंद्रनाथ नाम वास्तविक है। आरोपी ने कई मामलो के विचारण के अपने अंतिम बयांन में भी जन्मतिथि 1964 माना है,अदालत के फैसले बाद बृजेश सिंह और बड़ी संख्या में जुट उनके समर्थक निराश दिखे। इसी के साथ बृजेश पर ट्रायल चलने का रास्ता साफ हो गया।

31 साल पहले हीरावती के पती सहित उसके 5 बच्चों को बोटी-बोटी काटा गया

बताते चलें कि इस फैसले के बाद मामले की पैरवी कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता राकेश न्यायिक ने बताया कि आज से 2 वर्ष पूर्व उनके शिवपुर आवास पर इस जघन्य हत्याकांड में मृत ग्राम प्रधान रामचंद्र यादव की पत्नी हीरावती देवी ने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी और अपना आंचल फैला कर रोते हुए कहा कि 29 साल पहले मेरे पति सहित 5 बच्चों को बोटी-बोटी काटा गया उसी दौरान मैंने हत्यारे बृजेश सिंह को कहां कि “ मैं जिंदा रह कर क्या करुंगी, मुझे भी गोली मार दो “ जिस पर उसने अट्टहास लगाते हुए कहा था कि तुमको जिंदा इसलिए छोड़ रहा हूं क्योंकि तुम्हारी उजड़ी हुई मांग और चित्कार हमारे दहशत का पर्याय होगा। कहा कि हीरावती को 29 वर्षों तक न्याय नहीं मिला इसीलिए वह अपने गांव के एक परिचित के साथ हमारे यहां न्याय की गुहार लगाने आई। अपनी आप बीती सुनाते हुए रोने लगी और कहा कि मैं मरने की कगार पर हूं। विधवा हीरावती का करुण क्रंदन सुनकर श्री न्यायिक इतनें भावुक हो गए कि उसे गले लगा कर रोने लगे। श्री न्यायिक ने देखा कि फटी साड़ियों में लिपटी हीरावती के आंसू झर‌- झर बहते रहे। पहले तो श्री न्यायिक ने तत्काल जालान से 2 साड़ियां मंगाई और उस अबला को देते हुये उसे वचन दिया कि तुम्हें न्याय दिला कर ही रहूंगा और आरोपित बृजेश सिंह को फांसी की सजा दिलवाकर ही चैन से बैठूंगा, इतना ही नहीं श्री न्यायिक ने हीरावती की सुरक्षा के लिए 8 गार्ड और 2 गनर का भी आदेश कराया। उसी समय से उन्होंने इस प्रतिज्ञा के साथ अपना केश ( बाल ) कटवाना छोड़ दिया कि जब तक इन आतताईयों को उनके असली जगह नहीं पहुंचा दूंगा तब तक इसे नहीं कटवाउंगा। इसी दृढ़ निश्चय के फलस्वरूप जिस हीरावती ने 29 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद न्यायिक के दरवाजे न्याय की गुहार लगाई उसी का परिणाम रहा कि बृजेश अपने 2 दर्जन वरिष्ठ अधिवक्ताओं की फौज खड़ा कर स्वयं को नाबालिक करार देने के लिये न्याय का गला घोटने की कोशिश में नाकामयाब रहा। माफियायों द्वारा सताई गई गरीब, शोषित, असहाय विधवा हीरावती के न्याय का पलड़ा भारी पड़ा।

हीरावती ने इस फैसले पर कहा कि न्यायपालिका में हमारी गहरी आस्था है। इस जीत का पूरा श्रेय शिवपुर निवासी समाजसेवी राकेश न्यायिक को देती हूं। यदि न्यायिक हमारा साथ नहीं देते तो 31 साल की जगह 62 साल बीत जाते तो भी न्याय नहीं मिल पाता। श्री न्यायिक ने ही बृजेश को बालिग घोषित कराने में पूरी कानूनी मदद किया और 2 वर्षों की लंबी बहस के बाद अंततः उन्हें सफलता मिली। एमएलसी बृजेश सिंह पर थाना बलुआ, जिला चंदौली में धारा 307,302,147, 148, 149, 452 (घर में घुसकर मारना) 120 बी आईपीसी के तहत हीरावाती देवी ने मुकदमा दर्ज कराया था।

न्यायिक कहते हैं “ न पाने की खुशी, न खोने का गम ”, “ न जीने की आरजू, न मरने का गम ”॥

                     


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