पीत पत्रकारिता नहीं होना चाहिए लक्ष्य : प्रो. हरिकेश सिंह, पूर्व कुलपति, जय प्रकाश वि.वि छपरा,बिहार)
वाराणसी। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के महामना मदन मोहन मालवीय हिंदी पत्रकारिता संस्थान और पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार को हिंदी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर 'हिंदी पत्रकारिता:कल और आज ' विषयक एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।
मुख्य अतिथि जय प्रकाश नारायण वि.वि के पूर्व कुलपति प्रो. हरिकेश सिंह ने कहा जबसे मनुष्य पैदा हुआ है तो कुछ चाहा है और वहीं चाहने के कारण ही संचार की शुरूआत हुई। पत्रकारिता का प्रारम्भ पीड़ा से शुरू होकर स्वावलम्बन की तरफ बढ़ रहा। हम सभी को लोकचेतना के लिए लोकमत वाले पत्रकारों के जीवन को पढ़ते हुए आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि पत्रकारिता का लक्ष्य पीत पत्रकारिता नहीं होना चाहिए। आज चटपटापन ने पत्रकारिता की संवेदनशीलता को चौपट कर दिया है। इसलिए हमें लोकवाणी, लोकअक्षर, लोकचिंतन को पत्रकारिता में संचित करके रखना है।
अगली कड़ी में कार्यक्रम संरक्षक कुलपति प्रो. आनंद कुमार त्यागी ने कहा कि समाज में सही चीजों का निर्धारण करना संचार का प्रमुख कार्य है। पत्रकारिता ही एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से हम पूरे जनमानस से एक साथ बात कर सकते हैं। हमेशा से ज्ञान को केंद्र में रखकर पत्रकारिता हुई। विकास के दौर में भी दूसरे क्षेत्रों के लोगों ने जुड़कर पत्रकारिता में सहयोग किया। आज यह भ्रम टूट रहा है कि स्थापित पत्रकारिता संस्थान ही परिणाम देता है। हिंदी भाषी क्षेत्रों में पत्रकारिता का महत्त्व और बढ़ जाता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी हिंदी पत्रकारिता को महत्व मिलना शुरू हो गया है। तकनीकी युग में अब पत्रकारिता किसी भाषा की मोहताज़ नहीं रह गयी है। आज दूसरे भाषाओं की बात भी हिंदी में जनता तक पहुंच रही है। तकनीक ने एक नया कैनवास दिया है। इसका पूरा फायदा उठाएंगे। कार्यक्रम में बीज वक्तव्य देते हुए डॉ. विनोद सिंह ने कहा हम अगले वर्ष हिंदी पत्रकारिता के 200वे वर्ष में प्रवेश करेंगे। पत्रकारिता की भाषा कभी साहित्यिक नहीं थी। वह हमेशा लोकभाषा के निकट रही। जिस समय अंधकार में हिंदी क्षेत्र डूबा हुआ था। तब भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने हिंदी का नेतृत्व किया। तब एक नई चेतना ने जन्म लिया। यहीं समय था ज़ब क्रन्तिकारी आंदोलन, साहित्यिक आंदोलन का जन्म हुआ। दैनिक आज,प्रताप अख़बार को राष्ट्रीय आंदोलन का पर्याय कहा जाता था। वह दौर राष्ट्रीय नव निर्माण का दौर था। चेतना को जागृत करने में अख़बारों का बहुत योगदान रहा। आज उदारीकरण के दौर में अलग-अलग पत्रों के लक्ष्यित वर्ग हो गए। वैश्विकरण और बाज़ारीकरण ने अख़बार को बहुत मजबूत किया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद प्रान्त संगठन मंत्री घनश्याम शाही ने कहा बदलते दौर में चुनौती बहुत बड़ी है। आज अख़बारों के भी यूट्यूबचैनल है। आनंदमय और सार्थकता के साथ सच के साथ जो खड़ा है वो सफल है। हमें अपने कार्य संस्कारों के साथ जुड़े रहना है। अपनी पहचान को बनाये रखना है।स्वागत क्रम में संस्थान निदेशक डॉ. नागेंद्र कुमार सिंह ने कहा कि देश अख़बारों की वज़ह से गुलामी की बेड़ियों से मुक्त हुआ। उन्होंने हिंदी भाषा के बारे में कहा कि यदि हिंदी नहीं है तो आप कहीं भी सफल नहीं हैं। भारत के बाहर भी हिंदी पत्रकारिता का मूल्य है। यह दिवस सिर्फ याद करने के लिए न रहे आपके जीवन का एक भाग बन जाये। कार्यक्रम का संचालन डॉ. अरुण शर्मा एवं धन्यवाद ज्ञापन डॉ. वशिष्ठ नारायण सिंह ने किया। कार्यक्रम में मुख्य रूप से कुलानुशासक प्रो. अमिता सिंह,
डॉ. दयानन्द, डॉ. संतोष मिश्र, डॉ. जय प्रकाश, डॉ. रविंद्र पाठक, डॉ. श्रीराम, डॉ. जिनेश, डॉ. शिव यादव, डॉ. विनोद सिंह, डॉ. रमेश सिंह, डॉ. प्रभाशंकर मिश्र, डॉ. मनोहर लाल, डॉ. शिव जी सिंह, डॉ. नागेंद्र पाठक, डॉ. सरिता, रामात्मा श्रीवास्तव, शैलेश चौरसिया एवं समस्त छात्र-छात्राएं आदि उपस्थित रहे।