वाराणसी। सनातन संस्था की प्राची जुवेकर ने हिन्दू नववर्ष पर आज एक वक्तव्य जारी किया है। उन्होंने बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही ब्रह्मदेव ने ब्रह्मांड की निर्मिति की। उनके नाम से ही ‘ब्रह्मांड’ नाम प्रचलित हुआ। हिन्दू धर्म में साढेतीन मुहूर्त बताए गए हैं, वे हैं चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, अक्षय तृतीया एवं दशहरा, प्रत्येक का एक एवं कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा। इन साढेतीन मुहूर्तों की विशेषता यह है कि अन्य दिन शुभकार्य करने के लिए मुहूर्त देखना पडता है; परंतु इन चार दिनों का प्रत्येक क्षण शुभ मुहूर्त ही होता है। इस दिन को संवत्सरारंभ, गुडी पडवा, विक्रम संवत् वर्षारंभ, युगादि, वर्षप्रतिपदा, वसंत ऋतु प्रारंभ दिन आदि नामों से भी जाना जाता है।
इसका महत्व क्या है तथा इसे कैसे मनाना चाहिए, इसके बारे में सनातन संस्था की ओर से यहां के नक्कीघाट स्थित त्रिदेव मंदिर में आयोजित सत्संग में श्रद्धालुओं को जानकारी दी गई। उसमें यह बताया गया कि नववर्ष के दिन सूर्योदय से पूर्व ही ब्रह्मध्वज अपने घर में खडी करना चाहिए, उसके माध्यम से उस दिन ब्रह्मतत्व तथा प्रजापति तरंगों का लाभ पूजक को अधिक मात्रा में होता है।
ब्रह्मध्वज बनाने के लिए प्रथम बांस को पानी से धोकर सूखे वस्त्र से पोंछ लें। पीले वस्त्र की चुन्नट बना कर उसे बांस के ऊपरी भाग में बांधें। उस पर नीम की टहनी, बताशे की माला, फूलों का हार बांधें। कलश पर कुमकुम की पांच रेखाएं बनाकर उसे बांस की चोटी पर उलटा रखें। इस कलश सजी हुई ध्वज को पीढे पर खड करें एवं आधार के लिए डोरी से बांधें। ब्रह्मध्वज की पूजा कर, भावपूर्ण प्रार्थना करने के उपरांत नीम का प्रसाद सभी में बांटें।