पहले के जमाने में जहां नेचुरल तरीके से बने रंगों का ही ज्यादा उपयोग किया जाता था, वहीं अब होली आने पर मार्केट केमिकल युक्त रंगों से पटे रहते हैं। पिछले साल ऐसी रिपोर्टस सामने आई थीं कि फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि भारतीय बाजारों में मौजूद सिंथेटिक कलर्स में किस स्तर तक टॉक्सिक मौजूद हैं। ऐसे में आम लोगों के लिए यह पता लगाना कि कौन से कलर लेने चाहिए या नहीं बहुत मुश्किल है।
यही वजह है कि हर साल होली के रंगों से खेलने के बाद बड़ी संख्या में लोगों को स्किन से जुड़ी समस्या से जूझना पड़ता है। उन्होने बताया कि 'मेरी स्किन जब भी सिंथेटिक कलर्स के संपर्क में आती है मुझे भी रैशेज होने लगते हैं। यह काफी अनकंफर्टेबल होता है। रैशेज और उससे होने वाली खुजली को ठीक करने के लिए मैं बर्फ और दही व नारियल तेल से बने मिक्सचर को स्किन पर लगाता था। इस परेशानी के कारण कई बार मेरे दिमाग में ख्याल आया कि मैं होली पर रंगों से खेलना ही छोड़ दूं।
डॉ. राय ने बताया कि होली के कलर्स के कारण भी स्किन से जुड़ी समस्याओं से उन्हें भी गुजरना पड़ा था। रंगों में मौजूद सिंथेटिक डाई और टॉक्सिन्स के कारण मुझे त्वचा पर जलन की समस्या होती थी। इससे मेरा स्किन भी रूखा हो जाता था। जलन और रूखी त्वचा से निपटने के लिए ऐलोवेरा जेल या लैक्टो कैलेमाइन लोशन, बेबी ऑइल और कोकोनट ऑइल के मिक्स को स्किन पर लगाये। उन्होंने बताया कि कई बार तो वह अपने चेहरे पर क्रीम और तेल लगाकर होली खेले ताकि उनकी स्किन पूरी तरह कवर रहे। और अब तो उन्होंने रासायनिक रंगों से होली खेलना ही बंद कर दिया है। सिर्फ हर्बल गुलाल से ही होली खेलते हैं।
लक्ष्मी हॉस्पिटल के प्रबंध निदेशक डॉ. अशोक राय द्वारा होली के केमिकल युक्त रंगों से स्किन को बचाने के लिए कुछ खास टिप्स
लक्ष्मी हॉस्पिटल के प्रबंध निदेशक डॉ अशोक राय के मुताबिक,