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धीरेंद्र महिला महाविद्यालय में होली के उपलक्ष्य में रंगोत्सव समारोह का हुआ आयोजन



 23/Mar/24

पद्मश्री डॉ. सोमा घोष ने सुरों के रंगों से किया सभी को सराबोर

भारतीय संस्कृति में प्रायः हर पर्व व उत्सव मनाने के पीछे धार्मिक और पौराणिक महत्व होता है। भौगोलिक विविधता के कारण इनके मनाये जाने के तरीके भले ही अलग हैं परन्तु हर उत्सव आपसी प्रेम, एकता, भाईचारे और सौहार्द का संदेश देते हैं। ऐसी ही सांस्कृतिक विरासत और उसकी जड़ों को सहेजने के उद्देश्य से शुक्रवार को सुंदरपुर स्थित धीरेन्द्र महिला पी.जी. कॉलेज में सुर,लय, ताल की त्रिधारा में छात्राओं द्वारा मनोहारी लोक गीत और नृत्य नाटिका के बीच रंगोत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पद्मश्री से अलंकृत बनारस घराने की शास्त्रीय गायिका डॉ. सोमा घोष ने होली गीत प्रस्तुत कर सुरों के रंगों से सभी को सराबोर कर दिया। उनके एक से बढ़कर एक नायाब प्रस्तुतियों ने काशी, मथुरा और अवध के सांस्कृतिक रंगों को और भी गहरा कर दिया।

कार्यक्रम की शुरूआत माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। डॉ. सोमा घोष ने होली के पारम्परिक गीत जो हर भारतीय के जेहन में रचा बसा है उसे सुरों में ढालकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। होली गीत शिव, कृष्ण और राम के लोकरंजक स्वरूप को स्पष्ट करता है, इसी परम्परा और संस्कृति को संजोये रखने का माध्यम लोकगीत होता है. जिसकी अनूभुति कार्यक्रम में प्रत्यक्ष से रूप से देखने को मिली। कभी न भुलाए जाने वाले गीत जिसमें "खेले मसाने में होली,रंग डालूंगी नन्द के लालन पर, होली खेले रघुवीरा, रंगी सारी गुलाबी चुनरियां" जैसे कर्णप्रिय गीत लोगों को अंत तक बांधे रखा। इस अवसर पर छात्राओं ने फिल्मी गीतों के फ्यूजन पर आधारित नृत्य नाटिका की प्रस्तुति की जो काफी आकर्षक रहा।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार में पंजीयन एवं स्टाम्प शुल्क राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रवीन्द्र जायसवाल ने कहा कि पर्व समाज को एकजुट होने का संदेश देते है, और एक ऐसे समाज के स्वरूप को स्पष्ट कराते है जहां लोगों के बीच आपसी मतभेद न हो तथा स‌द्भावना का विकास हो। साथ ही यह पर्व धर्म निरपेक्ष राष्ट्र के स्वरूप को मजबूत कर सामाजिक समरसता को बढ़ाता है। पर्व सांस्कृतिक परम्पराओं के संचरण का प्रतीक होता है।

संस्था की चेयरपर्सन अंजू जायसवाल ने रंगों को उल्लास और नयी ऊर्जा का प्रतीक बताते हुए कहा कि यह पर्व आसुरी शक्तियों पर विजय का प्रतीक है जिसमें मन के भावों को रंगों के माध्यम से व्यक्त करने की प्रथा है। इस पर्व पर रंग और गुलाल खेलने की परम्परा राष्ट्र को एकता के सूत्र में पिरोने का संदेश देता है।

संस्था की प्राचार्या डॉ. नलिनी मिश्रा ने इस अवसर पर आये अतिथियों को स्वागत करते हुए कहा कि जीवन में रंगों का विशेष महत्व होता है और रंग अपनी खास विशेषताओं के कारण पहचान बनाएं हुए है। रंग का यह पर्व सभी के जीवन में खुशहाली लाये, यही मेरी शुभकामना है। मंच सचालन डॉ. प्रतिक्षा सिंह ने किया। इस अवसर पर प्रो. राम मोहन पाठक, प्रो. आर.एस जायसवाल तथा संस्था के समस्त शिक्षक/शिक्षिकाओं की उपस्थिति रही।


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