रंगभरी एकादशी के पावन पर्व पर काशी में शिवभक्तों ने अबीर- गुलाल उड़ाकर महादेव और मां गौरा का स्वागत किया। प्राचीन काल से चली आ रही इस अद्भुत होली में गजब का नजारा देखने को मिला। सुबह से शाम तक काशीवासी गुलाल और अबीर उड़ाते हुए भोलेनाथ के गीतों पर थिरकते रहे। बाबा विश्वनाथ को गुलाल अर्पित करने के साथ ही काशिवासियों की होली की शुरुआत हो गई हर-हर महादेव के जयकारों से पूरे दिन काशी की गलियां गूंजती रहीं। बनारस के धरती से आसमान तक गुलाल और गुलाब की चादर बिछी रही। हर-हर महादेव का जयघोष होता रहा। हर आंख बाबा के राजसी स्वरूप को आंखों में बसाने को आतुर और हर हाथ पालकी को छू लेने के लिए बेचैन था। काशीपुराधिपति को अपने बीच पाकर शिवभक्तों के उल्लास का कोई ओर-छोर नजर नहीं आ रहा था। घंटों इंतजार के बाद जब शिव और गौरा सिंहासन पर सवार होकर काशी की गलियों में निकले तो उनके स्वागत में गलियां गुलाल से लाल नजर आने लगीं।
हर-हर महादेव के जयघोष से भक्तों ने त्रिपुरारी का स्वागत किया तो गुलाल अर्पित करके आशीर्वाद भी लिया। ब्रह्म मुहूर्त में बाबा की चल प्रतिमा के पूजन के उपरांत आरती के साथ ही रंगभरी के रंगारंग उत्सव का श्रीगणेश हो गया।
राजसी ठाट में देवी पार्वती और गणेश के साथ चिनार और अखरोट की लकड़ी से बनी रजत जड़ित पालकी पर प्रतिष्ठित करके बाबा की चल प्रतिमा काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में ले जाई गई।
हर-हर महादेव का जयकारा लगाते भक्तों की कतार बाबा के दर्शन को आतुर खड़ी थी। बाबा की पालकी जिस ओर से गुजरी होलियाना हुड़दंग नजर आई। शिवभक्तों ने बाबा के भाल गुलाल सजाकर होली खेलने की अनुमति मांगी।