गजवा-ए-हिन्द’ का फतवा जारी करनेवाले ‘दारुल उलूम देवबंद’ एवं उस से जुडे सभी संगठनों पर तुरंत प्रतिबंध लगाए : हिन्दू जनजागृति समिति
हाल ही में ‘दारुल उलूम देवबंद’ ने ‘गजवा-ए-हिन्द’ अर्थात ‘भारत के खिलाफ युद्ध छेडकर भारत को जीतना और पूरे भारत का इस्लामीकरण करना ऐसे फतवा जारी किया है । ‘दारुल उलूम देवबंद’ ने इस का खुला समर्थन किया है । यह संस्था दक्षिण एशिया के सभी मदरसों का संचालन करती है जिस में मुस्लिम छात्रों को धार्मिक शिक्षा दी जाती है । सभी इस्लामिक संस्थाएं इस संस्था का अनुसरण करती हैं । इस फतवे के कारण अब सीधे तौर पर भारत के खिलाफ युद्ध छेडने की बात से देश में कानून-व्यवस्था बिगड सकती है और गृह युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो सकती है । अतः ‘दारुल उलूम देवबंद’ तथा उस से जुडे सभी संगठनों पर तुरंत प्रतिबंध लगाकर उसकी सभी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को कठोरता से कुचल दिया जाए ऐसी मांग का ज्ञापन आज हिन्दू जनजागृति समिति ने केंद्रीय गृहमंत्री को माननीय अपर जिलाधिकारी अनुप कुमार वर्मा इन के माध्यम से सौंपा । इस समय अधिवक्ता संजीवन यादव, अधिवक्ता मदन मोहन यादव, अधिवक्ता ज्ञान प्रकाश राय, अधिवक्ता विकास तिवारी, अधिवक्ता विजय कुमार सेठ एवं हिन्दू जनजागृति समिति के श्री. राजन केशरी उपस्थित थे ।
पश्चिम बंगाल राज्य सरकार को तुरंत बर्खास्त कर तत्काल ‘राष्ट्रपति शासन’ लगाया जाए
बंगाल राज्य में हिन्दू महिलाओं का हो रहा बलात्कार, मंदिरों पर हमले और देवी-देवताओं की मूर्तियों को नष्ट करना, हिन्दुत्वनिष्ठों की हत्याएं करना, हिन्दू शोभायात्राओं पर हमला किया जाना, हिन्दू त्योहारों के दौरान दंगे करना, बंगाल में विधानसभा चुनाव के दौरान सीपीएम, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा एक-दूसरे पर बम फेंकना, यह बंगाल में कानून व्यवस्था की स्थिति कितनी गंभीर हो गई है, यह दर्शाती है । इन कारणों से पश्चिम बंगाल राज्य सरकार को तुरंत बर्खास्त कर यहां हिन्दुओं के उत्पीडन को रोकने के लिए राज्य में ‘राष्ट्रपति शासन’ लगाया जाए ।
कर्नाटक हिन्दू धार्मिक संस्था एवं चैरिटेबल एंडोमेंट बिल 2024’ रहित किया जाए !
कर्नाटक सरकार ने 20 फरवरी 2024 को ‘कर्नाटक हिन्दू धार्मिक संस्था एवं चैरिटेबल एंडोमेंट बिल 2024’ पारित किया । इस के खंड 69E में जिला स्तरीय एवं राज्य स्तरीय उच्च समिति गठित करने का प्रावधान है । इसमें अहिन्दू पदाधिकारियों को सम्मिलित किए जाने की बडी संभावना है । खंड 17 के अंतर्गत जिन हिन्दू मंदिरों की आय 1 करोड रुपयों से अधिक है, उनकी आय का 10 % टैक्स; जिन मंदिरों की आय 5 से 10 लाख रुपये है, उनके आय की 5 % राशि टैक्स के रूप में ‘सामान्य निधि’में जमा करने का उल्लेख है । यह एक धार्मिक भेदभाव है । केवल हिन्दू मंदिरों से ही टैक्स क्यों ? खंड 25 में मंदिर की व्यवस्थापन समिति गठित करने के संदर्भ में गैर-हिन्दुओं की नियुक्ति करने के विषय में उल्लेख है । यह अत्यंत गंभीर एवं धक्कादायक है ।