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श्री दत्तगुरु जयंती मार्गशीर्ष पूर्णिमा (26 दिसंबर) को



 25/Dec/23

 

प्रस्तावना-* ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश इनका अवतार श्री दत्तगुरु ! इस वर्ष मार्गशीर्ष पूर्णिमा (26 दिसंबर) के दिन दत्त जयंती है। यह उत्सव भावपूर्ण होने के लिए श्री दत्त के बारे में जानकारी इस लेख के माध्यम से जानेंगे।

*दत्त के नाम एवं उनका अर्थ :*

1) *दत्त -* दत्त अर्थात हम आत्मा हैं इसकी अनुभूति देने वाले। प्रत्येक में आत्मा है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति चलता है, बोलता है एवं हंसता है। इससे हममें ही देवता है ईश्वर है यह सत्य है । उसके बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं है। हमें इसका ज्ञान हो तो हम प्रत्येक से प्रेम पूर्वक व्यवहार करेंगे। इस दत्त जयंती को यह ज्ञान, (भावना) जागृत करने का हम निश्चय करेंगे।

2) *अवधूत-* जो अहम् धोता है, वह अवधूत। दत्त जयंती को हम प्रार्थना करें 'हे दत्तात्रेय भगवान अपना अहम नष्ट करने की शक्ति और बुद्धि आप ही हमें दीजिए।

3) *दिगंबर-* दिक् अर्थात दिशा यही जिसका अंबर अर्थात वस्त्र है। ऐसा जो सर्वव्यापी है, जिसने सारी दिशाएं व्याप्त कर ली हैं वह दिगंबर। यदि यह देवता श्रेष्ठ हैं तो हमारे जैसे सामान्य जीव को उनकी शरण जाना ही चाहिए। ऐसा करने पर ही हम पर उनकी कृपा होगी। हम प्रार्थना करेंगे "हे दत्तात्रेय शरण कैसे जाना चाहिए? यह आप ही हमें सिखाएं। (दत्त मेरा मैं दत्त का इस फेसबुक पोस्ट से)।

*दत्त के नामजप का महत्व-* श्री गुरुदेव दत्त यह तारक नाम जप करते समय श्री दत्त गुरु का रूप अंतर्मन में आंखों के सामने लाना चाहिए एवं वही हमारे पूर्वजों के कष्टों से रक्षा करने के लिए तत्परता से आने वाले हैं, यह भाव रखकर नामजप के प्रत्येक अक्षर का भावपूर्ण उच्चारण करना चाहिए। श्री दत्त यह पूर्वजों को आगे की गति देने वाले देवता हैं। इसलिए श्री गुरुदेव दत्त यह नाम जप नियमित रूप से करने पर पूर्वजों के कष्टों से हमारी मुक्ति हो सकती है। दत्त के नाम जप से निर्मित होने वाली शक्ति से नाम जप करने वाले के चारों ओर संरक्षक कवच निर्मित होता है। दत्त के नाम जप से मृत्युलोक में अटके हुए पूर्वजों को गति मिलती है। (भूलोक एवं भुवर्लोक) इनके बीच में मृत्यु लोक है। इसलिए आगे वे उनके कर्म के अनुसार अगले अगले लोकों में जाने से स्वाभाविक रूप से उनसे व्यक्ति को होने वाले कष्टों की मात्रा कम होती है। दत्त का नाम जप करने से हमें शिवजी की शक्ति भी मिलती है। किसी भी प्रकार का कष्ट हो रहा हो अथवा आगे ना हो इसलिए कम से कम 1 से 2 घंटे श्री गुरुदेव दत्त यह नाम जप हमेशा करना चाहिए।

*श्री दत्त के वास्तव्य स्थान (निवास स्थान) -* श्री दत्त प्रभु ने अनेक जगह वास्तव्य किया । माहुरगढ, गिरनार, कारंजा, औदुंबर ,नर्सोबा की वाडी, गाणगापुर, कुरवरपुर, पीठापुर, श्री शैल्य, वाराणसी, भडगांव (यह काठमांडू से 35 किलोमीटर अंतर पर है) पंचालेश्वर (जिला बीड़ महाराष्ट्र) जहां भक्तों को आज भी श्री दत्त के अस्तित्व की अनुभूति होती है।

 

*विशेषताएं-* दत्त भगवान के साथ गाय होती है। वह पृथ्वी का प्रतीक है । चार श्वान (कुत्ते) अर्थात चार वेद झोली अर्थात अहम् नष्ट करना, कमंडलु अर्थात त्याग, विरक्ति का प्रतीक।

 

निरंतर सीखने की स्थिति में रहना सिखाने वाले दत्तगुरु-* श्री दत्तात्रेय स्वयं भगवान होने पर भी निरंतर सीखने की स्थिति में रहते हैं। इसीलिए श्री गुरुदेव दत्त ने 24 गुण गुरु बनाए ।व्यक्ति को दूसरों के दुर्गुण न देखकर प्रत्येक के गुण देखकर वे आत्मसात करने चाहिए एवं स्वयं का उद्धार कर लेना चाहिए। यह इस माध्यम से सिखाया। पृथ्वी, आप, तेज, वायु ,आकाश इन तत्वों से सृष्टि की उत्पत्ति हुई । इससे क्या सिखाया, पृथ्वी जैसी सहनशीलता, जल के समान अत्यंत मधुर, शीतल, एवं निरंतर कार्यरत रहना ,अग्नि से जो सामने आए उसको स्वीकार करना, अग्नि के सामने जो भी आए उसका एक क्षण में स्वीकार कर लेता है। वैसे ही साधना करके स्वयं के दुर्गुण नष्ट करके गुण वृद्धि करनी चाहिए। संसार की बुरी प्रवृत्तियों का नाश करने के लिए सिद्ध होना चाहिए। जिस प्रकार वायु (हवा) सुगंध के कारण आसक्त नहीं होता अथवा दुर्गंध से दूर नहीं भागता। आसक्ति से दूर रहकर सबको जीवन दान देता है इस तरह आसक्ति विहीन जीवन जी कर आकाश के समान सर्वव्यापी, निर्विकार,अचल, समत्व रखने का गुण आत्मसात करना चाहिए। इस दत्त जयंती के अवसर पर यह गुण हम भी आत्मसात करके गुण संवर्धन करने का ध्येय (लक्ष्य) लें।

श्री दत्त उपासना* श्री दत्त का नाम जप, श्री गुरुचरित्र का पारायण, भजन, कीर्तन उपवास आदि हम श्रद्धा पूर्वक करते हैं, परंतु केवल पठन, श्रवण भक्ति, नाम जप करने के साथ ही उसमें बताए अनुसार बातें कृति में लाकर हमें भी निरंतर सीखने की स्थिति में रहना आवश्यक है, तभी हम ईश्वर से एक रूप होंगे, तभी जीवन में आनंद एवं समाधान प्राप्त होगा।

 

*संगठित रूप से कार्य करना-* ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन मुख्य देवताओं ने पृथक कार्य न करके संगठित रूप से कार्य किया । यही अपने सामने रखकर, हम समाज के हित के लिए, राष्ट्रहित के लिए संगठित होकर कार्य करें। राष्ट्र कार्य करने के लिए गुण ग्राहकता आए, संगठन कौशल्य का निर्माण हो, इसलिए श्री दत्त गुरु को शरण जाकर प्रार्थना करें।

 


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