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आखिर इंसाफ मिला हिंदू पक्ष को ! मथुरा और काशी में सर्वे !!

के. विक्रम राव Twitter ID: @kvikramrao1

 20/Dec/23

इस्लामी तंजीमों, खासकर सुन्नी वक्फ बोर्ड, शाही ईदगाह और ज्ञानवापी मस्जिद कमेटियों, को अब काशी और मथुरा में शैव तथा वैष्णव आस्था केन्द्रों को उनके असली भक्तों को सहर्ष सौंप देना चाहिए। कौमी एकजहती हेतु यह सबसे बेहतर होगा। भारत से अधिक दुनिया में कहीं भी मुसलमान इतने महफूज नहीं हैं। इसीलिए उचित होगा कि न्यायालयों की राय मानकर इस्लामी संगठन अब हिंदुओं के साथ भारत में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का प्रयास करें। तनाव बहुत पनपाया गया। तब मुगल सल्तनत थीं। फिर अंग्रेज साम्राज्यवादी रहे और फिर ढोंगी सेक्युलर नेहरू कांग्रेसी आए। सभी लोग मुसलमानों को झुनझुना पकड़ाते रहे। नतीजन तनाव और विभाजन बढ़ता रहा। देश टूटा। दारुल इस्लाम बन गया।

अपनी जायदाद बचाने कई मुसलमान भारत में रह गए। कई अन्य ने भी पाकिस्तान जाने से इंकार कर दिया। अब फिर से धार्मिक अन्याय बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। भारत में रहना है तो यहां के कानून मानने होंगे। निजामे मुस्तफा संभव नहीं है, सेक्युलर भारत में।

क्या विडंबना है कि भारत में आज यह साबित करना पड़ रहा है कि लीला पुरुषोत्तम कृष्ण ने पैगंबरे इस्लाम के पूर्व जन्म लिया था। इतिहास गवाह है कि मथुरा में कृष्ण जन्मे थे। आततायी औरंगजेब आलमगीर ने जबरन उनका जन्मस्थान कब्जिया कर शाही ईदगाह बनवाई। अब तो इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी जांच के आदेश में दिए हैं। यहां हिंदू आस्थाकेंद्र के निशान मिले हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने इस हाई कोर्ट के सर्वे वाले आदेश पर रोक लगाने से भी इंकार कर दिया है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तो ज्ञानवापी मामले में की सुनवाई के दौरान कहा कि देश हित में इस केस का ट्रायल छः महीने में पूरा होना चाहिए। यह दो पक्षकारों के बीच सामान्य जमीन विवाद नहीं, बल्कि राष्ट्रीय महत्व से जुड़ा मामला है। जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच ने मंदिर जीर्णोंद्धार के खिलाफ मुस्लिम पक्ष से लगाई गई पांच अर्जियों को खारिज कर दिए। कोर्ट ने कहा कि जिला कोर्ट में 1991 में दाखिल मामले पर पूजा स्थल कानून लागू नहीं होता है। वहां सुनवाई जारी रहेगी। हिन्दू पक्ष की ओर से मंदिर जीर्णोद्धार के लिए लगाई गई अर्जी पर निचली अदालत में सुनवाई चल रही है।

उपासकों की मांग को स्वीकार कर अब पुरातत्व विभाग को आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़िया में दबी केशवदेव मंदिर के श्रीविग्रह को लाकर पुनः जन्मस्थान वाले मंदिर में पूजित किया जाए। इसे औरंगजेब के सैनिकों ने तोड़कर आगरा भेज दिया था। इस बेजा हरकत का प्रमाण मिलता है। सोलहवीं सदी में लिखी अखबारातमें जब मुग़ल बादशाह का फरमान जारी हुआ था। ईदगाह मस्जिद की दीवारों पर अभी भी कमल और शेषनाग के चिन्ह बने हैं। यह सनातन आस्था का प्रतीक हैं। स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत माह इस पूजा स्थल की यात्रा की थी। वादा किया था कि कृष्ण जन्म स्थान हिंदुओं को मिलेगा।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस बार सुनवाई के दौरान भगवान केशव का प्रवेश पास भी जारी किया था। भगवान केशव की उम्र शून्य लिखी है। इसमें मोबाइल और आधार कार्ड भी। देखें तस्वीर।

शाही ईदगाह अब इसके मूल स्वामी हिंदुओं को मिल सकता है। न्यायिक संकेत ऐसे ही मिल रहे हैं। हाई कोर्ट ने मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि से सटी शाही ईदगाह मस्जिद का अपनी देखरेख में सर्वेक्षण कराए जाने को मंजूरी दे दी। यह सर्वेक्षण हाईकोर्ट की ओर से तय एडवोकेट कमिश्नर की निगरानी में होगा। श्री कृष्ण विराजमान की ओर से दाखिल अर्जी पर कोर्ट ने यह मांग स्वीकार कर ली है। जस्टिस मयंक कुमार जैन की एकल पीठ ने यह फैसला दिया।

कोर्ट ने आदेश में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के इतिहास भी जिक्र किया है। कहा है, 5132 साल पहले भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कंस के मथुरा कारागार में जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, उसे कटरा केशव देव के नाम से जाना जाता है। 1618 ईस्वी में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर निर्माण कराया था। मुगल शासक औरंगजेब ने मंदिर ध्वस्त कर शाही ईदगाह मस्जिद बनवा दी। बाद में, गोवर्धन युद्ध के दौरान मराठा शासकों ने आगरा-मथुरा पर आधिपत्य जमा लिया और श्रीकृष्ण मंदिर का फिर से निर्माण करा दिया। इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने 1803 में 13.37 एकड़ भूमि नजूल की घोषित कर दी। 1815 में बनारस के राजा पटनीमल ने यह जमीन अंग्रेजों से खरीद ली। मुस्लिम पक्ष के स्वामित्व का दावा खारिज होकर 1860 में बनारस राजा के वारिस राजा नरसिंह दास के पक्ष में डिक्री हो गया। हालांकि विवाद चलता रहा।

जिला अदालत से 1920 में मुस्लिम पक्ष को झटका लगा। कोर्ट ने कहा, 13.37 एकड़ जमीन पर मुस्लिम पक्ष का कोई अधिकार नहीं है। इसके बाद 1935 में शाही ईदगाह मस्जिद के केस को एक समझौते के आधार पर फिर से तय किया गया। 1944 में पूरी जमीन पंडित मदनमोहन मालवीय और दो अन्य को बैनामा कर दी गई। उद्योगपति जेके बिड़ला ने भूमि की कीमत अदा की। 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बना लेकिन 1958 में वह अर्थहीन हो गया। इसी साल मुस्लिम पक्ष का एक केस खारिज कर दिया गया। 1977 में श्रीकृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ बना, जो बाद में सेवा संस्थान बन गया।

आस्था केन्द्रों के इन अनावश्यक विवादों का अंततः खात्मा होने के आसार अब स्पष्ट गोचर हैं। राम जन्मभूमि (अयोध्या) पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय दिशा सूचक बना है। अतः इलाहाबाद हाई कोर्ट से माकूल और न्याय सम्मत निर्णय आने के बाद राम, कृष्ण और शिव से सम्बद्ध तीर्थ स्थल फिर अपने पुराने गौरव और प्रतिष्ठा से परीपूरित होंगे। अर्थात राम के बाद शिव और कृष्णा भी इस्लामी कैद से मुक्त होंगे।

 

K Vikram Rao

Mobile : 9415000909

E-mail: k.vikramrao@gmail.com

 

 


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