जुट से निर्मित कालीन पर 10 फीसदी इंसेंटिव देने की मांग को लेकर कालीन निर्यातक संजय गुप्ता ने सासंद से मिलकर ज्ञापन दिया,ज्ञापन के दौरान सासंद रमेश बिंद ने कालीन निर्यातक को आश्वासन दिया की इसके हर संभव प्रयास किया जायेगा । ज्ञापन में संजय गुप्ता ने कहा है की कालीन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए भाजपा सरकार ने जो कदम उठाए हैं उसकी हम तहे दिल से सराहना करते हैं और उससे होने वाले आय से इस क्षेत्र का निरंतर रोजगार बढ़ रहा हैएवं बुनकरों का पलायन रुक रहा है इस वजह से कालीन उद्योग आपका आभार प्रकट करता है।
उन्होंने कहा कि वाराणसी में 2018 अक्टूबर में हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने हम लोगों को कालीन मेले का डिजिटल उद्घाटन करते हुए यह लक्ष्य दिया था कि हम अपने टर्नओवर 10 हजार करोड़ से बढ़ाकर 20 हज़ार करोड़ 2024 तक कर दे। हम लोग इसमें प्रयासरत रहे है और नतीजन हमारा टनवर करोना महामारी के बावजूद 10,000 करोड़ से बढ़कर आज 14,000 करोड़ हो गया परंतु अभी भी हम प्रधानमंत्री के दिए गए टारगेट से कुछ दूर है इसलिए हम लोगों की मांग है की हमें हमारे लक्ष्य की तरफ अग्रसर होने में उत्तर प्रदेश सरकार को कालीन नगरी भदोही एवं मिर्ज़ापुर से लगभग एक हजार करोड़ का जूट का कारपेट निर्यात होता है क्योंकि जूट एक प्राकृतिक उत्पाद है और विदेशों में लोगों का झुकाव प्राकृतिक उत्पादकी तरह समय के साथ बढ़ता जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में भारत के कालीनों के सबसे बड़े प्रीतियोगी है चीन, नेपाल, पाकिस्तान और ईरान परंतु इनके यहाँ आज भी जूट का उत्पादन नहीं होता है, जो हमारे लिए एक एडवांटेज है और इससे हमें उम्मीद है कि हम अपने इस एक हजार करोड़ के व्यापार को बढ़ाकर दो हज़ार करोड़ तक आने वाले दो सालों में कर सकते हैं परंतु हमें अपना टारगेट पाने के लिए इसके मार्केटिंग के लिए और खर्च करने पड़ेंगे। क्योंकि हमारा जूट से निर्मित कालीन हाथ द्वारा बनाया जाता है इसलिए इसमें समय ज्यादा लगता है और इसमें हमारी पूंजी ज्यादा दिनों तक फँसी रहती है इस वजह से हम लोग अपनी पूंजी उत्पादन पर ही इन्वेस्ट करते करते खत्म कर देते हैं, जिससे हम मार्केटिंग में वह बजट नहीं दे पाते हैं, जिसकी वजह से हम अपने व्यापार को बढ़ावा नहीं दे पा रहे हैं।
हमें पहले 10% का अतिरिक्त इन्सेंटिव मिलता था, जिससे हम अपने पूंजी का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा उत्पादन एवं इंसेंटिव का पैसा मार्केटिंग में लगाते थे जिससे हमारा व्यापार आज इस मुकाम पर पहुँचा है परंतु बीते कुछ सालों से W.T.O. के नियमों की वजह से लगभग सारी इन्सेंटिव न के बराबर हो गई है। चूंकि जूट एक कृषि उत्पाद है जिसका कालीन बनाकर निर्यात किया जाता है, परन्तु इसे टेक्सटाईल में डालकर हमें इन्सेंटिव नहीं मिलता यहाँ पर यह भी बताना चाहूंगा कि अमेरिका जैसे देश भी जब भारत को अपना कृषि उत्पाद निर्यात करते है, तो उनके किसानो को 5% इन्सेंटिव देते है। इंसेंटिव की मांग को लेकर पूर्व में उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य,और निर्यात प्रोत्साहन मंत्री से भी मिल चुके है