हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में पत्रकारिता के भीष्म-पितामह संपादकाचार्य बाबूराव विष्णु पराड़कर की नगरी काशी में अमर उजाला अखबार प्रबंधन ने दैनिक भास्कर भोपाल की संपादक रहीं उपमिता वाजपेयी को वाराणसी संस्करण का स्थानीय संपादक बनाकर इतिहास रच दिया है।
बता दें कि वैसे तो बनारस में 5 सितंबर 1920 से प्रकाशित सबसे पुराने समाचार पत्र "आज" ने आजादी की लड़ाई में अपनी प्रमुख भूमिका निभाने के साथ ही 103 वर्ष का सफर पूरा करके इतिहास तो रचा है, लेकिन वहीं दूसरी ओर लोकप्रियता के मामले में सबसे निचली पायदान में पहुंचने का भी इतिहास भी इसी अख़बार के नाम है।
आइये बनारस से प्रकाशित उन अखबारों की बात करते हैं जो एक दूसरे को सीधी टक्कर देने का दावा करते हैं, इस फेहरिस्त में शामिल अखबारों में दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, अमर उजाला, आई नेक्स्ट ही ऐसे समाचार पत्र हैं जो आम पाठकों के बीच अपनी लोकप्रियता बनाए हुए हैं।
पत्रकारिता के क्षेत्र में डिजिटल युग की चुनौतियों के बीच अब सीधे बात करते हैं बनारस से प्रकाशित आज और दैनिक जागरण में शुरू से ही संपादक जैसे महत्वपूर्ण पद पर न जाने ऐसी क्या मजबूरी रही है कि समाचार पत्र के मालिकों का ही कब्जा रहा है, भले ही इन्होंने कभी भी किसी मुद्दे पर कोई संपादकीय तक नहीं लिखते हैं, बल्कि उन्हीं के समाचार पत्र में कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार इस जिम्मेदारी को निभाते हैं और नाम छपता है संपादक जी का।
लेकिन बनारस में संपादकों की नियुक्ति के मिथ को तोड़ा है अमर उजाला, हिंदुस्तान और राष्ट्रीय सहारा के प्रबंध तंत्र ने।
बाद में जागरण हेड ऑफिस ने बनारस में संपादक जैसे महत्वपूर्ण पद पर कब्जा जमाये मलिकानों में से परम आदरणीय वीरेंद्र मोहन गुप्ता की जगह संपादकों की नियुक्ति करना शुरू कर दिया। इसी का परिणाम रहा कि बनारस में नंबर -1 अखबारों की रेस में अपनी बढ़त बनाए रखने में आज भी आगे है।
लेकिन हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य की सबसे प्रमुख स्तंभों में से एक मानी जाने वाली महादेवी वर्मा की नगरी काशी में किसी भी बड़े समाचार पत्र ने महिला पत्रकारों को अपने संस्थान में संपादक बनाना तो दूर एक ढंग का रिपोर्टर भी नहीं रखा है।
मजे की बात है इन्हीं अखबारों में आए दिन महिला सशक्तिकरण, महिला आरक्षण, नौकरियों में बराबरी की भागीदारी आदि जैसे मुद्दों पर खबरें प्रकाशित होती हैं, लेकिन जब इन्हें अपने संस्थानों में महिला पत्रकारों की नियुक्ति करने की बात हो तो उन्हें वे दोयम दर्जे पर रखना तो दूर है, बल्कि इनके संस्थानों में महिला पत्रकारों को जैसे अछूत माना जाता है।
जहाँ पिछले 10 वर्षों से यही अखबार वाले पीएम मोदी का सन्देश हर रोज लिखते रहते हैं कि "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" और अब 2024 के लोकसभा चुनाव के ठीक पहले केंद्र की मोदी सरकार ने तो "नारी बंदन अधिनियम को पास करके महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले सशक्त बनाने की दिशा में ऐतिहासिक कदम उठाया है।
कुछ ऐसा ही ऐतिहासिक कदम अमर उजाला के मालिक और राजूल माहेश्वरी और उनके प्रबंधन तंत्र ने दैनिक भास्कर भोपाल में संपादक रहीं उपमिता वाजपेयी को अमर उजाला वाराणसी में स्थानीय संपादक बनाकर न केवल इतिहास रच दिया है, बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में नारी शक्ति को इतनी बड़ी जिम्मेदारी सौंप कर यह साबित कर दिया है, पराड़कर, गर्दे, भारतेंदु की नगरी काशी में उपमिता वाजपेयी भी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अपने साथी पत्रकारों के साथ मिलकर एक नया इतिहास रचने वाली है, ऐसा हमें भरोसा है।
नारी शक्ति को सलाम...