पूरे शहर के अस्पतालों में इस वक्त बुखार से पीडि़त मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। जिसमें वायरल फिवर से लेकर डेंगू, चिकनगुनिया के काफी मामले सामने आ रहे हैं। जिसकी वजह से जनता में दहशत का माहौल है। सरकारी अमला अपनी हर भरसक कोशिश में लगा है घर घर जाकर बुखार से पीडि़त मरीजों की ट्रेसिंग की जा रही है व आशा वर्करों द्वारा दवायें भी उपलब्ध की जा रही हैं। इन्हीं सब को लेकर क्लाउन टाइम्स ने ओक्टिवा हास्पिटल के एमडी मेडिसीन व इंटरनल मेडिसीन कन्सल्टेन्ट डॉ. राघवेन्द्र कुमार सिंह से खास बातचीत की।
डॉ. सिंह ने बताया कि इस वक्त में पूरे शहर में ही सीजनल वायरल का प्रकोप है लेकिन ट्रान्स वरूणा इलाके में जहां वाटर लॉगिंग की समस्या ज्यादा है उस एरिया में डेंगू, चिकनगुनिया व स्वाइन फ्लू के काफी मरीज सामने आ रहे हैं। डेंगू के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि डेंगू बुखार एक कष्टदायक, शरीर को दुर्बल करने वाला मच्छर जनित रोग है और जो लोग दूसरी बार डेंगू वायरस से संक्रमित हो जाते हैं उनमें गंभीर बीमारी विकसित होने का काफी अधिक जोखिम होता है। डेंगू बुखार के लक्षणों में तेज बुखार, शरीर पर दाने, सिरदर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द शामिल हैं। कुछ गंभीर मामलों में रक्तस्राव और सदमा होता है, जो जीवन के लिए खतरा हो सकता है। संक्रमित व्यक्ति के आसपास रहने से आपको डेंगू बुखार नहीं हो सकता; इसके बजाय, डेंगू बुखार मच्छर के काटने से फैलता है। जब संक्रमित मच्छर किसी अन्य व्यक्ति को काटता है, तो वायरस उस व्यक्ति के रक्तप्रवाह में प्रवेश कर जाता है और संक्रमण का कारण बनता है।
डेंगू बुखार से ठीक होने के बाद, आपको संक्रमित करने वाले वायरस के प्रति दीर्घकालिक प्रतिरक्षा होती है - लेकिन अन्य तीन डेंगू बुखार वायरस प्रकारों के लिए नहीं। इसका मतलब है कि आप भविष्य में अन्य तीन वायरस प्रकारों में से किसी एक से फिर से संक्रमित हो सकते हैं। अगर आपको दूसरी, तीसरी या चौथी बार डेंगू बुखार होता है तो गंभीर डेंगू बुखार होने का खतरा बढ़ जाता है। गंभीर डेंगू बुखार तब होता है जब आपकी रक्त वाहिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और उनमें रिसाव होने लगता है। और आपके रक्तप्रवाह में थक्का बनाने वाली कोशिकाओं (प्लेटलेट्स) की संख्या कम हो जाती है। इससे आघात, आंतरिक रक्तस्राव, अंग विफलता और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है।
आगे उन्होंने बताया कि कभी कभी डेंगू और चिकनगुनिया आपस में ओवरलैप करते हैं जिसका शुरूआती दौर में पता लगाना मुश्किल होता है और क्योंकि पूर्ण रूप से बीमारी का पता लगाने के लिए होने वाले टेस्ट काफी महंगे होने के कारण सभी उसे अफोर्ड नहीं कर पाते। साथ ही उन्होंने कहा कि प्लेटलेटस काउंट कम होने का डर मरीज को ज्यादा परेशान कर देता है लेकिन जब तक प्लेटलेटस काउंड जब तक 10 हजार से नीचे न जायें तब तक घबराने की आवश्यकता नहीं। उनका कहना था कि डेंगू, चिकनगुनिया या स्वाइन फ्लू की कोई भी ऑथेन्टिक दवा इजात नहीं हुई है अस्सी प्रतिशत तक मरीज साधारण इलाज से ही ठीक हो जाते हैं सिर्फ 1 प्रतिशत मरीज ही क्रिटीकल अवस्था में जाते हैं।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पोस्ट मेडिकेशन के बाद मरीज को लगातार अपनी डॉक्टर के संपर्क में रहना चाहिए व पेन किलर का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। और सेल्फ मेडिकेशन नहीं करनी चाहिए।