फिल्मस्टार शाहरुख खान ने सनातन धर्म-विरोधी उदयनिधि स्टालिन को कल (5 सितंबर 2023) बड़े सटीक और माकूल ढंग से प्रतीकात्मक जवाब दिया। द्रमुक के इस 45-वर्षीय तमिलभाषी खेल और विकास मंत्री ने कहा था : “मच्छर, डेंगू, बुखार, मलेरिया, कोरोना का केवल विरोध नहीं कर सकते, इन्हें मिटाना होगा। सनातन धर्म भी ऐसा ही है। इसे खत्म किया जाना चाहिए।” इसके ठीक चंद घंटों बाद अकीदतमंद सुन्नी पठान शाहरुख खान राजधानी चेन्नई से सवा सौ किलोमीटर दूर विश्वविख्यात वैष्णव देवालय वेंकटेश्वर मंदिर (तिरुपति) मूर्तिपूजा हेतु गए। साथ में इकलौती पुत्री सुहाना खान थी। उनके साथ 38-वर्षीया उनकी नायिका नयनतारा भी थी। मलयालम की अभिनेत्री, तमिल के बाद अब तेलुगू फिल्मों की वे अदाकारा हैं। नयनतारा ने श्रीरामराज्यम (तेलुगू फिल्म) हेतु फिल्मफेयर पुरस्कार पाया था। सीता का अभिनय किया था। उनका मूल नाम है डायना मरियम कुरियन।
वेंकटेश्वर देवस्थानम के धर्माचार्य पंडित गौतम शर्मा ने मुझे फोन पर बताया कि किसी भी अहिंदू के मंदिर प्रवेश पर रोक नहीं है। केवल शर्त यही है कि वे प्रवेश टिकट खरीदें तथा एक घोषणापत्र दें कि सनातन आस्था का सम्मान करते हैं। शाहरुख खान अपनी नई फिल्म “जवान” के ट्रेलर के रिलीज से पहले जम्मू-कश्मीर में मां वैष्णों देवी के दर्शन के लिए भी गए थे। कल (7 सितम्बर 2023) यह रिलीज होगी।
यूं तुलनात्मक रूप से शाहरुख खान अन्य इस्लामी फिल्मी हस्तियों से भिन्न पृष्ठभूमि के हैं। बॉलीवुड का बादशाह समझा जाने वाला यह अभिनेता सरदार मनमोहन सिंह सरकार द्वारा 2005 में पद्मश्री से नवाजा जा चुका है। उन्होंने फिल्मफेयर के 14 एवार्ड पाये। आठ दफा तो सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार पाया। रंगमंच और टीवी से सुनहरे पर्दे पर आनेवाले शाहरुख खान ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र पढ़ा और जामिया मिलिया इस्लामिया से पत्रकारिता में परास्नातक डिग्री ली। उनके भारत भक्त, पाकिस्तान-विरोधी परिवार के विषय में चर्चा के पूर्व उन्हीं की भांति सीमांत प्रदेश से मुंबई आकर बसे एक अन्य फिल्मी सितारे के बारे में गौर कर लें। उस शीर्ष के अभिनेता का नाम है यूसुफ खाँ उर्फ दिलीप कुमार। उन्हें इस्लामी पाकिस्तान ने सर्वोच्च खिताब “हिलाले पाकिस्तान” से विभूषित किया था। कारगिल युद्ध (जुलाई 1999) में मांग उठी कि पाकिस्तान हमले के कारण वे इस पाकिस्तानी उपाधि को वापस कर दें। तब इस फिल्मस्टार ने जनमत के दबाव के कारण घोषणा की थी कि वे अटल बिहारी वाजपेई से सलाह लेकर उचित फैसला करेंगे। प्रधानमंत्री का बड़ा टका सा जवाब था : “पाकिस्तान से लेते समय तो मुझसे पूछा नहीं था। तो अब वापसी पर मेरी राय क्यों ?” दिलीप कुमार ने खिताब वापस कर दिया।
तुलनात्मक तौर पर देखें शाहरुख खान पूर्णतया राष्ट्रभक्त परिवार से हैं। भारत के स्वाधीनता-संग्राम का इतिहास गवाह है। शाहरुख खान के पिता ताज मोहम्मद ख़ान एक स्वतंत्रता सेनानी थे। उनकी माँ लतीफ़ा फ़ातिमा मेजर जनरल शाहनवाज़ ख़ान की दत्तक पुत्री थीं। नेताजी सुभाष बोस की आजाद हिंद फौज में जनरल शाहनवाज़ कमांडर थे। उसे दौर में लाल किले के जेल (1946) में नारा गूंजता था : “सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज, इंकलाब जिंदाबाद।” शाहरुख ख़ान के पिता हिंदुस्तान के विभाजन से पहले पेशावर के किस्सा कहानी बाज़ार से दिल्ली आए थे। हालांकि उनकी माँ रावलपिंडी से आयीं थी। ताज मोहम्मद खान मीर दो बार ब्रिटिश जेल में कैद रहे। इनके गुरु थे सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खां। मीर साहब नामी वकील थे, कंचनजंगा पर्वतमाला पर चढ़ चुके हैं। लम्बे कद के मीर साहब को फिल्म 'मुगले आजम' के निदेशक के. आसिफ ने राजा मान सिंह की भूमिका की पेशकश की थी पर उन्होंने इंकार कर दिया। तब अभिनेता मुराद (रजा के पिता) को वह दी गई। मीर साहब फिल्म को नौटंकी मानते थे। हालांकि इसी नौटंकी का नामी कलाकार उनके बेटे शाहरुख खान अब हो गये है। नेहरू सरकार ने मीर साहब को स्वाधीनता सेनानी होने के नाते एक दुकान आवंटित की थीं। वे दिल्ली में 19 सितम्बर 1981 तक जीवित थे। इन ताज मोहम्मद मीर का जीवन का सर्वश्रेष्ठ राष्ट्रवादी और भारत—हितैषी कार्यक्षेत्र पेशावर था। उनके भाई गुलाम मोहम्मद गामा (शाहरुख खां के सगे चाचा) थे। तब की राष्ट्रवादी घटना है। उसी दौर में पाकिस्तानवाली मांग के अभियान में मोहम्मद अली जिन्ना पेशावर आ रहे थे। वे जोशखरोश से भारतीय मुसलमानों के लिए दारूल—इस्लाम के नाम पर भारतव्यापी जद्दोजहद चला रहे थे। उस दिन ताज मोहम्मद मीर और भाई मोहम्मद अली गामा ने सारे पेशावर में पोस्टर लगवा दिये कि अकीदतमंद के सरबराह मियां मोहम्मद अली जिन्ना दोपहर के दो बजे शाहजहानी (मस्जिद मस्जिद मोहम्मद खान) में पधार कर नमाज अता फरमायेंगे। हजारों नमाजी मस्जिद में जमा हो गये। इधर जिन्ना समझ गये कि कुछ शरारतियों की यह खुराफात है। जिन्ना ने न कभी नमाज अता की, न कोई कुरान की आयात उन्हें याद थी। न रमजान के रोजे रखते थे। न किसी मजहबी रस्म का इल्म था। इसी वजह से मोहम्मद अली जिन्ना पेशावर के अपने गेस्ट हाउस में ही बैठे रहे। मस्जिद गये ही नहीं।
उधर मस्जिद में मियां गामा ने अपने लोगों को नमाजियों की भीड़ में पैठे रहने को कहा। ढाई बजे गये तो भीड़ ने ''जिन्ना साहब आओं'' के सूत्र पुकारे। जब जिन्ना नहीं आये तो भीड़ उनको गाली देते मस्जिद से चली गयी। खबर खूब छपी। इस घटना द्वारा शाहरुख के वालिद ताज मोहम्मद मीर तथा चाचा गामा ने दिखा दिया कि मुस्लिम लीग के अध्यक्ष और मुसलमानों के कायदे—आजम का दावा ठोकने वाले ढोंगी है। खुदा की इबाहतगाह से साफ कन्नी काट गये। भारतभर में जिन्ना की जोरदार फजीहत हुई। हिन्दुस्तान टाइम्स, नई दिल्ली, में चार कालम की हेडलाइन का फीचर छपी थी। फिल्म दर्शकों में सांप्रदायिकता—विरोधी लोग किंग खान पर बहुत नाज करते हैं। अन्य खान-अभिनेताओं की तुलना में शाहरुख सेक्युलर हैं। ऐसे मुसलमान पर भारत के गर्व हैं।