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वाराणसी में नाग पंचमी की अनोखी परंपराएं, महुअर से लेकर शास्‍त्रार्थ तक की मान्‍यताएं आज भी जीवंत



 22/Aug/23

नाग पंचमी की अनोखी मान्‍यताएं काशी में आज भी जीवंत हैं। यहां पर मान्‍यताओं और परंपराओं का मेला आज भी सजता है और शास्‍त्रार्थ से लेकर महुअर खेलने तक की परंपरा गुड़‍िया पर्व पर जीवंत होती है।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। काशी में नाग पंचमी पर महुअर, शास्‍त्रार्थ, दंगल, नाग पूजन, नागकूप के दर्शन की मान्‍यता है। काशी की पुरातन परंपराओं के बीच यह पांच प्रमुख आयोजन नाग पंचमी पर लोगों के बीच चर्चा में रहती है। इस बार भी इन्‍हीं परंपराओं को आगे ले जाने की तैयारियां जिला स्‍तर पर आयोजक संस्‍थाएं निर्वहन कर रही हैं। इसके अतिरिक्‍त काशी में परंपराओं का अनवरत क्रम भी इसी के साथ परवान चढ़ेगा। वैसे तो नाग पंचमी पर्व को गुड़‍िया का पर्व भी माना जाता है जहां लड़कियां गुड़‍िया बनाकर मेले में डालती हैं। अब यह परंपरा कुछ ही स्‍थानों पर शेष है। जानते हैं काशी की उन परंपराओं के बारे में जो इसे देश दुनिया से अलग करते हैं। 

महुअर : यह दरअसल एक खेल है जिसमें तंत्र मंत्र के साथ ही इसके असर को देखकर लोग दंग हो जाते हैं। तंत्र मंत्र और जादू टोने पर आपको यकीन न हो तो आप महुअर को देखकर यकीन करने लगेंगे। चारों ओर तंत्र मंत्र भूत भभूत का साया और एक दूसरे पर भस्‍म फेंककर जख्‍मी करने की ताकत को दिखाता यह प्रदर्शन आपको हैरतअंगेज नजारे पेश करता नजर आता है। एक दूसरे को संभालने की ताकीद देते हुए मंत्रों की मार से चोटिल लोगों को देखकर हैरान होती भीड़ का मनोरंजन ही दरअसल महुअर होता है। यह स्‍वांग तंत्र मंत्रों की डुप्‍लीकेसी और डद्म प्रहार को देखकर जनता खुश होती है और महुअर करने वालों (स्‍वांग धरकर नाटक करना) को इनाम भी देती है।
शास्‍त्रार्थ : यह परंपरा युगों पुरानी वैदिक कालीन परंपरा से जुड़ी है। महर्षि पतंजलि की जैतपुरा में नागकूप में स्‍थापना मानी जाती है। पतंजलि की परंपरा शास्‍त्रार्थ की रही है, इस लिहाज से नागकूप में परंपरा का मान रखते हुए प्रतिवर्ष परंपराओं का अनुपालन किया जाता है। परंपराओं के क्रम में शास्‍त्रार्थ की मान्‍यता के अनुसार वेद पाठी बटुक और वेद शास्‍त्रवेत्‍ताओं के बीच मंथन और तर्क के साथ ही तथ्‍यों को सामने रखकर वैदिक परंपराओं में तथ्‍य तर्क को काटने और उसमें से निचोड़ सामने रखने की मान्‍यता का अनुपालन किया जाता है। प्रतिवर्ष इसका निर्वहन नागकूप क्षेत्र में आज भी किया जाता है। पाणिनि अष्टाध्यायी से विल्वार्चन तथा धातूपाठ भगवान नागेश्वर महादेव का होगा। इसके बाद व्याकरण वेदांत न्यायशास्त्र साहित्य और मीमांसा आदि शास्त्रों पर चर्चा होगी। 

नागपूजन : काशी में नाग पंचमी पर नागपूजन की परंपराएं आज भी जीवित हैं। नागपूजन के साथ ही नाग से वर्ष भर रक्षा और श्री समृद्धि की कामना का यह पर्व मनाया जाता है। गौ दूध के साथ ही लावा का मेल शिवलिंग पर अर्पित कर समृद्धि की कामना और मान्‍यता का यह पर्व सावन मास में शिव को समर्पण के साथ ही मान्‍यताओं को पूरा करने वाला माना गया है। वर्ष भर में यह त्‍योहार एक बार आता है तो कामनाओं से पूरा शहर बाबा के दर्शन पूजन को उमड़ पड़ता है। 
नागकूप दर्शन : जिनपर महंर्षि पतंजलि की कृपा होती है उनको कोई दुख नहीं होता। दरअसल पतंजलि शेषनाग के अवतार माने जाते हैं। जिनका स्‍थान नागकूप में होने की अनोखी मान्‍यता होने की वजह से जैतपुरा के नागकूप में प्रतिवर्ष लोग शीश झुकाने और उनको नमन करने आते हैं। नागपंचमी पर्व पर आस्‍था का रेला यहां उमड़ता है। स्‍नान ध्‍यान और जल आचमन करने के लिए आने वाले श्री समृद्धि की यहां पर कामना करना नहीं भूलते। 


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