वाराणसी। छत्रपति शाहू जी महाराज को सच्चे प्रजातंत्रवादी और समाज सुधारक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने सामाजिक परिवर्तन की दिशा में जो क्रांतिकारी उपाय किए उसके लिए वह इतिहास में हमेशा याद किए जाएंगे। वह राजा थे लेकिन दलित और शोषित वर्ग के कष्ट को समझते थे। शाहू जी महाराज, महाप्रतापी छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज थे। बातें कचहरी स्तिथ दीवानी कैम्पस बड़ा टीन सेट के पास आयोजित कार्यक्रम में बार कौंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के पूर्व चेयरमैन व सदस्य हरिशंकर सिंह ने कही। समाज से भेदभाव मिटाने को उन्होंने बहुत से रचनात्मक उपाय अपनाएं। 1894 में उन्होंने कोल्हापुर राज्य की बागडोर संभाली। 1902 में उन्होंने राज्य में आरक्षण लागू कर दिया जो ऐतिहासिक कदम था। उन्होंने नौकरियों में पिछड़ी जाति के 50 प्रतिशत लोगों को आरक्षण देने का फैसला किया। इस फैसले ने आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था की राह दिखाई। उन्होंने अपने शासन क्षेत्र में सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी तरह के छुआछूत पर कानूनन रोक लगा दी। बाल विवाह पर प्रतिबंधित लगाया। उन्होंने अंतरजातीय विवाह और विधवा के पुनर्विवाह के पक्ष में आवाज उठाई। दलित वर्ग के बच्चों को मुफ्त शिक्षा की प्रक्रिया शुरू की। गरीब छात्रों के लिए छात्रावास स्थापित किए। 1917 में उन्होंने 'बलूतदारी' - प्रथा का अंत किया। 1918 में 'वतनदारी' प्रथा का अंत किया। वह महात्मा ज्योतिबा फुले से प्रभावित थे। उन्होंने सभी जाति वर्गों के लोगों को देखा। उन्होंने डॉ भीमराव अंबेडकर को उच्च शिक्षा के लिए विलायत भेजने में अहम भूमिका अदा की। डॉ अंबेडकर के 'मूकनायक' समाचार पत्र के प्रकाशन में भी उन्होंने सहायता की। पिछड़ी जातियों के मेधावी छात्रवृतियां दी। अपने राज्य में सभी के लिए अनिवार्य मुफ्त प्राथमिकी शिक्षा भी शुरू की। वैदिक स्कूलों की स्थापना की। उन्होंने देवदास प्रथा पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून की शुरुआत की।
इस अवसर पर डॉ हरिश्चन्द्र मौर्य, माधुरी सिंह, महामंत्री शशिकांत दुबे, संजय सिंह दाड़ी, हौसिला पटेल, बबलू सिंह नित्यानंद राय व मोहम्मद अनीस सहित सैकड़ों अधिवक्ता मौजूद थे।