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भारत विकास परिषद् ने शौर्य दिवस के रूप में मनाया महारानी लक्ष्‍मीबाई का बलिदान दिवस



 20/Jun/23

भारत के गौरवशाली इतिहास में जब-जब महान वीरांगनाओं का जिक्र किया जाएगा। महारानी लक्ष्मी बाई की वीरता, पराक्रम और देशभक्ति हमेशा लोगों को प्रेरणा देते रहेंगे। हर साल 18 जून को रानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस के रूप में उनके शौर्य की याद दिलाता है। इसी कड़ी में भारत विकास परिषद् शिवा शाखा द्वारा महारानी लक्ष्मीबाई का बलिदान दिवस मनाया गया। कार्यक्रम में रानी की पहचान बन चुकी पंक्तियां  "दोनों हाथों में तलवार और मुंह में घोड़े की लगाम, ब्रिटेन तक सुनाई दी थी जिसकी ललकार" और खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी को दोहराया गया।  21 नवंबर 1853 को रानी लक्ष्मीबाई के पति एवं झांसी के राजा गंगाधर नेवलकर की मृत्यु के बाद  झांसी की रानी ने गद्दी संभाली। अंग्रेजों ने अवसर देखकर 1854 से 1857 तक कई बार झांसी पर हमला किया झांसी ने भी रानी के नेतृत्व में ईट का जवाब पत्थर से दिया। युद्ध में कई अंग्रेज मारे गए। पहली बार में ही अंग्रेजों के छक्के छूट गए। 17 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई का अंतिम युद्ध ग्वालियर में लड़ा गया । तब रानी अपने दत्तक पुत्र को पीठ पर बांधकर अंग्रेजों से निर्भीकता पूर्वक युद्ध करने लगी। अंग्रेजों से युद्ध करते हुए स्वर्ण रेखा नाले की ओर बढ़ चली। किंतु दुर्भाग्यवश रानी का घोड़ा इस नाले को पार नहीं कर सका और घायल हो गया। उसी समय  एक अंग्रेज सैनिक ने  पीछे से उनको गोली मार दी । रानी लक्ष्मीबाई ने उस अंग्रेज सैनिक की अपने तेज तलवार से दो टुकड़े कर दिए। लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें  घेरकर तलवार से हमला कर दिया।  तब रानी का अंगरक्षक घायल अवस्था में उन्हें लेकर  पास के एक मंदिर में पहुंचा। जहां रानी ने पुजारी से कहा कि मेरे बेटे दामोदर की रक्षा करना और अंग्रेजों को मेरा शरीर नहीं मिलना चाहिए। अंत में 18 जून 1958 को रानी लक्ष्मीबाई साहस और शौर्य का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं। अंग्रेजों से बचाने के लिए संत गंगा दास ने रानी का पार्थिव देह मंदिर की कुटिया में रखा और घास फूस से नारी शक्ति को मुखाग्नि देकर उनका अंतिम संस्कार कर दिया। उसी जगह रानी की चिता ने ग्वालियर में शौर्य की ज्वाला को अमर कर दिया। फूलबाग में वही उनकी समाधि बनी। अंग्रेजों की सरपरस्ती में ग्वालियर का काला अध्याय भले ही रानी को मौत दे गया। लेकिन दुनिया से जाते- जाते वह ग्वालियर को दे गई, वीरता की एक अमिट कहानी। वह देश भक्ति का एक ऐसा इतिहास लिख गई जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।

इस अवसर पर भारत विकास परिषद शिवा शाखा के पदाधिकारी तथा सदस्यगण द्वारा स्थापित रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। सभा का संचालन अखिलेश तिवारी  सचिव, अध्यक्षता मोहन रौंनियार तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रकल्प प्रमुख श्रीमती प्रतिमा तिवारी ने किया।

इस अवसर पर भारत विकास परिषद काशी प्रांत के संरक्षक एस.एन. खेमका ने  महारानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस पर उन्हें कोटि-कोटि  नमन करके  श्रद्धांजलि अर्पित किया और कहा कि इस महान वीरांगना की जन्मस्थली काशी होने पर हम सभी उनकी वीरगाथा पर गर्व करते हैं।

कार्यक्रम में पूर्व अध्यक्ष प्रदीप चौरसियाकोषाध्यक्ष कौशल शर्मापर्यावरण प्रकल्प प्रमुख मदन राम चौरसिया, रमेश चंद्र श्रीवास्तव, डॉ. अनिल गुप्ता, रघूदेव अग्रवाल, कृष्ण कुमार काबराअरूण अग्रवालबासुदेव गुप्ता, अनूप अग्रवाल, समीर मिश्र, एवं श्रीमती सुमन अग्रवाल एवं अन्य पदाधिकारी तथा सदस्यगण की गौरवमयी उपस्थिति रही।


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