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बनारस में करोड़ों रुपए हेरा-फेरी मामले में इंस्पेक्टर रमाकांत दुबे सहित 7 पुलिसकर्मी हुए बर्खास्त



 12/Jun/23

बताते चलें कि क्या अजीब इत्तेफाक कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में उनके ही मूल प्रदेश गुजरात की फर्म के थाना भेलूपुर स्थित कार्यालय से 29 मई को हथियारबंद लोगों के द्वारा 1 करोड़ 40 लाख रूपये की डकैती कर शर्मसार किया है।

बता दें कि सूबे की योगी सरकार में जीरो टॉलरेंस यानी भ्रष्टाचार मुक्त प्रदेश के ऐलान के बाद भी सरकारी महकमें से जुड़े कुछ भ्रष्ट अधिकारी और कर्मचारियों समेत भाजपा संगठन से जुड़े कुछ नेता भी अपने भ्रष्ट आचरण के चलते सरकार की छवि को पलीता लगाने में जुटे हैं।

खबर है कि थाना भेलूपुर अंतर्गत गुजरात की फर्म के कार्यालय में 29 मई की रात दो वाहन से आए हथियारबंद लोगों ने डकैती डालकर 1 करोड़ 40 लाख रुपए लूट लिया था।

इस मामले की पूरी सूचना भेलूपुर थाने की पुलिस को थी, लेकिन प्रभावी कार्रवाई नहीं की गई। बाद में लावारिस कार की डिकी से 92.94 लाख रुपये से ज्यादा की बरामदगी दिखाकर पुलिस वाले अपनी पीठ थपथपाने की कोशिश में जुट गए । 

 इस मामले की सूचना बनारस पुलिस कमिश्नरेट के आला अधिकारियों को जैसे ही मिली कि डकैती का पूरा खेल पुलिस कर्मियों की मिलीभगत से हुआ है, फौरन इसका संज्ञान लेकर भेलूपुर के तत्कालीन थाना प्रभारी रमाकांत दुबे, दरोगा सुशील कुमार, महेश कुमार व उत्कर्ष चतुर्वेदी सहित कांस्टेबल महेंद्र कुमार पटेल, कपिल देव पांडेय व शिवचंद्र सभी को निलंबित कर दिया गया था ।

इसके पश्चात् DCP काशी जोन की जाँच में भेलूपुर थाने के तत्कालीन इंस्पेक्टर रमाकांत दुबे सहित, दरोगा सुशील कुमार, महेश कुमार, उत्कर्ष चतुर्वेदी तथा कांस्टेबल महेंद्र कुमार पटेल, कपिल देव पांडेय, शिवचंद्र की संलिप्तता उजागर होते ही, अपर पुलिस आयुक्त अपराध एवं मुख्यालय संतोष कुमार सिंह ने सभी को बर्खास्त कर दिया।

इस बारे में मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पुलिस आयुक्त वाराणसी मुथा अशोक जैन ने बताया कि प्रकरण में सात पुलिस कर्मियों को बर्खास्त किया गया है। दर्ज मुकदमे की विवेचना जारी है। आगे की विवेचना में जो तथ्य सामने आएंगे उसके आधार पर अलग से कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

शनिवार 10 जून को बर्खास्त पुलिस कर्मियों को लेकर पुलिस महकमे में जबरदस्त चर्चा रही।

पुलिस कर्मियों का ही कहना था कि पैसे की गिनती सीसी कैमरे के सामने हुई थी। जितनी बरामदगी दिखाई गई है, पैसा उससे कहीं ज्यादा था। हिस्से में मिलने वाली रकम को लेकर असंतुष्ट एक दरोगा ने एक अफसर से पूरे प्रकरण के बारे में चर्चा कर दी। इसके बाद पूरी बाजी पलट गई।


पैसा कोई और दबा ले गया और कार्रवाई की जद में सात पुलिस कर्मी आ गए।
यहां पुलिसकर्मियों के बीच रुपए की बंदरबांट को लेकर
 यह कहावत काफी चरितार्थ साबित हो रही है कि
"भीलो ने तो बांट लिया बन, राजा को खबर तक नहीं..." इस पूरे प्रकरण में दंडित पुलिस कर्मियों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही नजर आ रही है।

कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जीरो टॉलरेंस के संदेश को ना केवल दिखाना चाहते हैं, अपितु वास्तविकता के धरातल पर उसे कड़ाई से लागू भी करना चाहते हैं।
बावजूद इसके चाहे संजय शेर पुरिया हो अथवा बनारस के पुलिसकर्मियों सहित भाजपा नेत्री VDA साधना वेदांती का मामला हो, ऐसे कुछ लोगों के चलते लगता है कि वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में भ्रष्टाचार और आर्थिक अपराध का मामला दीमक की तरह फैल गया।

अन्यथा योगी जी की हनक को दरकिनार कर भाजपा की पूर्व सभासद व वाराणसी विकास प्राधिकरण की सम्मानित सदस्य साधना वेदांती के नाम पर VDA के कुछ कर्मचारी धन उगाही करने की हिम्मत नहीं करते।
मजे की बात है कि भ्रष्टाचार के मामले में लिखित शिकायत मिलने के बाद भी अब तक VDA सदस्य के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं हुई।

यह तो पूरे देश ने देखा कि कर्नाटक में भाजपा की प्रबल हार के बाद भी उत्तर प्रदेश के नगर निकाय चुनाव प्रचंड जीत ने यह तो संकेत दे दिया है कि भारत के राजनीति के उदयाचल पर योगी जी एक नवीन सूर्योदय के रूप में स्थापित है, शायद कुछ लोगों को यह बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है और इसीलिए ऐसे भ्रष्ट आचरण से उत्तर प्रदेश को प्रदूषित करने में जुटे हैं।


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