अटॉर्नी में बदलाव से राज्य के राजस्व में वृद्धि संभव
भारतीय स्टांप अधिनियम 1899 की अनुसूची 1ख के अनुच्छेद 48 मुख्तारनामा विलेख पर लगने वाले स्टांप शुल्क का प्रावधान किया गया है। हाल के दिनों में एक गलत व्यवस्था संज्ञान में आई थी जिसमे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से जुड़े हुए जनपदों में अन्य राज्यों से जुड़े संपत्तियों के मुख्तारनामे की संख्या में अत्यधिक वृद्धि दर्ज की गयी थी। इनमे कतिपय व्यक्तियों द्वारा अपनी संपत्ति के अंतरण के विषय में उचित बैनामा लिखवाने के बजाय मुख्तारनामा के रूप में, तथाकथित मुख्तार को, एक सम्पत्ति-स्वामी के समस्त अधिकार प्रदान कर दिए जा रहे थे। ऐसा इसलिए किया जा रहा था क्योंकि मुख्तारनामा विलेख के निष्पादन हेतु स्टांप शुल्क की दर मात्र रु 50 थी, जबकि बैनामा करने पर प्रभार्य स्टांप शुल्क न्यूनतम प्रश्रगत सम्पत्ति के बाजार मूल्य है। इस प्रकार से किए जा रहे संव्यवहार से राज्य के राजस्व का हनन हो रहा था और जन मानस को सही तथ्य ना बता के गुमराह भी किया जा रहा था, जिससे सम्पत्ति सम्बन्धी विवादों में वृद्धि होने के साथ भ्रष्ट आचरण को भी बढ़ावा मिल रहा था।
वर्तमान में प्रस्तावित संशोधन, जिसे राज्य मंत्रिपरिषद द्वारा अनुमोदित कर दिया गया है, के द्वारा किसी ऐसा मुख्तारनामें, जिसमें अचल संपत्ति के अंतरण का अधिकार भी मुख्तार को दिया जा रहा हो, में प्रभार्य स्टांप शुल्क, प्रश्नगत संपत्ति के अंतरण पर लगने वाले स्टांप शुल्क के समतुल्य अर्थात बाज़ार मूल्य (सर्किल रेट) कर दिया गया है। इस कारण विधिक रूप से निष्पादित बैनामा अभिलेख एवं भ्रष्ट एवं छद्म रूप से उसी प्रयोजन के लिए निष्पादित किए जाने वाले छद्म मुख्तारनामा विलेख, दोनों का ही प्रभार्य स्टांप शुल्क बराबर हो जाता है। अतः इस भ्रष्ट आचरण को प्रेरित करने वाला कारक समाप्त हो जाता है।
परन्तु परिवार के संबंधियों के मध्य मुख्तारनामा निष्पादित किए जाने की दशा में स्टाम्प शुल्क को अधिकतम 5000 मात्र रखा गया है एवं ऐसे सद्भावी संव्यवहार, जिनमें कोई पक्षकार किसी भी कारणवश रजिस्ट्री कार्यालय में उपस्थित होने में असमर्थ हो, इस संशोधन से प्रभावित नहीं होंगे। यदि कोई व्यक्ति सद्भावी रूप से बिना उपस्थित हुए अपनी सम्पत्ति का विक्रय विलेख निबंधित करवाना चाहता, तो उसे मात्र निबंधन हेतु किसी अन्य व्यक्ति को मुख्तार नियुक्त करना होगा, जिसका प्रभार्य स्टाम्प शुल्क मात्र 10 ही है। वैध प्रमाणीकृत मुख्तारनामें द्वारा व्यक्ति स्वयं विलेख निष्पादित कर के मुख्तार द्वारा उप निबंधक के समक्ष प्रस्तुत कर सकता है । अर्थात इस संशोधन से सद्भावी संव्यवहार पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा।