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स्‍तनपान कराने से महिलाओं का स्‍वास्‍थ्‍य व सौन्‍दर्य रहता है कायम : डॉ. के.के. जैन



 01/Jun/23

छोटे बच्‍चे खासतौर पर जन्‍म से 5 वर्ष तक के बच्‍चे जल्‍दी बीमारी की चपेट में आ जाते हैं जिससे उन्‍हें बचाना बेहद जरूरी है। माता-पिता बनने के बाद वैसे तो पेरेंटस का पूरा फोकस अपने बच्‍चों पर होता है लेकिन जानकारी के अभाव या छोटी सी चूक पर बच्‍चों पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है। इम्‍यूनिटी कमजोर होने के कारण बार-बार बीमार पड़ना स्‍वाभाविक है जिससे बच्‍चों पर संकट बना रहता है। क्‍लाउन टाइम्‍स ने शहर के जाने-माने बाल रोग विशेषज्ञ व जैन हॉस्पिटल के अधिष्‍ठाता डॉ. केके जैन से खास बातचीत की। जिसमें उन्‍होंने बच्‍चों को दो वर्ग जन्‍म से 1 वर्ष व 1 वर्ष से 5 वर्ष में बांटते हुए बताया कि अधिकतर बच्‍चों में बीमारी इसी उम्र में ज्‍यादा पाई जाती है। जन्‍म से 1 वर्ष के बच्‍चों की इम्‍यूनिटी काफी कमजोर होती है जिससे उन्‍हें संक्रमण तेजी से पकड़ता है। इस उम्र के बच्‍चों के लिये सैनिटेशन, हाईजीन व रख-रखाव का ख्‍याल रखना पड़ता है। बीमारियों के बारे में बताते हुए उन्‍होंने कहा कि इस उम्र के बच्‍चों में डायरिया, सर्दी-जुखाम, निमोनिया जल्‍दी होता है। एक वर्ष के अंतराल में बच्‍चे बार-बार इन बीमारियों से ग्रस्‍त होते हैं जिससे उनकी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। डायरिया की मुख्‍य वजह बताते हुए उन्‍होंने कहा कि इन्‍फेंट यानि जन्‍म से एक वर्ष के बच्‍चों को बॉटल से दूध पिलाना या दूषित पानी का सेवन कराने से बार-बार डायरिया की समस्‍या देखी जाती है। नए जमान के समाज के परिवेश में महिलायें बच्‍चों को स्‍तनपान कराने में हिचकिचाती हैं जिससे बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। प्रसव के दो-तीन घंटे के उपरांत ही बच्‍चे को स्‍तनपान कराना अति आवश्‍यक है। क्‍योंकि प्रसव के बाद मां के स्‍तन से जो पीला गाढ़ा पदार्थ कोलोस्‍ट्रम जिसे आम भाषा फेनुस के नाम से जाना जाता है बच्‍चों के लिए बहुत शक्तिवर्धक होता है। आगे उनहोंने कहा कि प्रसव के बाद मां को दूध उतरने में 40-50 घंटे का समय लग सकता है लेकिन हमारी सलाह यही है कि बच्‍चे को प्रसव के बाद तुरन्‍त ही स्‍तनपान कराना चाहिए। जिससे मां का दूध जल्‍दी उतरेगा और ज्‍यादा मात्रा में होगा।

कोलोस्‍ट्रम या फेनुस के बारे में उन्‍होंने कहा यह बच्‍चे की इम्‍यूनिटी बूस्‍ट करने के लिये बेहद जरूरी पदार्थ है जो बच्‍चों को बीमारीयों से बचाने में कारगर साबित होता है। कोलोस्‍ट्रम में बीटा कैरोटीन की उच्‍च मात्रा के कारण इसका गहरा पीला या संतरी होता है। जिसमें कई पोषक तत्‍व मिले होते हैं। इम्‍यूनिटी को मजबूत करने के लिये अधिक मात्रा में लिम्‍फोसाइट, और मेक्रोफेज जैसी कोशिकाओं का निर्माण करता है। इसमें सीक्रेटरी इम्‍युनोग्‍लोबुलिन के नामक एंटी बॉडी की उच्‍च मात्रा होतीहै जो शिशुको संक्रमण से बचाता है। आगे उन्‍होंने कहा कि स्‍तनपान स्‍वयं मां के स्‍वास्‍थ्‍य के लिये भी काफी लाभकारी है। स्‍तनपान कराने से महिला का गर्भाशय प्रसव से पूर्व की स्थिति में जल्‍दी आ जाता है जो मांसपेशियां ढीली हो गई हैं वह स्‍वत; अपना पूर्व रूप ले लेती हैं। और मां का स्‍वास्‍थ्‍य ही नहीं सौन्‍दर्य भी खुद ब खुद निखर जाता है।

डॉ. जैन ने कहा कि बच्‍चों को बॉटल से दूध पिलाना काफी हानिकारक हो सकता है लेकिन आजकल माताएं ज्‍यादातर बच्‍चों को कुछ माह बाद ही बॉटल से दूध पिलाना शुरू कर देती हैं। जबकि मां के दूध के समकक्ष कोई अन्‍य दूध नहीं है। बॉटल से दूध पिलाना बच्‍चें के स्‍वास्‍थ्‍य के लिये हानिकारक है क्‍योंकि बॉटल व निप्‍पल की सफाई एवं स्‍टरलाइजेशन आम तौर पर संभव नहीं है जो कि बच्‍चों में डायरिया का मुख्‍य कारण हैं।

साथ ही उन्‍होंने कहा कि ज्‍यादातर माताएं दूध व  पानी का अनुपात सही नहीं कर पाती जिससे बच्‍चे के स्‍वास्‍थ्‍य पर बुरा प्रभाव पड़ता है व दूषित पानी का इस्‍तेमाल भी बीमारी का एक मुख्‍य कारण हैं। जिससे बार-बार डायरिया, निमोनिया पीलिया, गैस्‍ट्राईटि की समस्‍या होती है। इसके अलावा बच्‍चों में एलर्जी, की बीमारी जिसमें स्‍कीन, श्‍वांस, फेफड़े की एलर्जी ज्‍यादा देखने को मिलते हैं।

अंत में उन्‍होंने कहा कि बच्‍चों को इन संक्रमण से बचाने का एक ही उपाय है कि जन्‍म के तुरन्‍त बाद से 6 माह तक बच्‍चे को स्‍तनपान कराया जाय व स्‍वच्‍छ पानी का इस्‍तेमाल किया जाये। किन्‍हीं कारणोंवश बॉटल से दूध पिलाने की अवस्‍था में तीन-चार बॉटल का इस्‍तेमाल किया जाये व बॉटल को कम से कम 15 मिनट तक स्‍टरेलाइज किया जाए।


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