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शोधार्थियों में नैतिक बोध व जिम्मेदारी का होना है अति आवश्यक : डॉ. दयाशंकर मिश्र, राज्‍यमंत्री



 22/May/23

लाभकारी होने के साथ नवीनतम भी होना चाहिए शोध : प्रोफेसर रजनीश कुंवर

श्री हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय वाराणसी में रविवार को आंतरिक गुणवत्ता एवं अनुसंधान और विकास प्रकोष्ठ द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया l इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि आयुष, खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) उत्तर प्रदेश सरकार दयाशंकर मिश्र 'दयालु' ने कहा कि हमारे अनेक आचार्यों एवं अन्वेषकों ने कठिन परिश्रम करके ज्ञान अर्जित किया और यही ज्ञान सभ्यता, समाज को उन्नत करती है। उन्होंने कहा कि आज का समाज ज्ञान का समाज है और जिसके पास ज्ञान तंत्र है वह सबसे धनी है। हमें वैश्विक स्पर्धा में आने की आवश्यकता है। नैतिकता को जीवित रखना आवश्यक है। जब तक नैतिक बोध विकसित नहीं होगा तब तक उत्तम कार्य संभव नहीं होगा। विश्व के कल्याण हेतु शोध में  नवाचार, शुद्धता एवं परिसंगतता, तर्कसंगतता होनी चाहिए। शोधार्थी में नैतिक बोध एवं नैतिक जिम्मेदारी का होना आवश्यक है l आज भारत सरकार भारतीय मूल्यों पर आधारित शोध पर जोर दे रही है और युवाओं द्वारा सरकार के इस प्रयास पर इस प्रकार विश्वास बढ़ रहा है इससे निश्चित ही इस दिशा में आने वाले समय में यह मील का पत्थर साबित होगा। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य प्रोफेसर रजनीश कुंवर ने कहा कि अनुसंधान समाज के लिए लाभकारी होने के साथ-साथ नवीनतम भी होना चाहिए साथ ही इसमें दोहराव भी नहीं होना चाहिए। त्रिस्तरीय जांच से गुजर कर जो  शिखर तक पहुंचते हैं, असल मायने में वे शोधकर्ता होते हैं। आधारभूत संरचना भी काफी मायने रखता है। शिक्षकों के प्रखर नहीं होने से शोधकर्ता को जो फायदा होना चाहिए वह नहीं हो पाता है। उन्होंने आगे बताया कि सीखने के साथ सतत अध्ययन की आवश्यकता है। अनुसंधानकर्ता को किन किन बातों की जानकारी होनी चाहिए, इस विषय में उन्होंने विस्तृत जानकारी दी। संगोष्ठी के प्रथम सत्र के मुख्य वक्ता प्रोफेसर अभय कुमार सिंह भौतिकी विज्ञान संस्थान, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने अनुसंधान पद्धति की कुछ बुनियादी अवधारणाओं के बारे में बात की, जिन्हें गुणवत्तापूर्ण शोध करने के संदर्भ में जाना अति आवश्यक है l उन्होंने गुणात्मक एवं मात्रात्मक शोध प्रतिमान, साहित्य समीक्षा के प्रकार एवं विभिन्न शोध प्रकारों के बारे में भी चर्चा की। उन्होंने रिसर्च मेथाडोलॉजी तथा रिसर्च मेथड के बीच अंतर को स्पष्ट किया।

संगोष्ठी के द्वितीय सत्र की मुख्य वक्ता प्रोफेसर ईडा तिवारी रसायन विज्ञान एवं फॉरेंसिक साइंस विभाग, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने शोध के विचार को बहुत सम्मान दिया और समझाया कि कैसे एक अच्छा शोध समाज के विकास में मदद करता है। उन्होंने शोध के गुणों एवं महत्व पर भी प्रकाश डाला और बताया कि कैसे अनुसंधान यह समाज को प्रभावित करता है। उन्होंने बताया कि इस तरह की कुछ विशेषताओं में वैज्ञानिक रूप से अनुसंधान, निष्पक्षता, दस्तावेज को संपादित करने की क्षमता और उन शोध स्रोतों की उचित स्वीकृति सिद्ध करना शामिल है, जिनसे अनुसंधान करने के लिए प्रासंगिक विचार लिए गए हैं।

सेमिनार संयोजक प्रोफेसर अनिल कुमार ने विषय स्थापना किया और आगे बताया कि भविष्य में शोधार्थी व नवीन शिक्षकों इस संगोष्ठी से शोध कार्य करने में मदद मिलेगी। उन्होंने आगे बताया कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में रिसर्च मेथाडोलॉजी विषय पर चतुर्थ सेमेस्टर के 50 विद्यार्थी व 25 शोधार्थियों द्वारा पोस्टर एवं मौखिक प्रस्तुति के द्वारा  शोध पत्र प्रस्तुत किया गया। इस सेमिनार में अतिथियों द्वारा स्मारिका का भी विमोचन किया गया। संगोष्ठी का संचालन आयोजन सचिव प्रोफेसर वीके निर्मल एवं स्वागत प्रोफेसर पंकज सिंह द्वारा तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर संजय श्रीवास्तव द्वारा किया गया। इस अवसर पर मुख्य नियंता प्रोफेसर अशोक कुमार सिंह, प्रोफेसर विश्वनाथ वर्मा, प्रोफेसर संगीता श्रीवास्तव, प्रोफेसर अनीता सिंह, प्रोफेसर जगदीश सिंह, प्रोफेसर अशोक कुमार सिंह,डॉ. राम आशीष यादव, डॉक्टर संगीता शुक्ला, डॉक्टर सत्येंद्र सिंह, डॉक्टर राकेश मणि मिश्र, डॉ राजेंद्र प्रसाद , डॉ दुर्गेश सिंह यादव, डॉक्टर देवेंद्र प्रताप सिंह, डॉक्टर सीमा सिंह, डॉ. शिवानंद यादव सहित महाविद्यालय के सभी शिक्षक एवं कर्मचारी एवं  विद्यार्थी उपस्थित रहे l


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