हिंदी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संगठन शोध समवाय के तत्वाधान में लेखक के घर चलो कार्यक्रम के तहत हम समस्त शोध छात्र और शिक्षक गण छायावाद के प्रसिद्ध कवि, उपन्यासकार स्व. जयशंकर प्रसाद के घर पहुंचे। वहां जयशंकर प्रसाद की प्रपौत्री कविता और प्रपौत्र विजयशंकर ने उपस्थित सभी शिक्षकों का स्वागत किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि दर्शन के बिना आप जयशंकर प्रसाद को नहीं समझ सकते हैं, साथ ही प्रसाद का स्मारक बनाकर स्थान प्रदान करने की बात कही। इस कार्यक्रम की सूत्रधार प्रो. आभा गुप्ता ठाकुर ने कहा कि प्रसाद का साहित्य निश्चित तौर पर उदार भावभूमि पर ले जाने वाला मानवीय साहित्य है। हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. सदानंद साही ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि पिछले तीन दशकों से साहित्य और समाज का रिश्ता विछिन्न हुआ है, लेखक अपने समाज का आकाशदीप होता है। लेखक के घर चलो केवल पर्यटन नही है बल्कि अंतःकरण के आयतन का विस्तार है। इसी के तहत हिंदी विभाग में 23, 24 और 25 जून को कामायनी पर एक संगोष्ठी आयोजित की जाएगी। मामला मानवता के विजयनी होने का है किसी एक व्यक्ति के विजय होने का नही। आज की शाम मानवता के लिए साहित्य की ओर लौटने का आरंभ है। हिंदी विभाग के प्रो रहें अवधेश प्रधान ने प्रसाद की आत्मकथात्मक कविता "मधुप गुन गुनाकर कह जाता कौन कहानी यह अपनी" का पाठ किया। उन्होंने बताया कि प्रसाद और प्रेमचंद प्रतिदिन बेनिया बाग पर टहलते थें। हंस के आत्मकथात्मक विशेषांक में यह कविता छपी थी ।
किसी समाज के सौंदर्य बोध का खत्म हो जाना उस समाज के पतन की पराकाष्ठा को व्यक्त करता है। सांगीतिक शाम में कला दीर्घा के तहत सुशांत कुमार शर्मा, रूक्मणी राय, शीश कुमारी, विमलेश सरोज और पवन कुमार ने "अरुण यह मधुमय देश हमारा" के साथ प्रसाद के कई अन्य गीतों का प्रस्तुतिकरण किया। यह गीत प्रसाद के नाटक चंद्रगुप्त में वर्णित है। इस तरह यह कार्यक्रम एक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी रहा।
कार्यक्रम के अंत में धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग की सहायक आचार्या डॉ प्रियंका सोनकर ने किया। इस कार्यक्रम में लगभग डेढ़ सौ छात्र मौजूद थे। बतौर शिक्षक प्रो चंद्रकला त्रिपाठी, अशीष त्रिपाठी, वशिष्ठ नारायण, किंग्सन पटेल, अशोक कुमार, ज्योति, प्रभात मिश्र आदि उपस्थित रहें।