डिजिटल मीडिया जैसे (मोबाइल लैपटॉप,टीवी,कंप्यूटर) यह सभी उपकरण डिजिटल मीडिया के अंतर्गत ही आते है
जानिए डिजिटल मीडिया काम कैसे करता है
डिजिटल मीडिया जैसे मोबाइल या सेलफोन हुआ उसमें एक एंटीना होता है उसमें साउंड वेब इलेक्ट्रिकल वेब से कन्वर्ट होंकर एक एंटीना से दूसरे एंटीना में इलेक्ट्रोंमेग्नैटिक रेडिया Frequency में कन्वर्ट होकर दूसरे एंटीना पर जाकर वहां से ट्रांसमिट होता है और ऐसे ही रिसीव होता है इलेक्ट्रिकल वेब में रिसीव होकर फिर एंटीना पर जाकर वहां से ट्रांसमिट होता है और ऐसे ही रिसीव होता है इलेक्ट्रिकल वेब में रिसीव होकर फिर वह साउंड वेब में कन्वर्ट हो जाता है जिससे हम लोगों को आवाज सुनाई देता है। यह जो मोबाइल या सेल फोन होता है उसमें से Non-ionising radiation निकलता है उसको Electromagnetic radiation भी बोलते है। Sep 2021 रिसर्च के दौरान देखा गया जिसमें एम्स के डॉक्टर मंचरी त्रिपाठी और डॉक्टर अजय पोद्दार ने इस पर रिसर्च किया कि मोबाइल रेडिएशन से Sleep Cycle पर क्या दुष्प्रभाव पड़ रहा है, उन्होंने Sleep Cycle पर स्टडी किया जिनको 5 मिनट का मोबाइल फोन का एक्स्पोजर किया गया उसके बाद उनके Sleep Cycle को EEG करके स्टडी किया (Sleep Cycle में 4 Wed होता है, अल्फा, बीटा, थीटा, डेल्टा ) तो उसमें देखा गया कि अल्फा और थीटा वेब डिस्टर्ब हो जाते है यानी जो रिलैक्सेशन का वेब होता है वह डिस्टर्ब हो जाता है, तो जरुरत से ज्यादा डिजिटल मीडिया का यूज करने से बॉडी में Unrest पैदा करता है, इसका हमारी बॉडी पर दुष्प्रभाव पड़ता है, जैसे सिरदर्द, याददाश्त कम होना, चिड़चिड़ापन, गर्दन में दर्द आदि।
बच्चों में होने वाले डिजिटल मीडिया का दुष्प्रभाव
बच्चों का एग्रेसिव स्वाभाव होना
दरसल डिजिटल मीडिया पर आज कल बहुत ज्यादा हिंसक कंटेंट देखने से जैसे मारधाड़, एक मजबूत आदमी कमजोर को मार रहा है, तो बच्चे को वह देखने से उनको नॉर्मल लगने लगता है कि यह सब नॉर्मल चींजे है जिससे उन बच्चों में एक अग्रेशन का स्वभाव बन जाता है।
लर्निग डिसेविलिटी का हो जाना
जो बच्चे बहुत ज्यादा डिजिटल मीडिया पर टाइम व्यतीत करते है तो उनका सारा ध्यान उसी डिजिटल मीडिया पर चला जाता है और डिजिटल मीडिया को ज्यादा देखने से हमारे ब्रेन में काफी प्रभाव पड़ता है, जो डोपामिन केमिकल्स होते हैं वह रिलीज हो जाते हैं तो बच्चा मेंटली थोड़ा सा थक जाता है, तो वह अपने एकेडमी परफॉर्मेस पर फोकस नहीं कर पता है। यह एक तरह से फायदेमंद भी है जैसे अंडर सुपरवाइज बच्चे 1-2 यूज करते हैं, जैसे माता-पिता या टींचर के देख रेख में बच्चे को काफी चीजें सीखने को भी मिलती है, अगर अच्छे कंटेंट देखनेसे बच्चों को मेंटल हेल्थ पर गलत प्रभाव पड़ता है, और एकेडमिक परफारमेंस भी खराब होने लगते हैं, बार-बार डिजिटल मीडिया देखने से बच्चों का फोक्स उसी तरफ चला जाता है फिर अपने सब्जेक्ट पर फोकस करने में बहुत मुश्किल होता है।
बच्चों का सेक्सुअल थिंकिंग बिगड़ना
ज्यादातर डिजिटल मीडिया पर सेक्सुअल एक्टिविटीज को बहुत ही नॉर्मल तरीके से दिखाया जाता है, बार-बार डिजिटल मीडिया पर आता रहा है बच्चा बार-बार उसको देखते हैं, बच्चे को लगता है कि यह सब नॉर्मल बिहेवियर है तो उनका मानसिक बिहेवियर बिगड़ता जाता है इस लिए बच्चे अपने गोल पर या एकेडमिक पार्ट पर फोकस नहीं कर पाते हैं।
डिप्रेशन की संभावनाएं बढ़ जाती है
रिसर्च में देखा गया है कि जो बच्चे डिजिटल मीडिया का उपयोग ज्यादा करते हैं तो उसमें डिप्रेशन के काफी Cases सामने आ रहे हैं, डिजिटल मीडिया पर जो Videos या Contents होता है उसको पोस्ट किया जाता है, तो बच्चा जब देखता है तो उसको लगता है कि हमसे बहुत अच्छा परफॉर्म करता है, हम बहुत पीछे हैं इन लोगों से तो वह बच्चा अपने आप को कंपेयर करने लगता है तो उससे अपने आप को बहुत पीछे पाता है, अकेले रहने लगता हैं, सोचता है हमें पार्टीं में कोई नहीं बुलाता है और नींद कम आता है, तो उसका self confidence Loose होने लगता है।
बच्चों में एंग्जायटी की वृद्धि होना
दरअसल कई बार ऐसा होता है कि कुंछ बच्चे सोशल मीडिया या डिजिटल मीडिया पर कुछ Videos पोस्ट डालते है तो उसमें लाइक या डिसलाइक प्रॉपर नहीं आता है तो उसमें एक टेंशन उनको बनता है की हमें लाइक नहीं मिल रहा है और दूसरे लोगों को ज्यादा लाइक हो रहा है, तो उनका ध्यान उधर चला जाता है, डिजिटल मीडिया एक तरह से उनके में एंग्जायटी की वृद्धि करता है।
स्लीप साइकिल डिस्टर्ब होना
डिजीटल मीडिया यूज करते समय उन उपकरणों में से बहुत तेजी रोशनी निकलता है, जो हमारे आंख पर पड़ता है तो हमारे ब्रेन को लगता है कि अभी दिन है, जो हमारे आंख पर पड़ता है तो हमारे ब्रेन को लगता है कि अभी दिन है, जो शरीर के मेलाटोनिन (स्लीपिंग) हार्मोन से वह देरी से निकलता है और कम अमाउंट में निकलता है तो उसको साउंड स्लीप नहीं मिल पाता है जो कि बच्चोंके मेंटल हेल्थ के लिए स्लीप बहुत महत्वपूर्ण है स्लीप डिस्टर्ब होने से बच्चों को धकान होने लगता है देर से सोने के बाद वह सुबह देर से उठेंगे अच्छा परफॉर्म नहीं पाते हैं।
मॉं वाप से दूरी
बच्चे ज्यादा मीडिया/मोबाइल यूज करने से मोबाइल के प्रति बच्चे को ज्यादा लगाव हो जाते हैं मोबाइल की बातें मानते हैं और बच्चे मां बाप की बातें नहीं मानते है बचपन में माता-पिता को बच्चे को समय देना होता है जिससे बच्चे और माता-पिता के बिच में अच्छा सम्बंन्ध होता है।
डिजिटल मीडिया के दुष्प्रभाव से कैसे बचा जा सकता है
मोबाइल, टीवी या लैपटॉप बेडरूम न यूज करें
मोबाइल, टीवी या लैपटॉप कोशिश करें बेडरूम में ना हो दूसरे रूम में हो जिससे कम यूज होगा।
टाइम लिमिट बनाएं
एक टाइम लिमिट बनाएं कि एक से दो घंटे से ज्यादा प्रतिदिन डिजिटल मीडिया का उपयोग नहीं करना है।
शरीर से 2 मीटर दूरी पर रखे
डिजिटल मीडिया के उपकरण को अपने शरीर से कुछ दूरी पर रखे मिनिमम 2 मीटर की दूरी रहे एकदम पास में ना रहे।
रोल मॉडल बने
घर में जैसे माता-पिता है एडल्ट लोग हैं यह लोग भी डिजिटल मीडिया का ज्यादा प्रयोग ना करें। बच्चों के सामने बड़े डिजिटल मीडिया का प्रयोग करते हैं तो वह भी उसको फॉलो करते हैं एक समय बनाएं कि इस टाइम हमें मोबाइल, टी.बी, लैपटॉप से दूरी बनाना हैं, और अपने बच्चों को भी आदत डालें कि खाना खाते समय और कुछ टाइम रहे कि उन्हें डिजिटल मीडिया यूज नहीं करना है।
बच्चों से डिस्कस करें
अपने बच्चों से डिस्कस करें कि आपका रोल मॉडल कौन है तुम किस को फॉलो करते हो किसी अच्छे आदमी को फॉलो कर रहा है या किसी गलत आदमी को फॉलो कर रहा है यह पूछ क्योंकि बच्चों का ब्रेन इमैच्योर होता है तो वह डिसाइड नहीं कर पाते हैं कि हमारे लिए क्या सही है और क्या गलत हैं।
मोबाइल पर बात करने का एक टाइम लिमिट बनाएं
मोबाइल पर बात करने का एक टाइम लिमिट बनाएं कि इतने मिनट से ज्यादा हमको मोबाइल पर बात नहीं करता है, बात करना है तो कुछ देरी तक बात करके 2 घंटे का रेस्ट दें फिर दोबार यूज करें तो इन सारी चीजों ध्यांन रखेंगे तो बच्चों को डिजिटल मीडिया के दुष्प्रभाव से बचाया भी जा सकता है, और यूज करें तो उसको सुपरवाइजर यूज करें माता-पिता या टीचर के निगरानी में यूज कराएं, तब बच्चों को डिजिटल मीडिया यूज करने दे।
बच्चों के सेहत पर प्रभाव
सोशल मीडिया ज्यादा यूज करने से शारीरिक गतिविधियॉं कम हो जाती है उससे मोटापा का खतरा बढ़ जाता है और डिजिटल मिडिया वन वे कम्युनिकेशन है बच्चोंसे प्रतिक्रिया नहीं लेता है तो बच्चे बोलने में पीछे चले जाते हैं देर से बोलते हैं क्रिएटिव माइंड विकास कम हो जाता हैं।
बच्चों के मेंटल हेल्थ पर पड़ता है असर
बच्चों का ब्रेन विकास करता है, तो बच्चे 2-3 टाइम से ज्यादा रेडिएशन को ऑब्जर्ब करने की क्षमता होती हैं। एडल्ट की तुलना में इसलिए बच्चों पर डिजिटल मीडिया का ज्यादा प्रभाव पड़ता है स्लीप साइकिल भी डिस्टर्ब हो जाता है जिससे बच्चों को कई मानसिक बीमारी होने का खतरा रहता है, जैसे व्यावहारिक प्रॉब्लम, ज्यादा गुस्सा आना होना आदि।
मिनहाज चाइल्ड नसिंग केयर
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