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असफलता सफलता की प्रथम सीढ़ी है : डॉ. मनोज कुमार तिवारी, वरिष्ठ मनोवैज्ञानिक व शिक्षाविद्



 25/Apr/23

परीक्षा कोई भी हो उसके परिणाम आते ही सफल विद्यार्थियों में खुशी की लहर तो असफल विद्यार्थियों में मायूसी छा जाती है। परीक्षा का परिणाम चाहे जो भी हो छात्रों को धैर्य का परिचय देना चाहिए। छात्र एवं अभिभावकों को यह समझ लेना चाहिए कि यह परीक्षा का परिणाम है न कि जीवन का, इसलिए जिनका परिणाम अपेक्षा से कम आया है उन्हें सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए। उन्हें उन कमियों को ढूंढने का प्रयास करना चाहिए जिसके कारण उनका परीक्षा परिणाम अपेक्षा से के अनुरूप नहीं रहा। बोर्ड परीक्षा के रिजल्ट के बाद जिन विद्यार्थियों के अंक उनकी अपेक्षा से काम आ जाता है या जो परीक्षा उत्तीर्ण करने में सफल नहीं होते उनमें से अनेक विद्यार्थी मायूस होकर आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम उठाते हैं उन्हें समझ लेना चाहिए कि सफलता असफलता की राह से होकर गुजरती है। जीवन अमूल्य है छात्र अपने सकारात्मक सोच, परिश्रम व लगन से परीक्षा के परिणाम को आगे बदल सकते हैं। नेशनल क्राईम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की एक रिपोर्ट के अनुसार विगत 5 वर्षों में परीक्षा में असफलता के कारण आत्महत्या के दर में वृद्धि देखी जा रही है क्योंकि समाज में एक मिथक है कि बोर्ड में उच्च प्राप्तांक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी मेधावी होते हैं जबकि अनेक ऐसे सफल लोग है जो विद्यालय में औसत अंक प्राप्त करते थें।

छात्रों के लिए विशेष संदेश :

कम अंक प्राप्त करने वाले या अनुतीर्ण छात्र निराश न हो अगले प्रयास में अच्छे परिणाम के लिए संकल्पित होकर और अधिक परिश्रम के लिए तैयारी करें। अनुतीर्ण विद्यार्थी पिछले वर्ष की कमियों को खोज कर उन्हें सुधारने का प्रयास करें। सकारात्मक सोच के साथ पूरे मनोयोग से समयबध्द योजना व रणनीति से अभी से तैयारी शुरू करें। अपनी समस्याएं माता-पिता एवं शिक्षक से साझा करें।  कम अंक मिलने से निराश न हो आपने जो मेहनत किया है उससे प्राप्त ज्ञान भविष्य में आप के काम आएगा।

अभिभावकों के लिए संदेश :

 कम अंक आने या अनुत्तीर्ण होने पर बच्चों से अनुचित ढंग से नाराजगी जाहिर न करें, उन्हें न डांटे, न मारे पीटे। इससे बच्चों का मनोबल गिरता है जिससे उनमें आत्महत्या के विचार बढ़ सकता है। बच्चों के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार रखें। अनपेक्षित परिणाम के कारणों को जानने का प्रयास करें तथा आगे उन्हें कैसे दूर किया जा सकता है इस पर चर्चा करें। छात्र को अगले प्रयास में और अधिक मेहनत के लिए प्रोत्साहित करें।  बच्चे को समझाएं कि यह परीक्षा का परिणाम है उनके जीवन का नहीं, वे अपने मेहनत एवं लगन से आगे से बदल सकते हैं। प्रत्येक बच्चा अव्दितीय होता है अनावश्यक अपने बच्चे की तुलना दूसरों से न करें।  माता-पिता बच्चों के साथ अधिक समय व्यतीत करें। यदि बच्चे के व्यवहार में एकदम से परिवर्तन दिखाई पड़े जैसे:- खाना कम खाना, देर रात तक जगना, अपने को अकेला कर लेना, अचानक से एकदम शांत रहने लगे तो प्रशिक्षित वह अनुभवी मनोवैज्ञानिक से परामर्श लेना आवश्यक होता है।

परीक्षा में प्राप्त प्राप्तांक को छात्रों के बौद्धिक क्षमता व जीवन की सफलता से न जोड़ें। परीक्षा में प्राप्त प्राप्तांक केवल छात्रों के विषय ज्ञान ज्ञान को प्रदर्शित करता है न कि उनकी बुद्धि क्षमता। परीक्षा में कम अंक प्राप्त करने वाले एवं अनुतीर्ण छात्रों के साथ सौहार्दपूर्ण व्यवहार रखते हुए आगे उन्हें और अच्छा करने के लिए उत्साहित करें।


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