काशी के ‘‘क्षय’’ रोगियों के चिकित्सार्थ संकल्प द्वारा पहला निःशुल्क दवा वितरण एवं चिकित्सा शिविर ‘क्षय मुक्त काशी-निरोग काशी’ श्री अग्रसेन कन्या इण्टर कालेज में आयोजित हुआ। शिविर में मरीजों को निःशुल्क चिकित्सकीय सुविधा, पैथलॉजी, निःशुल्क दवाओं के अतिरिक्त मास्क, बैग, आवश्यकता के अनुसार खाद्यान्न आदि का वितरण किया गया।
संस्था के अनिल कुमार जैन ने बताया कि सन् 1997 में नर सेवा- नारायण सेवा के निहितार्थ एक उद्देश्यपूर्ण यात्रा आरंभ हुई। लक्ष्य था, काशी को क्षयरोग से मुक्त कराना। अतः एक अभियान की शुरूआत ‘क्षय मुक्त काशी-निरोग काशी’ के रूप में हुयी। सन् 1993 में मुझे चिकित्सकीय लापरवाही से टीबी का रोगी करार कर दिया गया था तब लगा कि जिन्दगी सिमट चुकी है और मैं एकाकी में डूब गया। गम्भीर मर्ज के शिकार होने पर जो मानसिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है उसे उस दौरान मैने सक्रियता से महसूस किया। मगर शीघ्र ही पता चला कि मैं टीबी से ग्रसित नहीं हूँ। मगर इस बीच की जिस मानसिक प्रताड़ना के लम्बे दौर से मैं गुजर चुका था उसने मेरी जिन्दगी बदल दी थी। इसे मानसिक कायाकल्प कहें तो और भी बेहतर होगा। मैंने अपनी पीड़ा को करोड़ों भारतीयों की उस पीड़ा से जोड़कर देखा जो इस रोग से ग्रसित होकर इससे भी गहरी पीड़ा के शिकार होते हैं। इस प्रथम शिविर में सौ क्षय रोगियों की सम्पूर्ण चिकित्सा हुई। इस शिविर की बड़ी उपलब्धि यही थी कि सभी सौ रोगियों ने चिकित्सक की सलाह का पूर्णरूप से पालन करते हुए सही तरीके से दवाओं का कोर्स पूरा किया और पूर्ण स्वस्थ हुए। शिविर की सफलता को देखते हुए अगले वर्ष हमने 200 क्षय रोगियो के चिकित्सा का लक्ष्य रखा। और सफलता पूर्वक रोगियों को क्षय रोग से मुक्त किया। वर्ष 1999 में सामाजिक सरोकारों की पुर्ती के लिए मेरे साथ नगर के कुछ जोशीले नौजवानों ने सामाजिक संस्था ‘संकल्प’ की नींव रखी और क्षय मुक्त काशी - निरोग काशी अभियान/शिविर का संचालन ‘‘संकल्प’’ संस्था द्वारा किया जाने लगा। माह के अन्तिम रविवार को लगने वाले इस शिविर में क्षय रोगियों की भीड़ को देख कर मन अत्यंत द्रवित हो जाता था समझ नही आता था कि इन में किन्हें चुनें किन्हें छोड़ें। विदित हो कि क्षय रोगियों का इलाज 9 से 12 माह तक निरंतर चलता है और इसके इलाज में प्रयोग होने वाली दवाईयाँ भी मंहगी होती हैं। क्षय रोगी को बिना चिकित्सक के सलाह के दवाई बन्द नही करनी चाहिये। बीच में इलाज बन्द कर देने से रोग और घातक हो जाता है फिर सामान्य क्षय रोग की दवा उन पर असर नहीं करती हैं। संस्था ने अपने प्रयासों से शिविर में प्रत्येक वर्ष 500 क्षय रोगियों को रोग मुक्त करने का लक्ष्य रखा और बहुतेरे की संख्या में क्षय रोगियों को रोग मुक्त किया। टी.बी. मानव के किसी भी अंग में हो सकता है। मगर आंकड़ों के अनुसार टी.बी. के मरीजों में 85 प्रतिशत मरीज फेफड़े की टी.बी. से ग्रसित पाये जाते हैं। सामाजिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि फेफड़े की टी.बी. से ग्रसित ऐसे मरीज दूसरों के लिए हर पल खतरनाक होते हैं। हड्डी, गुर्दा, पेट या दिमाग की टी.बी. से ग्रसित मरीजों की तुलना में फेफड़े की टी.बी. वाला मरीज स्वस्थ लोगों को तेजी से प्रभावित करता है। यहाँ गौर करने वाली विशेष बात यह है कि अगर टी.बी. के मरीजों का इलाज न करें तो वर्ष के भीतर वह अकेला मरीज २० नये टी.बी. के रोगी पैदा करने में सक्षम है। टी.बी. रोग एक कीटाणु से होता है, जिसे माइक्रो बैक्टीरियम ट्यूबर क्लोसिस कहते हैं। परिवार के एक सदस्य के रोग ग्रस्त होने पर अन्य सदस्यों को भी क्षय रोग होने की सम्भावना बहुत हो जाती है इस के बचाव हेतु शिविर में मरीजों व उनके परिचारकों की काउन्सलिंग की व्यवस्था की गयी उन्हे क्षय रोग से बचाव व उसके लक्षणों के बारे में बताया गया। उन्हे जागरूक किया गया कि क्षय रोगी परिवार में किस तरह रहे कि अन्य सदस्यों को रोग होने की सम्भावना कम हो जाये। मैने तो शिविर में एक ही परिवार के तीन पीढ़ीयो का इलाज एक साथ चलते हुए देखा है। क्षय रोग शरीर के किसी भी अंग में हो सकता है और किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है इस लिए हमारे क्षय मुक्त काशी - निरोग काशी अभियान/शविर में फेफड़े, बच्चों के, हड्डी व जनरल फिजीशियन चिकित्सकों ने क्षय रोगियों की चिकित्सा की। हम नतमस्तक हैं अपने इन निष्काम चिकित्सकों के जिन्होंने 1997 से निरन्तर क्षय मुक्त काशी-निरोग काशी अभियान/शिविर में अपना अमूल्य समय दिया और मानवता की सेवा में अपना योगदान दिया।
शिविर के चिकित्सकों में डॉ. अमित जौहरी (फेफड़ा रोग विशेषज्ञ), डॉ. सतीश चन्द्र अग्रवाल (बाल रोग विशेषज्ञ), डॉ. राजीव गुप्ता (जनरल विशेषज्ञ), डॉ. मयंक अग्रवाल (फेफड़ा रोग विशेषज्ञ), डॉ. कौशल अग्रवाल (अस्थि रोग विशेषज्ञ) व डॉ. अनुराग चन्द्र अग्रवाल (जनरल विशेषज्ञ) हम का विशेष सहयोग रहा। साथ ही रेडियोलॉजिस्ट/पैथलाजिस्ट चिकित्सकों में डॉ. निर्मल जैन, डॉ. समीर अग्रवाल, डॉ. विनय पाठक, डॉ. एस.के. जायसवाल व करौली डायग्नोस्टिक का जिन्होंने क्षय रोगियों की एक्स-रे, अल्ट्रा साउण्ड व पैथलॉजी निःशुल्क या अत्यन्त निम्न शुल्क पर किया। ‘क्षय मुक्त काशी-निरोग काशी’ अभियान में नये रोगियों के पंजीकरण को अल्प विराम कोरोना के कालखण्ड में लगा किन्तु जिन क्षय रोगियो की दवाईयाँ चल रही थी उन्हें हमने दवाईयां पहुंचाई। एक नाम जिनको स्मरण किए बिना ‘क्षय मुक्त काशी-निरोग काशी’ अभियान की सफलता की कल्पना भी नही की जा सकती है शहर के ख्यातिलब्ध चिकित्सक व मेरे छोटे भाई स्व० डॉ. अश्विनी जैन को हम सब श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। क्षय मुक्त काशी-निरोग काशी अभियान के सफल संचालन में उनका महती योगदान रहता था। उनके असमय निधन के बाद शिविर की बागडोर उनके सुपुत्र डॉ. हर्षित जैन व पुत्रवधु डॉ. आँचल जैन ने सम्भाली है। आज क्षय मुक्त काशी-निरोग काशी अभियान डॉ. अश्विनी जैन क्लीनिक, मलदहिया, वाराणसी से संचालित है। क्षय रोग की विभीषिका को भारत के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी ने भी बहुत ही शिद्दत से महसूस किया है इसीलिए उन्होंने भारत से क्षय रोग को खत्म करने की समय रेखा खींच दी है वर्ष 2025 तक भारत से क्षय रोग को समाप्त करना है। आज हमारा क्षय मुक्त काशी-निरोग काशी अभियान क्षय मुक्त भारत - निरोग भारत में बदल गया है एक मायने में ढ़ाई दशक से संकल्प द्वारा चलाया जा रहा अभियान आज पूरे भारत में चल रहा है। माननीय प्रधानमंत्री जी के इस अभियान के साथ संकल्प परिवार एक नये जोश के साथ कदमताल मिलाने के लिए कृतसंकल्पित है।