चुनाव समाप्त हो चुके है नई सरकार शपथ ले अपना लगातार दूसरा कार्यकाल प्रारंभ करेगी । पर भाजपा की गठबंधन पार्टीयों में दो पार्टी के प्रमुख अपने फैसले को ले कर आज भी समझ नहीं पा रहे होगे कि यह क्या हो गया ? कम से कम डूबते समय तिनके का सहारा तो मिलता...भले ही डूबना पड़ता गम तो न होता ।
आंध्र में चंद्र बाबू नायडू आज भी यह मानने को तैयार नहीं होगे कि सदा सत्ता के केंद्र में रहने वाले को आज सत्ता से इतनी दूर हो गए है कि वो खुद हतप्रभ होंगे कि ये क्या हो गया ।
सबसे ज्यादा सियासती नुकसान तो सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के ओम प्रकाश राजभर को हुआ है जो भाजपा के साथ पहली बार राजनीतिक गठबंधन कर चार विधानसभा सीट पर जीत हासिल कर सत्ता में प्रवेश किया था और अत्याधिक महत्वाकांक्षा नें उन्हें आज कहीं का नहीं छोड़ा । आज जब वो एकांत में चिंतन करते होंगे तो चिंतन चिंता में तब्दील हो जाता होगा ।
मैनें पूर्व के लेख में कहा था कि राजनीति की अपनी दिशा और चाल होती है जिसे समझना अति आवश्यक है जो नहीं समझता वो उसी मोड़ पर खड़ा मिलता है जहां से वो चलना शुरू करता है । ओम प्रकाश राजभर वहीं खड़े है किंकर्तव्यविमूढ. हो कर । लोकसभा में पहुंचने के उनके मंसूबे जहॉं ध्वस्त हो चुके हैं तो राज्य की राजनीति में जाति विशेष के ठप्पे से समाप्ति की ओर उनका कदम बढ़ चुका है । जिस तरह से उन्होंने भाजपा पार्टी को गाली दी वह उनकी राजनीतिक बड़ी भूल मानी जाएगी । इतिहास ऐसे लोगों को माफ नहीं करता और न ही किसी खास जाति को ले कर राजनीतिक सफर परवान चढ़ता है । असल में ओम प्रकाश नें सोचा कि उनके जाति के सभी लोगों के साथ अति पिछड़े भी उनके द्वारा उठाए गए आरक्षण के मुद्दे पर उनके साथ हो जाएंगे और भाजपा उनकी शर्त को मान जाएगी । पर ओप प्रकाश नें शिव सेना द्वारा भी इसी तरह के विरोध विधानसभा चुनाव में करने पर बीजेपी ने महाराष्ट्र में अपने दम पर लड़ी और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाया था ।
हांलाकि सुभासपा अपनी इस निश्चित हार को जानते हुए भी दांव खेला पर हार गई और अब नेपत्थ्य में जाने की तैयारी कर चुके है ।