भारत की राजनीति का यह पुन: एक दोहराव देखने को मिल रहा है कि देश के हर सीट से मोदी से ही लड़ रही हैं सभी राजनीतिक पार्टियां । यह बिरले ही देखने को मिलता है जब एक व्यक्ति पूरी पार्टी का प्रतिनिधि बन कर उभरे । जवाहर इंदिरा के बाद यह मोदी के समय देखने को मिल रहा है । किसी भी राज्य में, किसी भी समुदाय में, धर्म के केन्द्र में मोदी है । समूह निपटने के लिए एकजुट है पर मुद्दा विहीन पार्टियों के रूप में । समय फिर एक नए जागरूकता कि है जो 2014 से प्रारंभ हुआ था, उसे और बढ़ना चाहिए याद रखिये मत प्रतिशत बढ़ने से सशक्त सरकार चुन कर पांच साल के लिए बनती है । मोदी ही पूरे देश में विपक्ष से लड़ रहे है । यह अगर लोकप्रियता के आधार पर देखे तो मोदी जी आज विश्व के आईकॉन है ।
उन्होंने राजनीति के स्थापित माप-दंडों के तहत विपक्ष को तहस-नहस कर दिया है । उनके कर्मयोगी कार्य लोगों के स्मरण में तरोताजा है । चुनाव में ताल ठोके जाते है । पर मोदी के कद-काठी का विपक्ष के पास कोई चेहरा नही है । वोटर निश्चिंत है मोदी निश्तिंत है पर विपक्ष एक हो कर भी कमजोर है अस्तित्व बचाने तक की राजनीति में सिमट चुका है । मोदी की अकेले की लड़ाई वाला यह चुनाव नए सवेरे के उदय होने के सदृष्य है ।
अब अगर मोदी जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी की बात करें तो पिछली बार 2014 में जब मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला किया तो सभी राजनीतिक दलों नें उनका यह कह कर खिल्ली उड़ाई की अगला चुनाव वो कहीं और से लड़ेगें और चुंकि ये बाहरी है तो चले जाएंगे पर हुआ ठीक इसके विपरीत । मोदी के वाराणसी से ही नामांकन करने की घोषणां नें सभी विपक्षियों को सदमें में डाल दिया है और हालत यह है कि विपक्षी दलों को उनके खिलाफ चुनाव लड़ने हेतु एक अदद प्रत्याशी ढूंढने पर भी नहीं मिल रहा । सबसे बुरा हाल तो कांग्रेस पार्टी का है । बात-बात पर मोदी को चुनौती देने वाले जीत का दम भरने वाले अजय राय खामोश है तो स्थानीय पुलिस नें उन्हें पीला कार्ड दे कर उनकी धार और कुंद कर दी है । डॉ. राजेश मिश्र वाराणसी से 2004 में भाजपा को हरा कर कांग्रेस का झंडा बुलंद किया था वो सलेमपुर देवरियां चले गए । एक और कांग्रेस के कद्दावर नेता दयाशंकर मिश्र 2014 में ही पार्टी छोड़ कर भाजपा में आ गए थे । कांग्रेस से मेयर का चुनाव लड़ कर शालिनी यादव नें ये उम्मीद जताई थी कि कांग्रेस अपना खोया जनाधार वाराणसी में प्राप्त कर सकती है पर सूत्रों की मानें तो वाराणसी में चंद लोगों के मठाधीशी के कारण ही यहां कांग्रेस में नया नेता नहीं आ पा रहे । जिसका सटीक उदाहरण शालिनी यादव का कांग्रेस छोड़ कर सपा का दामन थाम लेना है , जहां उन्हें इसके इनाम स्वरूप बनारस का टिकट सपा नें दे कर संजय गुप्ता के सपनें पर पानी फेर दिया जिन्हें पूरी उम्मीद थी कि सपा उन्हें टिकट देगी ।
बहरहाल बनारस की बात करें तो यह सीट एक बार कम्यूनिष्ट पार्टी तो एक बार जनता दल के अलावा कांग्रेस और भाजपा के ही बीच बटती रही है । रेखा शर्मा जो कांग्रेस से खफा हो कर रामनगर पालिका परिषद से निर्दल चुनाव लड़ी और जीतने के बाद मान-ममुहार से वापस पार्टी में आई । रेखा शर्मा नें तब कहा था कि वाराणसी में मौजूदा कांग्रेसी अपना-अपना हाऊस चला रहे है और यह बनारस में कांग्रेस पार्टी के लिए भस्मासुर साबित हो रहें है, उनकी यह बात आज सच साबित हो गया है । शालिनी यादव से उम्मीद जगी थी कि वाराणसी में कांग्रेस अपनी खोई साख प्राप्त कर सकती है पर भस्मासुरों की टीम नें शालिनी यादव की जगह किसी महिला सेलिब्रिटी को प्रवक्ता बना कर जो संदेश युवा कांग्रेसियों को देना चाहा उसको भांपते हुए शालिनी ने खुद किनारा करते हुए सपा का दामन थाम लिया ।