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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में विभाजन की विभीषिका विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन



 16/Aug/22

भारत विभाजन विभीषिका दिवस के अवसर पर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की अध्यक्षता कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने की। उन्होंने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि देश स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है। किन्तु आज एक पीढ़ी ऐसी भी है जिसने विभाजन की विभीषिका को झेला है। प्रत्येक सजग राष्ट्र अपने इतिहास से शिक्षा लेकर पुरानी भूलों को फिर से न दुहराने का प्रबंध करता है। किसी ने कल्पना की थी कि बीजापुर और दिल्ली के क्रूर और अत्यंत शक्तिशाली इस्लामिक सत्ताओं को चुनौती देते हुए शिवाजी महाराज एक हिन्दू-मराठा साम्राज्य स्थपित कर सकेंगे ? किन्तु ऐसा हुआ। यहूदियों ने संकल्प किया तो सदियों संघर्ष के पश्चात उन्हें इजराइल मिला। लगभग पांच हजार वर्ष से जम्बू द्वीपे अखंड भारत विश्व बंधुत्व वाली प्राचीनतम संस्कृति का प्रतीक है।

उन्होंने आगे कहा कि हमारी संस्कृति में अनेकता मे एकता का भाव है हम सभी लोग मिलकर एकता की भूमि का निर्माण करें जहां इर्ष्या,द्वेष से मुक्त समाज व राष्ट्र का निर्माण हो। जन-जन में आत्मीयता और राष्ट्रीयता का संचार हो। नयी पीढ़ी विभाजन के विभिषीका के दंश या परिणाम को समझ लें ऐसी परिस्थिति को जीवन वृत मे आने से रोके। हम संकल्प लें कि हम भारत माता की सन्तान हैं हमें सदैव एक हैं। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस, सामाजिक विभाजन, वैमनस्यता के जहर को दूर करने और एकता, सामाजिक सद्भाव और मानव सशक्तीकरण की भावना को और मजबूत करने की आवश्यकता की याद दिलाए।

विभाजन के विभिषीका पर आचार्य प्रो राजनाथ ने कहा कि यह दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करने के लिए न केवल प्रेरित करेगा, बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाएं भी मजबूत होंगी।

संगोष्ठी में प्रो. हरि प्रसाद अधिकारी, प्रो. शैलेश मिश्र, प्रो. हिरक कांति चक्रवर्ती, प्रो. राम किशोर त्रिपाठी एवं कुलसचिव केशलाल ने अपने विचार व्यक्त किए।


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